डोईवाला (प्रियांशु सक्सेना)। देवभूमि उत्तराखंड की पहचान उसके प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर में भी है। विशेषकर यहाँ के घरों में काष्ठ कला की विशिष्टता सदियों से एक महत्वपूर्ण पहचान रही है। काष्ठ कला को कभी यहाँ स्टेटस सिम्बल के रूप में देखा जाता था जो आज दुर्लभ हो चुकी है। लेकिन अब इस कला का पुनर्जीवन और संरक्षण लेखक गाँव थानों के निर्माण से हो रहा है। जो एक विशेष परियोजना के रूप में उत्तराखंड के सांस्कृतिक इतिहास को सजीव करने का प्रयास है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की प्रेरणा और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक की संकल्पना से लेखक गाँव का निर्माण थानों में किया जा रहा है। यह गाँव केवल साहित्य और लेखन का केंद्र नहीं होगा बल्कि यह राज्य की सांस्कृतिक विरासत का भी प्रतीक बनेगा। 25 बीघा भूमि में फैला यह लेखक गाँव देवदार की लकड़ियों से बनाए गए दरवाजों और पहाड़ी पटालों से निर्मित भवनों से सुसज्जित है। राज्य की परंपरागत स्थापत्य शैली को सजीव करता है। यहाँ एक पुस्कालय, संग्रहालय और मुख्य भवन के अलावा लेखक कुटीर भी बनाए गए हैं। जो लेखकों को रचनात्मक कार्य के लिए एक शांत और प्रेरणादायी वातावरण प्रदान करेंगे। संग्रहालय में उत्तराखंड की मूर्तिकला, पारंपरिक वस्त्र, वाद्य यंत्र, और रीति-रिवाजों का संकलन किया गया है। इसमें विशेष रूप से उत्तराखंड के साहित्यकारों, स्वतंत्रता सेनानियों, और जीवन से जुड़ी प्रमुख घटनाओं के प्रदर्शनी लगाई जाएगी। यह संग्रहालय उत्तराखंड की समग्र संस्कृति का प्रतीक बनेगा, जिससे पर्यटक और शोधकर्ता एक ही स्थान पर उत्तराखंड की समृद्ध धरोहर से परिचित हो सकेंगे। लेखक गाँव में आने वाले लेखकों को आवासीय सुविधाएँ भी उपलब्ध कराई जाएँगी। इसके अलावा, यहाँ योग और ध्यान केंद्र भी बनाया गया है। जिससे लेखकों को मानसिक शांति और रचनात्मकता में सहायक वातावरण मिलेगा। साथ ही चिकित्सा सुविधाएँ भी विशेष रूप से उपलब्ध कराई जाएँगी ताकि लेखक बिना किसी व्यवधान के अपने साहित्यिक कार्यों में ध्यान केंद्रित कर सकें। पुस्कालय में विश्व के सभी प्रमुख साहित्यकारों के साहित्य का संकलन किया जाएगा। यह लेखक गाँव शोधकर्ताओं और साहित्यकारों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में विकसित हो रहा है, जहाँ वे साहित्य, इतिहास और संस्कृति पर गहन शोध कर सकेंगे। उत्तराखंड का समग्र चित्रण यहाँ प्रस्तुत किया जाएगा, जिससे शोधार्थी और पर्यटक इस स्थान से प्रेरित हो सकें। पूर्व उच्च शिक्षा निदेशक प्रो सविता मोहन ने लेखक गाँव के दौरे के दौरान कहा लेखक कुटीर में लेखकों को रचना करने के लिए एक अनूठा वातावरण मिलेगा। जिससे उनकी सृजनात्मकता को नई दिशा मिलेगी। उन्होंने कहा कि यह केंद्र उत्तराखंड की कला, साहित्य और संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। पूर्व प्राचार्य डॉ केएल तलवाड़ ने कहा लेखक गाँव न केवल साहित्य के क्षेत्र में बल्कि सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण में भी मील का पत्थर साबित होगा। इस दौरान हिंदी शोधार्थी अंकित तिवारी भी उपस्थित थे। लेखक गाँव का निर्माण कार्य तेज गति से चल रहा है और इसके पूरा होने पर यह उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर का एक प्रमुख केंद्र बनेगा। यह न केवल लेखकों और साहित्यकारों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल होगा, बल्कि उत्तराखंड की काष्ठ कला और परंपराओं को पुनर्जीवित करने में भी सहायक सिद्ध होगा।