मुंस्यारी। सीमांत क्षेत्र मिलम का भ्रमण कर लौटे एससीएसटी आयोग के उपाध्यक्ष गणेश मर्तोलिया ने वहां की बदहाल व्यवस्था का खाका खींचा। उन्होंने बताया कि लोगों को सीमांत गांवों तक पहुंचने के लिए आज भी 65 किमी तक पैदल चलना पड़ता है। इस सामारिक महत्व के क्षेत्र में मिलम तक सड़क बनाने की जिम्मेदारी 2008 में बीआरओ को सौंपी गई थी, 2012 तक इसे पूरा किया जाना था। 2022 तक भी इसका अता-पता नहीं है। इस क्षेत्र में सड़क की बात कौन कहे पैदल रास्तों के भी बुरे हाल हैं। लोग जान जोखिम में डालकर यहां से गुजरते हैं।
एससीएसटी आयोग के उपाध्यक्ष गणेश मर्तोलिया अभी हाल में मिलम, दुंग, गनघर समेत माइग्रेशन गांवों से होकर लौटे हैं। वह पैदल इन गांवों में पहुंचे। उन्होंने मुंस्यारी-दुंग पैदल मार्ग की बदहालत के लिए लोक निर्माण विभाग की कार्यशैली पर सवाल उठाए। इस क्षेत्र में हर साल इन बदहाल रास्तों से हजारों पर्यटक मिलम ग्लेशियर तक आते हैं। हालात यह हैं कि पिछले छह माह से यहां लोक निर्माण विभाग का कोई जिम्मेदार अधिकारी नहीं गया है। सिर्फ एक अस्थायी लेबर के भरोसे इस पूरे क्षेत्र की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
इतना ही नहीं मिलम और नंदा देवी ग्लेशियर को जोड़ने के लिए गोरी नदी पर बना लोहे का पुल दोनों तरफ से नदी की ओर झुक गया है। गार्डर से तार डालकर इस पुल से आवाजाही की जा रही है। जो बहुत ही जोखिम भरा और खतरनाक है। किसी बड़ी दुर्घटना को आमंत्रित कर रहा है। इस पुल को बने सिर्फ आठ साल हुए हैं, यह बनने के बाद ही झुकना शुरू हो गया था, अब हालात और खराब हो गए हैं। अक्टूबर तक यहां पर्यटक बड़ी संख्या में आते हैं और यह माइग्रेशन गांवों का उच्च हिमालय स्थित अपने गांवों को छोड़कर नीचे आकर बसने का सीजन भी है। लेकिन लोक निर्माण विभाग इस सबसे बेखबर बना हुआ है। मिलम तक सड़क बनाने के लिए 2008 में कार्य शुरू हुआ था, बीआरओ को यह सड़क 2012 तक पूरा करने का लक्ष्य दिया गया था, 2022 तक भी सड़क पहुंचने के कोई आसार नहीं हैं।
इस क्षेत्र का दौरा कर लौटे एससीएसटी आयोग के उपाध्यक्ष गणेश मर्तोलिया कहते हैं कि यदि सीमांत क्षेत्र से पलायन रोकना है तो काश्तकारों को जड़ी बूटी की खेती से जोड़ना होगा। इससे उन्हें रोजगार मिलेगा और इस सीमांत क्षेत्र के पुनः आबाद होने की संभावना इसी पर बनी हुई है। सरकार को चाहिए कि इन सीमांत और संवेदनशील गांवों को फिर से बसाने के प्रयास होने चाहिए तथा हर्बल कृषिकरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।