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डोईवाला : ‘राम कथा एवं रामकथा के दृश्य प्रतिरूपों में निहित सामाजिक ऊर्जा’

26/07/24
in उत्तराखंड
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डोईवाला। शहीद दुर्गा मल्ल राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय डोईवाला (देहरादून) में इंडियन कौंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च नई दिल्ली के सहयोग से अंग्रेजी विभाग की डॉ पल्लवी मिश्रा के संयोजकत्व में ‘राम कथा एवं रामकथा के दृश्य प्रतिरूपों में निहित सामाजिक ऊर्जा’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया।राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम दिवस के उद्घाटन अवसर पर दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर सुरेखा डंगवाल, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर केएम पांडे एवं प्रोफेसर सदाशिव द्विवेदी, हेमवती नंदन गढ़वाल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ डीआर पुरोहित, स्थानीय विधायक डोईवाला बृजभूषण गैरोला और महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ डीसी नैनवाल ने दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। कार्यक्रम का प्रारंभ करते हुए सेमिनार की संयोजिका का अंग्रेजी विभाग की डॉ पल्लवी मिश्रा ने सेमिनार की विषय वस्तु को स्पष्ट करते हुए बताया कि राम कथा केवल भारत ही नहीं अपितु राम कथा के दृश्य प्रतिरूप दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के साथ-साथ मध्य एशिया तक में फैले हैं। राम कथा ने एक सकारात्मक सामाजिक मूल्यों को उत्पन्न कर मानव समाज में नवीन सर्जनात्मक ऊर्जा का संचार किया है। संगोष्ठी की मुख्य वक्ता दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर सुरेखा डंगवाल ने कहा कि राम कथा मानव जीवन के प्रश्नों का हल प्रदान करती है, राम कथा में शत्रु को भी मोक्ष की कामना की गई है। राम राज्य की परिकल्पना गुड गवर्नेस के माध्यम से साकार की जानी चाहिए। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर कृष्ण मोहन पांडे ने अपने बीज वक्तव्य में राम कथा के सांस्कृतिक ऐतिहासिक महत्व व राम कथा के आदि स्रोतों पर प्रकाश डाला उन्होंने विस्तार से बताया कि राम कथा बाल्मीकि से पूर्व की है यह लोक साहित्य की श्वास है, प्रत्येक राम कथाकार ने अपने योग वेश्वासों के अनुरूप राम कथा का वर्णन किया है। अतिथि वक्ता प्रोफेसर डीआर पुरोहित ने पहाड़ में रामलीला के ऐतिहासिक विकास पर प्रकाश डालते हुए चमोली जिले के सलूण गांव में आयोजित यूनेस्को धरोहर में शामिल रम्माण की विशेषताओं को उजागर किया। साथ ही उन्होंने उड़ीसा, बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि के यात्रा, नौटंकी, कथकली जैसे दृश्य प्रतिरूपों तथा चित्रकला में राम कथा के प्रतिबिंब पर अपनी बात कही। प्रोफेसर शारदा श्रीनिवासन ने चोल और विजयनगर राज्य में राम कथा पर आधारित कांस्य मूर्तिशिल्प पर अपना विद्वतापूर्ण ऑनलाइन प्रेजेंटेशन प्रस्तुत किया। प्रथम दिन के संध्याकालीन सत्र में प्राध्यापकों एवं शोधार्थियों द्वारा राम कथा पर आधारित अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। प्रमुख शोध पत्र प्रस्तोताओं में डॉ संजीव सिंह नेगी, डॉ तनु, डॉ अंति शाह, डॉ वर्षा सिंह आदि प्रमुख थे। राष्ट्रीय संगति संगोष्ठी के दूसरे दिन के मुख्य अतिथि वक्ता जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय स्कूल आफ सोशल साइंसेज के प्रोफेसर हीरामन तिवारी द्वारा श्रीमद्भागवत पुराण, वाल्मीकि रामायण, उत्तर रामचरितम, रामचरितमानस आदि ग्रंथों में वर्णित राम कथा की विशेषताओं पर विस्तार से प्रकाश डाला गया। द्वितीय दिवस के मुख्य विद्वान वक्ता प्रो. सदाशिव द्विवेदी ने वैदिक वांग्मय और राम कथा के अंतरसंबंधों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वैदिक दार्शनिक सिद्धांतों का व्यवहारिक प्रकटीकरण रामायण और महाभारत में हुआ है। उन्होंने अपने वक्तव्य में ऋषि परंपरा और राज परंपरा का उल्लेख करते हुए कहा कि जब-जब भारतीय समाज और संस्कृति संकटग्रस्त हुए हैं ऋषि परंपरा की राम कथा ने समाज को एक नई चेतना प्रदान की है। दूसरे दिन के संध्याकालीन सत्र में प्रोफेसर डीपी सिंह ने राम कथा के सामाजिक निहितार्थों पर अपन्स महत्वपूर्ण वक्तव्य प्रस्तुत किया तथा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के डॉ राहुल चतुर्वेदी द्वारा राम कथा और निराला की राम की शक्ति पूजा के राम के स्वरूप पर विस्तार से प्रकाश डाला गया। इस अवसर पर स्पर्श हिमालय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर केएन जेना ने भी अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। संध्याकालीन सत्र में देश के विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों से आए हुए शोधार्थियों ने राम कथा पर आधारित अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये। दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन अवसर पर महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर डी सी नैनवाल द्वारा संगोष्ठी की सार्थकता और प्रासंगिकता पर अपने विचार व्यक्त किए गए तथा संगोष्ठी की संयोजिका डॉ पल्लवी मिश्रा द्वारा समस्त अतिधियों एवं प्रतिभागियों को धन्यवाद ज्ञापित किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ राखी पंचोला द्वारा किया गया तथा इस अवसर पर डॉ अंजू भट्ट, डॉ संतोष वर्मा, डा वल्लरी कुकरेती, डॉ पंकज पांडे, डॉ. प्रमोद पंत, डॉ नवीन कुमार नैथानी, डॉ अफरोज इकबाल डॉ इंदिरा जुगराण, डॉ एनडी शुक्ला, डॉ विक्रम सिंह पवार, डॉ पूनम पांडे आदि सभी प्राध्यापक उपस्थित रहे।

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