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गांव में बीता था कलाम का बचपन नमाज के पहले पढ़ते थे मैथ्स: डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

27/07/24
in उत्तराखंड
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ब्यूरो रिपोर्ट। भारत रत्न से सम्मानित और ‘भारत का मिसाइल मैन’ कहे जाने वाले मशहूर वैज्ञानिक डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम अपने बेहतरीन कार्यों के लिए आज भी जाने जाते हैं। डॉ कलाम वर्ष 2002 में भारत के 11वें राष्ट्रपति भी बने। डॉ कलाम ने भारत को प्रगतिशील बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम का जन्म तमिलनाडु के रामेश्वरम के धनुषकोडी गांव में 15 अक्टूबर 1931 को हुआ था।  15 अक्टूबर 1931 को डॉ कलाम तमिलनाडु के रामेश्वरम में जन्में थे। उनके पिता का नाम जैनुलाब्दीन और मां का नाम आशियम्मा था। उनका बचपन काफी संघर्षों के साथ बीता और उन्हें आर्थिक परेशानियों को दूर करने के लिए अखबार भी बेचना पड़ा था।उन्होनें अपनी बचपन में पढ़ाई रामेश्वरम से की थी। इसके बाद उन्होनें 1954 में त्रिची के सेंट जोसेफ कॉलेज से साइंस की डिग्री हासिल की। उन्होनें 1957 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। डॉ कलाम ने भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन से भी काम किया। इसके बाद डॉ. कलाम ने वर्ष 1992 से 1999 तक रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन में सेक्रेटरी के रूप में कार्य किया। वह प्रधानमंत्री के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार भी थे। वर्ष 1998 में दूसरे परमाणु परीक्षण में डॉ. कलाम ने महत्वपूर्ण तकनीकी और राजनीतिक भूमिका निभाई थी। इस सफल परमाणु परिक्षण के बाद ही तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत को एक पूर्ण विकसित परमाणु देश घोषित किया और भारत विश्व में एक महाशक्ति के रूप में उभरा वह रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार रहे।हालांकि कलाम बचपन में पायलट बनना चाहते थे। लेकिन फिर वो वैज्ञानिक बने और 2002 से 2007 तक भारत के 11 वें राष्ट्रपति रहे। विज्ञान में उनकी गहरी रुचि थी। वह हमेशा छात्रों को प्रेरित करते थे और बड़े सपने देखने के लिए कहते थे। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने अपने जीवन में बहुत सी विपरीत परिस्थितियों का सामना किया था। लेकिन जीवन में उन्होंने कभी भी कठिन परिस्थितियों के आगे हार नहीं मानी। यही वजह रही है कि उनका जीवन आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत रहा हैं। डॉ. कलाम को उनके कार्यों के लिए बहुत से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। डॉ कलाम को 1981 मे पद्म भूषण, 1990 में पद्म विभूषण और 1997 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। उत्तराखंड से पूर्व राष्ट्रपति का बेहद लगाव रहा है. अपने करियर के शु्रुआती दौर में डॉक्टर कलाम देहरादून आए थे. राजधानी के क्लेमन्टाउन क्षेत्र में स्थित इंडियन एअर फोर्स में पायलट बनना चाहते थे. यहां पर उन्होंने इंटरव्यू दिया था.हालांकि आठ पदों के लिए इंटरव्यू कॉल  हुआ था, ऐसे में उनका सेलेक्शन नहीं पो पाया था. कलाम नौंवे नंबर पर थे. उन्होंने अपनी किताब  ‘जर्नी’ में इसका उल्लेख किया है. इसके बाद वो पैदल मार्गों से होते हुए ऋषिकेश चले गए थे. काफी समय  तक वो ऋषिकेश के शिवानंद आश्रम में रहे.उनका कहना था कि मुश्किलों से इंसान का हारना नहीं चाहिए. मुश्किलों का मुकाबला करके ही इंसान अपने मुकाम को हासिल कर सकता है. 2006 में स्टेट लेवल की देहरादून के रायपुर क्षेत्र में एक विज्ञानी प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था, जिसमें पूरे राज्य से स्कूली बच्चों ने विज्ञानी विषय के संबंध में प्रदर्शनी लगाई थी.बच्चों से मिलने के लिए वो अपने प्रोटोकॉल को तोड़कर उनसे मिलने के लिए चले गए. उन्होंने बच्चों से हिंदी में बात की. हिंदी में बातें करके बच्चें बहुत खुश हुए. आज भी बच्चे उनकी बातों को  याद करते हैं.

