रिपोर्ट हरेंद्र बिष्ट।
थराली। प्राणमती नदी का रौद्र रूप कभी भी थराली विकास खंड के एक बड़े क्षेत्र में प्रलय का कारण तो नही बनेगा?। पिछले साल से इसके रौद्र रूप को देखकर कर तो कुछ यही आशंका जताई जा रही हैं। किसी समय शांत रूप से बहने वाली प्राणमती को उसके शांत रूप को देखते हुए एक गद्देरे का नाम दिया गया था। किंतु पिछले कुछ सालों से इसमें एका एक बरसात में भारी मात्रा में पानी बढ़ने के कारण उसे प्राणमती नदी कहना शुरू कर दिया गया हैं। पिछले साल जिस तरह इस नदी में 12-13 फिर 16 एवं 18 अगस्त की रातों को इस नदी ने अपना जो रौद्र रूप दिखाया उससे तहसील मुख्यालय थराली से लेकर सोल घाटी को थरा कर रख दिया।इस दौरान भैकलताल, ब्रहमताल में फटे बादलों से इस नदी में इतना पानी, पत्थर बोल्डर एवं मलवा आया कि उसके रस्ते में जो भी आया वह उसे बहा ले गया।इस दौरान नगर पंचायत थराली के अंतर्गत प्राणमती से लगे आधा दर्जन मकानों को नदी ने भारी क्षति पहुंचाई। इसके अलावा थराल-पैनगढ़ मोटर सड़क पर बने मोटर पुल, उसी के पास बने गाडर पैदल पुलिया, डुंग्री-रतगांव मोटर सड़क पर बने बैलीब्रज को अपने साथ बहा ले गया। इसके अलावा सैकड़ों नाली कृषि भूमि के साथ ही अन्य सम्पतियों को भी भारी क्षति पहुंचाई। इस साल फिर से 18-19 एवं 20-21 जुलाई की रात को आएं जल सैलाब ने इस नदी पर डाडरबगड़ में बनी इलैक्ट्रिकल ट्राली,दो लकड़ी के अस्थाई पुलों, थराली में बन रहे बैली ब्रज, मोटर सड़कों के अलावा बड़ी मात्रा में कृषि भूमि को भारी क्षति पहुंचाई है। अभी भी भारी नुकसान की आशंका जताई जा रही हैं।नदी के रौद्र रूप ने थराली बाजार क्षेत्र से लेकर थराली गांव,बूंगा,बुरसोल, डाडरबगड़, रतगांव,गेरूड़ गांवों के लोगों में इस कदर भय पैदा कर दिया है कि उनकी रातें जाग कर गुजर रही हैं।*बुग्यालों में हो रहे भूस्खलन की भूगर्भीय सर्वेक्षण की उठने लगी मांग*प्राणमती के रौद्र रूप से बहने के पीछे के संबंध में रतगांव के प्रधान एमएस फर्स्वाण का कहना हैं कि रतगांव- गेरूड़ गांवों के ऊपर क्षेत्र में ब्रहमताल की ओर करीब 10 किमी लंबाई एवं 4 किमी चौड़ाई के एक बड़े भूभाग में ब्रहमताल, अबिनकुला,कुंजीखेत,पटकला तोक,घाना बुराशों,तेलांती, भरण पाटा,अखरोड़ी,कालजाबर ,कोपड़,ननोली,प्रांत, अखवाणी आदि बुग्यालों में पिछले कुछ सालों से भूस्खलन का सिलसिला शुरू हुआ हैं। और लगातार इनका दायरा बढ़ता ही जा रहा है।प्राणमती नदी के निचले हिस्से का कैचपिट एरिया संकरा है,जबकि ऊपरी हिस्सा का कैच पिट एरिया काफी लंबा चौड़ा है।भूस्खलन के कारण इस क्षेत्र से थूनेर,खरसू,तेलिंग,रागा,सोड,भोजपत्र आदि के वटवृक्ष के पेड़ गर रहें हैं और गिरे पेड़ मलवा के साथ प्राणमती में आते हैं,जिससे जगह-जगह डैम बन जातें हैं और तेज बारिश होने के बाद डैमों के टूटने से नदी में जल सैलाब बढ़ जाता है, जोकि निचले क्षेत्रों में भारी तबाही मचा रहा है। उन्होंने इस क्षेत्र का वृहद रूप से भूगर्भीय सर्वेक्षण कर उसके अनुरूप ट्रीटमेंट करने की आवश्यकता पर बल दिया।