• About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact
Uttarakhand Samachar
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
Uttarakhand Samachar
No Result
View All Result

नल पहुंंचने से घट रहा मासूं नौले का जलस्तर

06/02/21
in अल्मोड़ा, उत्तराखंड
Reading Time: 1min read
202
SHARES
252
VIEWS
Share on FacebookShare on WhatsAppShare on Twitter

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
पर्वतीय क्षेत्र में अतीत से ही भौगोलिकता के चलते जलस्रोत के रूप में नौले होते थे। जल की महत्ता को समझ कर अतीत में इन नौलों को सहेज कर रखा जाता था। नौलों को महत्ता को देखते हुए सुरक्षा के लिए कई इंतजाम किए जाते थे। इससे नौलों का पानी हमेशा साफ और शुद्ध रहता था। ग्रामीण अंचलों में इन नौलों और धारों की पूजा होती थी। इनकी सुरक्षा सभी अपना नैतिक कर्तव्य मानते थे। सदियों तक इन नौलों के अस्तित्व पर संकट नहीं आया।आजाद भारत के 73 सालों में ऐसा क्या हो गया कि लबालब रहने वाले नौले सूखते गए। एतिहासिक माने जाने वाले नौले भी खतरे में आ गए। ऐसे ही एतिहासिक नौलों में पिथौरागढ़ नगर से लगभग 10 किमी दूरी पर स्थित मासूं नौले का जल स्तर भी लगातार कम होता जा रहा है। अतीत में साल भर लबालब रहने वाला नौला केवल बरसात में ही भरा नजर आता है। गर्मियों में नौले का जल निरंतर कम हो रहा है। जो खतरे की घंटी है।

लोगों की प्यास बुझाने वाले इस नौले के पानी से अर्जुनेश्वर महादेव का जलाभिषेक होता है। मांसू का नौला इस क्षेत्र का विशेष नौला माना जाता है। इस नौले में पानी सतह तक 26 सीढि़यां बनी हैं। साल के कुछ माहों में पानी कम होने पर लोग सीढि़यों से उतर कर पानी भरते थे। कभी भी नौले का जलस्तर चिंता का विषय नहीं रहता था। इधर अब गर्मियों में नौले के तले तक पानी पहुंच रहा है। एतिहासिक महत्व के इस नौले के संरक्षण के लिए कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। ग्रामीण भी सरकारी नल पहुंचने से इसके प्रति उदासीन हैं। जल का एक नैसर्गिक स्रोत खतरे के कगार पर पहुंचने को है परंतु कारणों का पता नहीं लगाया जा रहा है। मासूं नौले के बारे में प्रचलित लोक मान्यता के अनुसार इसका निर्माण पांडव अर्जुन ने किया था। पांडव जब कैलास मानसरोवर यात्रा में गए तो मासूं के आसपास ठहरे थे। गांव के बुजुर्ग तेज सिंह बताते हैं कि यहां पर प्रवास के दौरान अर्जुन ने मांसू की चोटी पर महादेव का मंदिर बनाया जिसका नाम अर्जुनेश्वर रखा गया। मंदिर से लगभग दो सौ मीटर नीचे देवदार एक वृक्ष से कुछ मीटर नीचे अर्जुन ने नौला बनाया। इसी नौले के जल से अर्जुनेश्वर मंदिर में जलाभिषेक होता था। इस युग तक भी यह परंपरा जारी है। इधर जिस तरह से बरसात के अलावा अन्य सीजन में पानी घट रहा है यह खतरे की घंटी है।

