देहरादून। भारत गणराज्य में वर्तमान में 28 राज्य और 3 केंद्र शासित प्रदेश हैं. यहां पर चुनी हुई सरकार ही शासन करती है. वहीं भारत के संविधान के अनुच्छेद 164 में राज्य सरकार गठित किए जाने का प्रावधान है. इसके अनुसार राज्यों के राज्यपाल बहुमत वाले विधायक दल के नेता को मुख्यमंत्री चुनते हैं और फिर मुख्यमंत्री की सलाह पर कैबिनेट का गठन किया जाता है. इतना ही नहीं संविधान के इस अनुच्छेद में उप मुख्यमंत्री का कोई जिक्र नहीं किया है. इसी वजह से डिप्टी सीएम के वेतन, अन्य भत्ते और सुविधाएं भी कैबिनेट मंत्री के बराबर ही दी जाती हैं. साथ ही उप मुख्यमंत्री के द्वारा कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ली जाती है और फिर मुख्यमंत्री की सिफारिश पर राज्यपाल के द्वारा उन्हें डिप्टी सीएम का दर्जा दिया जाता है. कोई भी व्यक्ति उप मुख्यमंत्री बन सकात है. हालांकि कुछ राज्यों में सिर्फ विधायक ही मंत्री बन सकते हैं, तो वहीं कुछ राज्यों में विधानपरिषद के सदस्यों को भी मंत्री बनाया जाता है. हालांकि कितने उप मुख्यमंत्री बनाए जा सकते हैं, इसका कोई उल्लेख नहीं है. यही वजह है कि कई जगहों पर दो तो कई जगह पर एक ही डिप्टी सीएम हैं. कैबिनेट को लेकर एक स्वरूप तय है कि केंद्र शासित प्रदेश को छोड़कर अन्य राज्यों में कुल विधायकों का 15 फीसदी ही मंत्री बन सकते हैं. यदि किस राज्य में विधानसभा में 80 सीट हैं तो वहां पर मुख्यमंत्री समेत कुल 12 मंत्री ही हो सकते हैं. गौरतलब है कि वरिष्ठ मंत्री हो ही उप मुख्यमंत्री बनाया जाता है. वहीं मुख्यमंत्री के नहीं रहने की स्थिति में उप मुख्यमंत्री कैबिनेट की अध्यक्षता करते हैं. वर्तमान में अरुणाचल में चाउना मीन, आंध्र प्रदेश में पवन कल्याण, बिहार में सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा, उत्तर प्रदेश में केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक, छत्तीसगढ़ में अरुण साव और विजय शर्मा, हिमाचल में मुकेश अग्निहोत्री, जम्मू कश्मीर में सुरेंद्र चौधरी, कर्नाटक में डीके शिवकुमार उप मुख्यमंत्री हैं. भारत में पहली बार कब बना था पहला उप मुख्यमंत्री बिहार के अनुग्रह नारायण सिंह भारत के पहले उप मुख्यमंत्री बने थे. वे 1956 तक इस पद पर रहे. इसके बाद हरियाणा में उप मुख्यमंत्री बनाया गया. वहीं 1990 के बाद देश में उप मुख्यमंत्री बनाने की परंपरा शुरू हो गई. इसी क्रम में बिहार के सुशील कुमार मोदी सबसे अधिक समय उप मुख्यमंत्री के पद पर रहे. मोदी करीब 10 साल तक डिप्टी सीएम रहे. राज्यों में डिप्टी सीएम बनाने को लेकर किसी भी राजनीतिक पार्टी के द्वारा जाति समीकरण को साधना पहला मकसद होता है. हर प्रदेश में चार से पांच जातियां सामाजित तौर पर मुखर होती हैं. परंतु सरकार बनने के बाद कोई भी पार्टी एक ही जाति के व्यक्ति को मुख्यमंत्री बना सकती है. ऐसे में अन्य जातियों को संतुष्ट करने के लिए डिप्टी सीएम बनाया जाता है. महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे और अजित पवार के उप मुख्यमंत्री बनने के साथ ही देश में डिप्टी सीएम की संख्या 26 हो गई है. ऐसा पहली बार है कि देश में 16 राज्यों में डिप्टी सीएम हैं. डिप्टी सीएम बनाने में कांग्रेस के अलावा भाजपा के साथ-साथ छोटी पार्टियां भी काफी आगे है. वह भी तब, जबकि इस पद का भारत के संविधान में कोई उल्लेख