डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
पहाड़ की संस्कृति यहां के खान.पान की बात ही अलग है। यहां के अनाज तो गुणों का खान हैं ही, सब्जियां भी पौष्टिक तत्वों से भरपूर है। औषधीय गुणों से भरपूर माल्टा इस पृथ्वीै का सबसे सेहतमंद फल है। यह बात औषधीय सर्वे में भी पुष्ट हो चुकी है। उत्तराखण्ड की भौगोलिक स्थिति औद्यानिक फसलों के लिए प्रसिद्ध है। विभिन्न फलों के उत्पादन में इसका स्थान अग्रणी है, इन्ही फलों में माल्टा एक महत्वपूर्ण फल है, जो शरीर की रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति को बढाने के साथ.साथ विटामिन.सी से भरपूर होता है। यह फल निमूनिया, ब्लडप्रेशर तथा आंत संबंधी समस्याओं के लिए भी रामबाण है। यह सिर्टस प्रजाति का फल है जिसका वैज्ञानिक नाम सिट्रस सिनानसिस है। रुटेसीस परिवार से संबंधित इस फल का उद्भव एशिया महाद्वीप से हुआ है। सामान्यतः यह फल समुद्र तल से लगभग 1200.3000 मी0 की ऊॅचाई तक उगाया जाता है। सर्दियों के मौसम में उत्तराखण्ड के मध्य ऊचाई तथा अधिक ऊचाई वाले स्थान प्रायः काफी ठण्डे होते हैं। जनवरी के महीने में हिमालय क्षेत्र के निचले इलाकों जिसमें राज्य की भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 51 प्रतिशत शामिल है, में सर्दियों के फल माल्टा से नवाजा है। चमोली जिले के ग्वालदम, लोल्टी, थराली, गैरसैण, पिथौरागढ, रूद्रप्रयाग, बागेश्वर, चम्पावत तथा उत्तरकाशी आदि जगहों पर सडक के किनारे अक्सर बेचते हुए देखे जा सकते है।
माल्टे का जूस पौष्टिक तथा औषधीय रूप से महत्वपूर्ण होने के साथ.साथ चयपचय दर तथा कैलोरी जलाने की क्षमता भी बढाता है। माल्टा औषधीय रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण फल है इसमें एंटीसेप्टिक, एण्टी आक्सीडेट गुणों के साथ.साथ गुर्दे की पथरी, उच्च केलोस्ट्राल, उच्च रक्तचाप, प्रोस्टेट कैसर तथा ह्दय रोगों में भी लाभदायक पाया जाता है।
डा0 ललित रावतए संयुक्त निदेशक, उत्तराखण्ड चिकित्सा सेवा के एक लेख के अनुसार माल्टा का छिलका सौन्दर्य प्रसाधन में उपयोग के अलावा भूख बढाने, अपच तथा स्तन कैंसर के घाव को कम करने के लिए भी उपयोग किया जाता है। औषधीय महत्व के साथ माल्टा पौषक गुणों से भी भरपूर है, इसमें ऊर्जा. 47.05 कि0के0, प्रौटीन.0.94ग्रा0, कार्बोहाइडेट. 11.75 ग्रा0, वसा. 0.12 ग्रा0, फाइबर.0.12ग्रा0, विटामिन सी. 53.2 मिग्रा0, आयरन.0.1 मि0ग्रा0, फास्फोरस. 14 मि0ग्रा0, मैग्नीशियम. 10 मिग्रा0, पोटेशियम. 181 मिग्रा0 प्रति 100 ग्राम तक पाये जाते है।
सर्वप्रथम माल्टे का उत्पादन चीन से शुरू होकर उत्तर पूर्वी भारत तथा दक्षिण पूर्वी एशिया तक किया जाता है। उत्तराखण्ड में माल्टा मुख्यतः सीमावर्ती जिलों चमोली, पिथौरागढ, रूद्रप्रयाग, बागेश्वर, चम्पावत तथा उत्तरकाशी में बहुतायत उत्पादित किया जाता है। चमोली जिले के मंडल घाटी ;थराली, ग्वालदम, लोल्टी, गैरसैण तो माल्टा उत्पादन के लिए प्रसिद्ध रहे है। उत्तराखण्ड उद्यान विभाग के एक रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में लगभग 321477 पेड है, जिसमें लगभग 16224.86 मैट्रिक टन उत्पादन किया जाता है।
2012 की एक रिपोर्ट के अनुसार सभी सिटरस फलों के उत्पादन में माल्टे का सर्वाधिक 70 प्रतिशत योगदान रहा है। उत्तराखण्ड में सिटरस प्रजाति के फलों का उत्पादन लगभग 13.90 प्रतिशत होता है जिसमें सर्वाधिक रूद्रप्रयाग जिले में उत्पादित किया जाता है। जिसमें माल्टे का 45.03 प्रतिशत योगदान होता है। जहा तक प्रदेश में माल्टे व अन्य मौसमी फलों की भी बात की जाय तो अधिकतर स्थानों पर यह केवल स्थानीय बाजारों व पर्यटकों को ही बेचे जाने तक सीमित है। जिसमें प्रदेश की बिखरी जोत, कम उत्पादित क्षेत्र, कोपरेटिव फेडरेशन का न होना जैसे कारक सम्मिलित है। यह फुटकर बाजार में 7.8 रू0 प्रति कि0ग्रा0 से 15.16 रू0 प्रति किलो0 की दर से बेची जाती है। वही हिमाचल प्रदेश में माल्टे के लिए प्रसिद्ध घाटी मडूरा में कई वर्षों से फैव इण्डिया जैसे बडे ब्राण्ड द्वारा माल्टे का स्थानीय स्तर पर प्रसंस्करण कर मडूरा ब्राण्ड कें कई उत्पादों का विपणन किया जाता है।