ऐसे ही हाल रहे तो परंपरा भी प्रभावित होगी। नौले में पानी घटने के कारणों का पता लगा कर सुरक्षा के इंतजाम होने चाहिए। मासूं का नौला क्षेत्र का प्रमुख नौला रहा है। इस नौले के लबालब रहने से गांव के लोग पानी को लेकर संपन्न थे। अब तो बरसाती नौला भर रह गया है। जलस्रोत के सरंक्षण के लिए सभी को आगे आना होगा। नौले में पानी कम होना अच्छा नहीं है। एतिहासिक महत्व के नौले के संरक्षण के लिए न तो किसी जनप्रतिनिधि ने प्रयास किए और नहीं प्रशासन ने इस धरोहर को संरक्षित रखने का प्रयास किया। नलों में पानी आने के बाद हम ग्रामीण भी नौले के महत्व को समझ नहीं सके। एतिहासिक महत्व के नौले पर संकट के लिए सभी जिम्मेदार हैं। जल के महत्व को समझते हुए भी इसके संरक्षण के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए। यह दुर्भाग्य है। यदि हिमालयी क्षेत्रों में भी जल के प्रति श्रद्धा और पवित्रता की भावना को समाज में फिर से स्थापित करने की ईमानदार कोशिश की जाए तो जलग्रहण क्षेत्रों को बचाना आसान हो सकता है। उनका मानना है कि जल से जुड़ी आध्यात्मिकता कभी पर्वतीय संस्कृति का अभिन्न अंग हुआ करती थी।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि पानी के निरंतर बढ़ रहे उपयोग की उसी अनुपात में भरपाई करने में प्रकृति फिलहाल असमर्थ है। जल के अभाव में न तो पर्यावरण की समग्रता को सुरक्षित रखा जा सकता है और न ही गरीबी और भूख से एक निर्णायक लड़ाई लड़ी जा सकती है। भूगर्भशास्त्री पद्मभूषण डॉण् केएस वल्दिया ने 80 के दशक में चेताया था कि हमारी लापरवाही के चलते सूख चुके किसी प्राकृतिक जलस्रोत को दुनिया का कोई भी इंजीनियरिंग कौशल दोबारा जीवित नहीं कर सकताण् उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में जल की आपूर्ति का परंपरागत साधन नौला रहा है। सदियों तक पेयजल की निर्भरता इसी पर रही है। नौला मनुष्य द्वारा विशेष प्रकार के सूक्ष्म छिद्र युक्त पत्थर से निर्मित एक सीढ़ीदार जल भण्डार है, जिसके तल में एक चौकोर पत्थर के ऊपर सीढ़ियों की श्रंखला जमीन की सतह तक लाई जाती है। सामान्यतः सीढ़ियों की ऊंचाई और गहराई 4 से 6 इंच होती हैए और ऊपर तक लम्बाई . चौड़ाई बढ़ती हुई 5 से 9 फीट वर्गाकार हो जाती है। नौले की कुल गहराई स्रोत पर निर्भर करती है। आम तौर पर गहराई 5 फीट के करीब होती है ताकि सफाई करते समय डूबने का खतरा न हो। नौला सिर्फ उसी जगह पर बनाया जा सकता हैए जहाँ प्रचुर मात्रा में निरंतर स्रावित होने वाला भूमिगत जल विद्यमान हो। इस जल भण्डार को उसी सूक्ष्म छिद्रों वाले पत्थर की तीन दीवारों और स्तम्भों को खड़ा कर ठोस पत्थरों से आच्छादित कर दिया जाता है। प्रवेश द्वार को यथा संभव कम चौड़ा रखा जाता है। छत को चारों ओर ढलान दिया जाता है ताकि वर्षाजल न रुके और कोई जानवर न बैठे। आच्छादित करने से वाष्पीकरण कम होता है और अंदर के वाष्प को छिद्र युक्त पत्थरों द्वारा अवशोषित कर पुनः स्रोत में पहुँचा दिया जाता है। मौसम में बाहरी तापमान और अन्दर के तापमान में अधिकता या कमी के फलस्वरूप होने वाले वाष्पीकरण से नमी निरंतर बनी रहती है। सर्दियों में रात्रि और प्रातः जल गरम रहता है और गर्मियों में ठण्डा।

नौले का शुद्ध जल मृदुलए पाचक और पोषक खनिजों से युक्त होता है। कालांतर में सरकारी योजनाओं के माध्यम से भूमिगत जल का दोहन कर, जल स्रोतों को बाधित कर या नदियों के प्रवाह को बांधों से रोक कर बड़ी बड़ी टंकियों में एकत्र कर घर घर तक पहुँचाने का काम शुरू हुआ। जरूरत के मुताबिक पानी जब घर पर ही उपलब्ध होने लगा तो नौलों की उपेक्षा होने लगी और हमारे पुरखों की धरोहर क्षीण.शीर्ण होकर विलुप्ति के कगार पर पहुँच गई। ’नौले’ नहीं, हमारे जीवन मूल्यों को पोषित करती संस्कृति ही खत्म हो जाएगी, यदि हम समय से न जागे। भूमिगत जल का निरन्तर ह्रास हो रहा है। जहाँ तालाब, पोखर, सिमार, गजार थे वहाँ कंक्रीट की अट्टालिकाएं खडी़ हो गईं। सीमेंट व डामर की सड़कें बन गईं।जंगल उजड़ गए। वर्षा जल को अवशोषित कर धरती के गर्भ में ले जाने वाली जमीन दिन पर दिन कम होने लगी है।समय के साथ जल की प्रति व्यक्ति खपत बढ़ती जा रही है। भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन का कृषि पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।आज आवश्यकता है लुप्तप्राय परंपरागत जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने की और उस तकनीक को विकसित करने कीए जिसे हमारे पूर्वजों ने सदियों पहले अपना कर प्रकृति और संस्कृति को पोषित किया।उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र के नौलों को चिन्हित कर पुनर्जीवित किया जाना आवश्यक है। जब से उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया है, तब से निरंतर पलायन बढ़ता ही जा रहा हैण् पलायनआयोग की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के हजारों गांव पूरी तरह खाली है। जनता का दर्द यह है कि पहाड़ पर न तो रोजगार है और ना ही उपजाऊ जमीन। जनप्रतिनिधि और सरकारें हैं कि एक.दूसरे को कोसने से फुर्सत नहीं, पहाड़ पर पहाड़ जैसा है।