नहीं है. इतना ही नहीं नौ राज्यों में तो 2-2 उप मुख्यमंत्री काम कर रहे हैं. इनमें यूपी, बिहार और महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य शामिल हैं. वहीं तमिलनाडु में पिता मुख्यमंत्री और बेटा उप मुख्यमंत्री पद पर काबिज है. साल 1967 में कर्पूरी ठाकुर बिहार के दूसरी उपमुख्यमंत्री बने थे। तो फिर कई राज्यों में उपमुख्यमंत्री बनाये गये। इसी तरह मेघालय में पी ताइसोंग और एस धर, मध्य प्रदेश में जगदीश देवड़ा और राजेंद्र शुक्ला, राजस्थान में प्रेम बैरवा और दीया कुमारी, नगालैंड में वाई पैट और टीआ जेलियांग,ओडिशा में के सिंह देव और पार्वती परिदा, तमिलनाडु में उदयनिधि स्टालिन, तेलंगाना में बी विक्रममार्क उप मुख्यमंत्री हैं. मध्य प्रदेश में जनसंघ के नेता वीरेंद्र कुमार सकचेला पहले उपमुख्यमंत्री बने थे। वह गोविंद नारायण सिंह की सरकार में इस पद पर आसीन हुए थे। भारतीय राजनीति आज भी जाती आधारित ही है इसलिए यह एक एहम कारण बन जाता है अब जैसे हर राज्य में अलग-अलग जातियां होती हैं, जो संख्या और सामाजिक ताकत के हिसाब से मुखर होती हैं। सरकार बनने पर पार्टी सिर्फ एक ही नेता को मुख्यमंत्री बना सकती है जो की किसी भी जाती का हो सकता है, लेकिन इससे अन्य जातियों के लोग असंतुष्ट हो सकते है उनको साधने के लिए डिप्टी सीएम का पद दिया जाता है।उदाहरण के तौर पर राजस्थान में ब्राह्मण समुदाय के भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया, और ठाकुर वोटरों को साधने के लिए दीया कुमारी को डिप्टी सीएम बना दिया। दलित वोटरों को ध्यान में रखते हुए प्रेम चंद्र बैरवा को भी डिप्टी सीएम बनाया दिया गया।इसी तरह मध्य प्रदेश में ओबीसी समुदाय के मोहन यादव को सीएम बनाया गया, जबकि दलितों को साधने के लिए जगदीश देवड़ा और ब्राह्मणों को ध्यान में रखते हुए राजेंद्र शुक्ला को डिप्टी सीएम बना दिया गया। गठबंधन सरकार में भी उप मुख्यमंत्री वाला फॉर्म्युला खूब काम करता है। जब दो पार्टियां हाथ मिलाकर सरकार बनाती हैं तो दोनों में से किसी एक के ही खाते में मुख्यमंत्री की कुर्सी आएगी। लिहाजा दूसरी पार्टी से उपमुख्यमंत्री बना दिया जाता है ताकि ये दिखाया जा सके कि सरकार में दोनों पार्टियां बराबर की साझीदार हैं। यह फॉर्म्युला कुछ राज्यों में बहुत अच्छे से काम कर रहा है।बिहार में जब पिछले साल अगस्त में नीतीश कुमार की जेडीयू और आरजेडी साथ आईं तो सरकार में तेजस्वी यादव को 4 अहम मंत्रालयों के साथ उप मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली। नीतीश कुमार सूबे के मुख्यमंत्री बने रहे।महाराष्ट्र में भी बीजेपी ने उप मुख्यमंत्री वाला फॉर्म्युला अपनाया। शिवसेना के एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री हैं। बीजेपी और एनसीपी के अजीत पवार गुट से एक-एक उप मुख्यमंत्री हैं। पहले सरकार में शिंदे की अगुआई में शिवसेना और बीजेपी थीं। तब सिर्फ एक उप मुख्यमंत्री थे बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस और उनके पास कई अहम मंत्रालय थे। बाद में इस साल जुलाई में अजीत पवार की अगुआई वाला एनसीपी का गुट भी सरकार में शामिल हो गया। तब सूबे को फडणवीस के अलावा एक और उप मुख्यमंत्री मिला अजीत पवार के रूप में। फडणवीस के कुछ अहम मंत्रालय पवार को मिल गए।।लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।