हिमालय प्रदेश की तर्ज पर यदि उत्तराखण्ड के इस बहुमूल्य फल का उपयोग विभिन्न उत्पादों जैसे स्कासए जूसए मुरब्बाए जैमए फ्रूट वाईनरी तथा औषधीय उपयोग कर एक ब्राड विकसित किया जाय तो निस्सदेह यह प्रदेश के काश्तकारों के लिए आय का अच्छा स्रोत बन सकता है। बदलते मौसम के परिवेश से भी माल्टे के फल का आकार छोटा होता जा रहा है, जिसमें भी शोध की आवश्यकता है। माल्टा का पेड़ पहाड़ी इलाकों में सबसे ज्यादा उगाया जाता है। इसके फल, छिलके, रस और बीज से कई तरह की दवाएं बनाई जाती हैं। इसके छिलके का इस्तेमाल भूख बढ़ाने की दवा के लिए किया जा रहा है। इसके अलावा कफ को कम करने, अपच, खांसी.जुखाम और स्तन कैंसर के घाव को कम करने के लिए भी माल्टे के छिलके बेहतरीन होते हैं। इसके साथ ही माल्टे को एक टानिक के रुप में भी यूज किया जाता है। इसके छिलके के पाउडर से तैयार किया गया पेस्ट त्वचा के लिए फायदेमंद होता है। इसकी छाल से निकाला गया तेल शरीर को डिटाॅक्सिफाइ करता है। इसके साथ ही इसका तेल त्वचा में कोलेजन बनाता है। इसके बीज का इस्तेमाल सीने में दर्द और खांसी की दवा के लिए किया जा रहा है। इसे धरती का सबसे सेहतमंद फल कहें तो गलत नहीं होगा। माल्टे का रस उच्च कोलेस्ट्रालए हाई बीपी, प्रोस्टेट कैंसर और दिल के दौरे जैसी बीमारियों का भी इलाज करता है। माल्टा के स्क्वैश में 32.96 मिलीग्राम विटामिन.सी होता है। इसकी 100 ग्राम की मात्रा में 8.60 ग्राम कैल्शियम, 43.91 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 7.22 ग्राम विटामिन.ए, 0.33 ग्राम प्रोटीन होता है, इसके फल, छिलके, रस और बीज से कई तरह की दवाएं बनाई जाती हैं। इसके छिलके का इस्तेमाल भूख बढ़ाने की दवा के लिए किया जा रहा है। इसके अलावा कफ को कम करने, अपच, खांसी.जुखाम और स्तन कैंसर के घाव को कम करने के लिए भी माल्टे के छिलके बेहतरीन होते हैं। इसके साथ ही माल्टे को एक टाॅनिक के रुप में भी यूज किया जाता है। इसके छिलके के पाउडर से तैयार किया गया पेस्ट त्वचा के लिए फायदेमंद होता है। इसकी छाल से निकाला गया तेल शरीर को डिटाॅक्सिफाइ करता है। इसके साथ ही इसका तेल त्वचा में कोलेजन बनाता है। इसके बीज का इस्तेमाल सीने में दर्द और खांसी की दवा के लिए किया जा रहा है। इसे धरती का सबसे सेहतमंद फल कहें तो गलत नहीं होगा।
अल्मोड़ा जिले के विभिन्न दूरस्त पहाड़ी क्षेत्रों, विशेषकर चौखुटिया में संतरा, माल्टा और अन्य नींबू प्रजातीय फलों की भरपूर है। पिथौरागढ़, में नींबू प्रजाति के फलों से जूस बनाने की प्रवृति के चलते जिले में निजी फल संरक्षण केंद्र बढ़ते जा रहे हैं। राजकीय फल संरक्षण केंद्र के अलावा जिला मुख्यालय में चार निजी केंद्र बनाए गए हैं। जिसके चलते जिले में उत्पादित अधिकांश माल्टा जूस बनाने में प्रयोग किया जा रहा है। जिले में 19000 मैट्रिक टन नींबू प्रजाति के फलों का उत्पादन मुख्य उद्यान अधिकारी डॉण् मीनाक्षी जोशी ने बताया कि वर्ष 2018.19 में जिले में नींबू प्रजाति माल्टा, संतरा, बड़ा नींबू का 19000 मैट्रिक टन उत्पादन होगा। जिसमें सर्वाधिक उत्पादन माल्टा का है। माल्टा बाजार में आने लगा है। जिसे देखते हुए विभाग ने इस बार समय से माल्टा का समर्थन मूल्य घोषित कर दिया है। जिले में नींबू प्रजाति के फलों के क्रय के लिए वर्ष 2015 में उत्त्तराखंड औद्यानिक विपणन परिषद देहरादून द्वारा उद्यान विभाग के माध्यम से डीडीहाट, कनालीछीना, बेरीनाग में प्रतिवर्ष दिसंबर माह से क्रय केंद्र संचालित किए जाते हैं। क्रय केंद्र खोलने के बाद ही वर्ष 2015.16 से माल्टा का क्रय मूल्य घोषित किया जाता है। तब से आज तक क्रय मूल्य बराबर का है। मजे की बात यह है कि इन क्रय केंद्रों में आज तक एक भी काश्तकार माल्टा बेचने को नहीं आया है।प्रकृति एवं पर्यावरण की तबाही को रोकने के लिये बुनियादी बदलाव जरूरी है और वह बदलाव सरकार की नीतियों के साथ जीवनशैली में भी आना जरूरी है।
लेखक द्वारा प्रकाशित शोध पत्रों के दो साइट्रस प्रजातियों के छिलकों की सुगंधित प्रोफ़ाइल वर्र्षं 2017 संगोष्ठी प्रसुत हैं