एक छात्र ने उनसे पूछा था कि उन्हें मिसाइलमैन क्यों कहते है साल 2011 में वो पंतनगर यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में शामिल होने के लिए पंतनगर आए थे, लेकिन दीक्षांत समारोह में शामिल होने के लिए वो नैनीताल के एक सभागार में अपने प्रशंसकों से मिलने के लिए चले गए. यहां पर उनके लिए वीआईपी कुर्सी लगी हुई थी, तो उन्होंने कहा कि जिस तरह से अन्य गणमान्य के लिए कुर्सी लगाई गई उसी तरह से उनकी भी कुर्सी लगाई जाए. इस पर उनके प्रंशसक स्तब्ध रह गए.प्रतिभा के धनी  महान वैज्ञानिक  डॉ कलाम के साधा जीवन के बारे में सैकड़ों ऐसे उदाहरण है जो  आज के राजनेताओं और समाज को प्रेरणा मिल सकती है. फिलहाल मसूरी हो या फिर एलबीएस अकादमी, उनका यहां अक्सर आना-जाना रहा है. फिलहाल आज देश जहां उनके योगदान को याद कर रहा है, वहीं उनके त्याग और विज्ञान के क्षेत्र में किए योगदान  से प्रेरणा लेकर युवाओं को आगे बढ़ाना होगा और यही उनको सच्ची श्रद्धाजंलि होगी. तो पूर्व राष्ट्रपति ने जवाब दिया था कि वो विज्ञान के रक्षा और अन्य सैटेलाइट के बारे में काम करते हैं, इसलिए उन्हें  मिसाइल मैन के रुप में पुकारते हैं. 19 अक्टूबर 2002 को अल्मोड़ा में उदयशंकर नाट्य अकादमी संस्थान का शिलान्यास किया था और यहां को लोगों और बच्चों से भी मुलाकात की थी.  कलाम बतौर वैज्ञानिक अल्मोड़ा में कई बार आए थे.अल्मोड़ा दौरे में एक शिष्टमंडल के साथ यहां की कई समस्याएं राष्ट्रपति के सामने भी रखी. आज भी उस समय की फोटो नगरपालिका के पास है, लेकिन दुख की बात यह है कि 23  साल बीतने के बाद भी संस्थान अस्तिव में नहीं आया है. 29 अप्रैल 2015 को वो एक निजी स्कूल के कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए  देहरादून आए थे. कुछ वक्त निकाल कर वो अपने पुराने मित्र धीरेंद्र शर्मा के घर चले गए. भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलांग में ‘रहने योग्य ग्रह’ पर व्याख्यान दे रहे थे, तभी उन्हें जोरदार कार्डियक अरेस्ट( दिल का दौरा) हुआ और वह गिर गए थे। जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया और वहां उन्हें बचाने के लिए चिकित्सा दल की लाख कोशिशों के बाद भी शाम 7:45 पर उनका निधन हो गया था। कलाम वैज्ञानिक होने के साथ-साथ मृदुल भाषी, मिलनसार और काफी अनुशासित थे. उनके संघर्षों की कहानी हमेशा युवाओं को प्रेरणा देती रहेगी. कलाम साहब ने देश के सर्वोच्च पद पर रहते हुए अपने कार्यकाल में सादगी, मितव्ययिता और ईमानदारी की जो मिसाल पेश की, वह आज और कहीं देखने को नहीं मिलती है. जनता के राष्ट्रपति ” और रणनीतिक मिसाइलों के स्वदेशी विकास के वास्तुकार डॉक्टर ए.पी. जे.अब्दुल कलाम मानते थे कि व्यक्ति जब तक विफलता की कड़वी गोली नहीं चखता, तब तक सफलता के लिए पूरे समर्पण के साथ जुट नहीं पाता. उन्होंने सिक्के के दोनों पहलू देखे. सफलता के आकाश चूमे तो ऐसा भी वक्त देखा जब निराशा के गहरे गर्त में खुद को पाया. लेकिन इन विफलताओं से सीख लेकर वे सपनों को सच करने की तैयारी में जुटे रहे और कामयाबी की अमिट इबारतें लिख गए. वे कहते थे, ” सपने वे नहीं हैं जो हम नींद में देखते हैं. बल्कि सपने वे होते हैं , जो हमें सोने नहीं देते.” पुण्यतिथि के मौके पर उनकी किताब ” माई जर्नी : ट्रांसफॉर्मिंग ड्रीम्स इन टू एक्शंस ” के जरिए याद करते हैं उनकी जिंदगी के कुछ ऐसे कुछ प्रसंग जब असफलताओं से मिली सीख ने उन्हें नई तैयारी के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया. मद्रास प्रोद्योगिकी संस्थान के मेधावी छात्र कलाम कुछ क्षणों के