Share81SendTweet51
https://uttarakhandsamachar.com/wp-content/uploads/2025/10/yuva_UK-1.mp4
Previous Post

थराली ब्लाक सभागार में किसानों को 60 लाख का ऋण वितरित

Next Post

बन्नू स्कूल में मुख्यमंत्री ने बांटा किसानों को कृषि ऋण

Related Posts

उत्तराखंड

डोईवाला: सिंचाई नहर बंद होने से गन्ने की कई बीघा फसल सुखी, किसानों ने दी आत्मघाती कदम उठाने की चेतावनी

November 17, 2025
8
उत्तराखंड

कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दीवान एस. रावत को इंडियन केमिकल सोसाइटी वर्ष 2025 का “आचार्य पी. सी. राय मेमोरियल लेक्चर अवॉर्ड”

November 17, 2025
5
उत्तराखंड

जियो थर्मल पॉलिसी बनाने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य: डॉ आर मीनाक्षी सुंदरम

November 17, 2025
8
उत्तराखंड

उत्तराखंड पहाड़ों के लिए अब आर्थिक और राजनीतिक संकट

November 17, 2025
6
उत्तराखंड

प्रख्यात चिकित्सक डाँ सुदर्शन सिंह भण्डारी के आकस्मिक निधन से पैनखंडा जोशीमठ एवं दसोली क्षेत्र शोक की लहर

November 17, 2025
11
उत्तराखंड

उत्तराखण्ड राज्य की रजत जयंती वर्ष के अवसर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रवासी उत्तराखण्डी अधिवक्ताओं के साथ संवाद किया

November 16, 2025
13

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Popular Stories

  • चार जिलों के जिलाधिकारी बदले गए

    67506 shares
    Share 27002 Tweet 16877
  • डोईवाला : पुलिस,पीएसी व आईआरबी के जवानों का आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण सम्पन्न

    45757 shares
    Share 18303 Tweet 11439
  • ऑपरेशन कामधेनु को सफल बनाये हेतु जनपद के अन्य विभागों से मांगा गया सहयोग

    38034 shares
    Share 15214 Tweet 9509
  •  ढहते घर, गिरती दीवारें, दिलों में खौफ… जोशीमठ ही नहीं

    37426 shares
    Share 14970 Tweet 9357
  • विकासखंड देवाल क्षेत्र की होनहार छात्रा ज्योति बिष्ट ने किया उत्तराखंड का नाम रोशन

    37305 shares
    Share 14922 Tweet 9326

Stay Connected

संपादक- शंकर सिंह भाटिया

पता- ग्राम एवं पोस्ट आफिस- नागल ज्वालापुर, डोईवाला, जनपद-देहरादून, पिन-248140

फ़ोन- 9837887384

ईमेल- shankar.bhatia25@gmail.com

 

Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड समाचार डाॅट काम वेबसाइड 2015 से खासकर हिमालय क्षेत्र के समाचारों, सरोकारों को समर्पित एक समाचार पोर्टल है। इस पोर्टल के माध्यम से हम मध्य हिमालय क्षेत्र के गांवों, गाड़, गधेरों, शहरों, कस्बों और पर्यावरण की खबरों पर फोकस करते हैं। हमारी कोशिश है कि आपको इस वंचित क्षेत्र की छिपी हुई सूचनाएं पहुंचा सकें।
संपादक

Browse by Category

  • Bitcoin News
  • Education
  • अल्मोड़ा
  • अवर्गीकृत
  • उत्तरकाशी
  • उत्तराखंड
  • उधमसिंह नगर
  • ऋषिकेश
  • कालसी
  • केदारनाथ
  • कोटद्वार
  • क्राइम
  • खेल
  • चकराता
  • चमोली
  • चम्पावत
  • जॉब
  • जोशीमठ
  • जौनसार
  • टिहरी
  • डोईवाला
  • दुनिया
  • देहरादून
  • नैनीताल
  • पर्यटन
  • पिथौरागढ़
  • पौड़ी गढ़वाल
  • बद्रीनाथ
  • बागेश्वर
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • रुद्रप्रयाग
  • रुद्रप्रयाग
  • विकासनगर
  • वीडियो
  • संपादकीय
  • संस्कृति
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • साहिया
  • हरिद्वार
  • हेल्थ

Recent News

डोईवाला: सिंचाई नहर बंद होने से गन्ने की कई बीघा फसल सुखी, किसानों ने दी आत्मघाती कदम उठाने की चेतावनी

November 17, 2025

कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दीवान एस. रावत को इंडियन केमिकल सोसाइटी वर्ष 2025 का “आचार्य पी. सी. राय मेमोरियल लेक्चर अवॉर्ड”

November 17, 2025
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.