शंकर सिंह भाटिया
हमारे देश के नेता भारत को विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने की दुहाई देते रहते हैं। राजनीतिक दल इस लोकतंत्र के आधार स्तंभ हैं। चुने गए नेता बहुमत के आधार पर देश की सत्ता संभालते हैं। लेकिन इन दलों के जिम्मेदार नेता एक झूठ को सौ बार दोहराकर झूठ को सच साबित करने की रणनीति पर काम करते हुए दिखाई देते हैं। देश की दो सबसे बड़ी पार्टियां भाजपा तथा कांग्रेस इस प्रेक्टिस को बार-बार दोहराती हैं। इतना ही नहीं राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार से बाहर रखकर इन राजनीतिक दलों ने देश में बढ़ते भ्रष्टाचार को मजबूत आधार भी दिया है।
पहले भाजपा के झूठ पर बात करें। राहुल गांधी ने कुछ साल पहले एक जनसभा में भाजपा के औद्योगीकरण पर चोट करते हुए नरेंद्र मोदी के तिलिस्म को छेड़ दिया था। जिसमें उन्होंने कहा कि मोदी ऐसी राजनीति करते हैं, मशीन में एक तरफ से आलू डालो और दूसरी तरफ से सोना बनकर निकल आता है। भाजपा के सोशल मीडिया विशेषज्ञों ने राहुल गांधी के इस बयान के आगे-पीछे के संदर्भों को हटा दिया, बयान को इस तरह पेश किया कि जैसे राहुल गांधी कह रहे हों कि उन्होंने ऐसी मशीन बना ली है, एक तरफ से आलू डालोगे तो दूसरी तरफ से सोना उगलने लगेगी। यह भाजपा की राहुल गांधी को पप्पू साबित करने की मुहिम का हिस्सा भी था। जब भाजपा के लोग इस बयान को खूब प्रचारित करने लगे तो कांग्रेस इस बयान के मूल संदर्भों को सामने ले आई। बात साफ हो गई कि भाजपा झूठ फैला रही थी। यह सब साबित होने के बाद आज भी भाजपा इस झूठ को पूरे बेग के साथ फैला रही है। भाजपा कार्यकर्ता आलू लेकर राहुल की जनसभाओं में जाते हैं, यहां तक कि सच्चाई सामने आने के बाद भी भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के प्रवक्ता इस झूठ को राहुल के खिलाफ सार्वजनिक मंचों तथा टीवी चैनलों में बोलते हुए नहीं हिचकिचाते।
अब कांग्रेस के झूठ की बात करें। चुनाव से पहले राफेल को बोफोर्स बनाने की जिद में बिना किसी तथ्यों, प्रमाणों के राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोपों की झड़ी लगा दी। संसद से लेकर जन सभाओं तक राफेल सौदे को बहुत बड़ा भ्रष्टाचार साबित करते रहे। सुप्रीम कोर्ट में भी राफेल के खिलाफ याचिका पर सरकार के खिलाफ ऐसा कुछ भी सामने नहीं आया। लेकिन राहुल गांधी इस मुद्दे को पकड़े रहे। इसी आधार पर देश के प्रधानमंत्री को उन्होंने चोर कह दिया। प्रधानमंत्री तो छोड़िये किसी आम व्यक्ति को भी कोई दूसरा व्यक्ति तब तक चोर नहीं कह सकता, जब तक उसकी चोरी साबित न हो जाए। प्रधानमंत्री पर सिर्फ अपने आरोपों के आधार पर चोर होने का आरोप लगा देना सिर्फ राजनीतिक जिद लगती है, ताकि इसी झूठ को आधार बनाकर चुनाव में जाया जा सके। अब कांग्रेस के प्रवक्ता, नेता सार्वजनिक स्थानों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर खुल्लमखुल्ला चोर होने का आरोप लगा रहे हैं, जिसका कोई पुख्ता आधार नहीं है।
देश के दो सबसे बड़े राजनीतिक दलों के एक-दूसरे के नेताओं पर झूठे आरोप लगाने के ये दो उदाहरण पब्लिक डोमेन में हैं, इसलिए ये दो उदाहरण उनके झूठ को प्रमाणित करने के पुख्ता प्रमाण हैं। इस तरह के न जाने कितने झूठ ये दल रोज फैलाते हैं। सिर्फ एक झूठ को सौ बार दोहराकर सच साबित करने में जुटे रहते हैं। ऐसा नहीं कि यही दो राजनीतिक दल झूठ बोल रहे हैं, बल्कि सभी राजनीतिक दल अपने-अपने स्तर पर झूठ बोलते हैं और झूठ साबित होने के बाद भी उसे सच की तरह दोहराते रहते हैं।
आम चुनाव के बाद इन्हीं राजनीतिक दलों में एक या फिर कुछ दलों का गठबंधन देश की सत्ता पर आसीन होता है, जिन दलों की बुनियाद ही झूठ पर टिकी हुई है। झूठ की बुनियाद पर टिके हुए ये दल क्या हमारे लोगतंत्र को सच्चााई की राह पर ले जा सकते हैं?
यह समस्या इसलिए और अधिक गहरा गई है कि देश दलों में विभाजित हो गया है। जिस दल से व्यक्ति जुड़ा है, वह उस दल का इस तरह अंध भक्त बन गया है कि इसके झूठ को भी झूठ मानने को तैयार नहीं है। इन हालात में किसी व्यक्ति के सभी पक्षों पर विचार करने के बाद लोकतांत्रिक आधार पर वोट करने की संभावनाएं खत्म हो जाती हैं। फिर लोकतंत्र की दुहाई देने का औचित्य ही कहां रह जाता है।
देश भ्रष्टचार से भी गहराई से जूझ रहा है। चुनाव जीतने के लिए चंदा लेना और चंदे में काले धन को भी सफेद करने की परंपरा बहुत पुरानी है। सन् 2005 में देश में सूचना का अधिकार आया। यदि राजनीतिक दलों को इस कानून के दायरे में रखा गया होता तो संभव है, उनके भ्रष्टाचार पर कुछ अंकुश लगता, लेकिन राजनीतिक दलों ने अपने को सूचना के अधिकार कानून के दायरे से बाहर रख लिया और उनके भ्रष्ट कारनामों की पोल खोलने का जो एक रास्त बना था, उसे इन्होंने मिलकर बंद कर दिया।
इस तरह हमारे देश के राजनीतिक दलों की बुनियाद झूठ और भ्रष्टचार पर टिकी हुई है, इनसे लोकतंत्र को बचाये रखने, लोकतांत्रित मूल्यों की सुरक्षा करने की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। यह तो लोकतंत्र की आड़ लेकर सत्ता हथियाने की चाल है। जिसे देश की अधिकांश जनता 70 साल बाद भी नहीं समझ पा रही है।