लिए बेचैन हो गए थे , जब उनके प्रोफेसर ने एक डिजाइन तैयार करने में उनकी असफलता के बाद स्कॉलरशिप रद्द करने की चेतावनी दी थी. चार छात्रों की उस टीम के कलाम इंचार्ज थे, जिसे प्रोफेसर श्रीनिवासन ने कम ऊंचाई पर उड़ने वाले एक लड़ाकू विमान की डिजाइन तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी थी. कई दिनों की मेहनत के बाद इसे कलाम की टीम ने तैयार किया. प्रोफेसर को ये टीम अपने काम से प्रभावित करना चाहती थी, इसलिए हर पहलू पर काफी सोच – विचार और तैयारी के साथ डिजाइन पर काम किया गया था.प्रोफेसर श्रीनिवासन की पारखी नजरों ने उसका परीक्षण किया. कलाम एक टक उन्हें निहार रहे थे. लेकिन उनकी भौंहें सिकुड़ी. अगले शब्द कलाम के लिए विचलित करने वाले थे, “यह इतना अच्छा डिजाइन नहीं है. मुझे तुमसे ज्यादा उम्मीद थी. यह निराशाजनक है. मुझे बहुत निराशा हुई. तुम्हारा जैसा होनहार छात्र और ऐसा काम ! ” हमेशा एक मेधावी छात्र के रूप में शाबाशी पाने वाले कलाम के लिए किसी टीचर की फटकार का यह पहला अनुभव था. श्रीनिवासन यहीं नहीं रुके. उनकी अगली हिदायत चुनौती थी और चेतावनी भी, “अभी शुक्रवार की दोपहर है. सोमवार की शाम तक पूरा नया डिजाइन देखूंगा. ऐसा नहीं कर सके तो तुम्हारी स्कॉलरशिप बंद कर दी जाएगी.” वायुसेना पायलट का इंटरव्यू देहरादून में था. तामिलनाडु से देहरादून की यात्रा काफी लंबी थी. लेकिन कलाम खुशियों से भरे थे. वे उस मंजिल की ओर बढ़ रहे थे , जो अब तक उनके सपनों में दिखती थी. अब वे सच में पायलट बनने की दहलीज पर खड़े थे. लेकिन आगे उनका चाहा पूरा नहीं हुआ. पायलट की आठ रिक्तियां थीं. पच्चीस ने इंटरव्यू दिया. कलाम नौंवें स्थान पर थे. फाइटर प्लेन उड़ाने का उनका सपना टूट गया. खुद को उन्होंने गहरी निराशा में घिरा और टूटा पाया. लेकिन एक बार फिर उनके आत्मविश्वास और दृढ़ इच्छाशक्ति ने अगली सफलताओं के लिए उन्हें प्रेरित किया. तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय में वरिष्ठ सहायक वैज्ञानिक के पद पर उनका चयन हो गया. उन्होंने फाइटर प्लेन उड़ाने का सपना टूटने के मातम की जगह नई जिम्मेदारी से जुड़े सपने देखने और उन्हें सच में बदलने के लिए खुद को समर्पित कर दिया कलाम ने अपनी हर असफलता को एक नसीहत के तौर पर लिया. वे इनके कारणों की तह तक गए और उनकी सीख से आगे की राह चुनी. उजाले की उम्मीद हमेशा कायम रखी. उनकी सोच थी कि निराशा से उबरने के बाद नए रास्ते खुलेंगे. वे देश के अग्रणी यशस्वी वैज्ञानिक बने. उपग्रह प्रक्षेपण यान और रणनीतिक मिसाइलों के स्वदेशी विकास के वे वास्तुकार थे. एस. एल.वी. – 3 ,’ अग्नि ‘ और पृथ्वी ‘ उनकी मेधा और नेतृत्व क्षमता के प्रमाण हैं. उनके अथक प्रयासों से भारत रक्षा तथा वायु – आकाश प्रणालियों में आत्मनिर्भर बना. देश के ग्यारहवें राष्ट्रपति के रूप में वे सच्चे अर्थों में जनता के राष्ट्रपति थे.छात्रों – युवाओं को प्रेरित करने के लिए वे जीवनपर्यंत प्रयासरत रहे. जीवन के आखिरी दो दशकों में 1.6 करोड़ युवाओं से उन्होंने भेंट – संवाद किया. राष्ट्रपति के अपने पांच वर्षों के कार्यकाल में उन्होंने आठ लाख छात्रों से अपनी मुलाकातों में रचनात्मक विकास के संकल्पों से से जुड़ने का आह्वान किया. वे मूलतः वैज्ञानिक थे. भारत के मिसाइल मैन. वे भारत को महाशक्ति के रूप में वे देखना चाहते थे. इसके लिए वे युवाओं का समर्पण जरूरी मानते थे. उन्हें जोड़ने की उनकी कोशिशें आखिरी समय तक जारी रहीं.( इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।)

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