डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला:
नैनीताल में नैनीझील पर्यटकों के बीच खासी लोकप्रिय है। लेकिन नैनीझील को पानी देने वाली झील का नाम है सूखाताल झील। सूखाताल झील में पानी रहेगा तो नैनीझील अपने आप पानी से भरी रहेगी। नैनी झील को सूखाताल से भूजल मिलता है जिससे इसका पानी का स्तर बना रहता है। इसलिए नैनीताल प्रशासन सूखाताल झील को पुनर्जीवित करने का अभियान चला रही है। कुमाऊं के मण्डलायुक्त ने प्रशासनिक अमले के साथ सूखाताल झील का निरीक्षण किया।
उन्होंने अधिकारियों को सूखाताल झील में पानी की स्टोरेज क्षमता बढ़ाने के निर्देश दिए। झील में ज्यादा पानी रहेगा तो शहर में पानी की आपूर्ति भी सुनिश्चित की जा सकेगी। मण्डलायुक्त ने अधिकारियों को ये सुनिश्चित करने को कहा कि बारिश का एक बूंद पानी भी व्यर्थ न जाए। सूखाताल को पुनर्जीवित करना है। साथ ही इसका सौंदर्यीकरण भी करना है। इसका ज़िम्मा कुमाऊं मंडल विकास निगम यानी केएमवीएन को सौंपा गया है। इसके साथ ही सिंचाई विभाग और जल संस्थान भी झील के सौंदर्यीकरण पर काम करेंगे।
सूखाताल झील को पर्यटन के लिहाज से भी संवारने पर भी काम किया जाएगा। इसमें पार्किंग स्थल, लाइटिंग की व्यवस्था भी है। नेशनल इंस्टिट्यूट आफ हाइड्रोलाॅजी” का मानना है कि ये इलाका जो कि मानसून के दौरान एक झील में बदल जाता है, एक बहुत ही बड़ा भूमिगत बहता हुआ जल भंडार है, जो नैनीताल के तालाब में आने वाले जल प्रवाह का करीब 40 प्रतिशत भाग का योगदान करता है। अभी चर्चा का कारण यह है कि सरकार इसके “सौंदर्यीकरण” आधारित “पुर्नजीवन” के नाम पर करीब 27 करोड़ की एक परियोजना पर काम कर रही है।
इसे जिला प्रशासन सरकार की पर्यटन विकास एक महत्वाकांक्षी योजना बताती है। नैनीताल के पर्यावरण के प्रति चिंतित रहने वाले लोगों को इस अवैज्ञानिक पुर्नजीवन के बारे में जानकारी तभी मिल पायी जब सूखाताल में भारी-भरकम जेसीबी मशीनों के साथ सीमेंट-सरिया आदि का सुबह से देर शाम तक काम होते दिखा। बाद में यह भी पता चला कि कई महीनों पहले प्रशासन ने एक बैठक करके नगर के कतिपय गणमान्य लोगों के साथ बैठक करके इस परियेाजना पर उनकी “सहमति” की खानापूरी कर ली थी। लेकिन आम जनता में इस परियोजना की कोई भनक तक नहीं थी। इसलिए निर्माण कार्य शुरू होने के बाद शहर में नैनीताल के अस्तित्व को लेकर कई आशंकाऐं व्यक्त की जाने लगी। अंततः इन लोगों ने इस संबध में प्रशासन से विचार विमर्श की मांग की गई और पर्यावरण एनजीओ “सीडार” की पहल पर प्रशासन ने 14 जुलाय को एक सिविल सोसायटी की बैठक कर इस संबध में परियोजना के बारे में बताया।
इस सभा में भारी संख्या में स्थानीय लोगों ने भाग लिया जो यह दर्शाता है कि वास्तव में लोग इस परियोजना को लेकर चिंतित हैं। इस बैठक में बहुत अधिक संख्या में नागरिकों का भाग लेने से यह स्पष्ट है कि नैनीताल के नागरिक नैनीताल के अस्तित्व को लेकर चिंतित हैं। नैनीताल में जब भी संरक्षण के लिए पैसा आता है तो सरकार जगह जगह पर सौंदर्यीकरण के नाम पर भारी भरकम निर्माण कार्य करवा देती है। आमतौर पर प्रकृति के बीच में ऐसा तथाकथित सौंदर्यीकरण आंखों में चुभने लगता है। पर प्रशासन को इस बात से कोई मतलब नहीं होता है कि निर्माण कार्य के परिणाम क्या होते हैं, न ही इन निरर्थक और बेहूदे कामों के लिए किसी की जिम्मेदारी तय की जाती है।
नैनीताल में न पार्किंग की पर्याप्त व्यवस्था है न ही कूड़ा निस्तारण की व्यवहारिक व्यवस्था। जिसके कारण यहां के पर्यावरण में प्रदूषण बुरी तरह बढ़ रहा है। इसलिए नैनीताल का पर्यटन अनियंत्रित श्रेणी में है। हर काम केवल इंजीनियरिंग की दृष्टि से ही किया जाता है और कभी भी पारिस्थिकीय बारीकियों पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया गया है। सौंदर्यीकरण का अर्थ कृत्रिम कंक्रीट की संरचनाऐं मान लिया गया है। आमतौर पर सिविल सोसायटी या पर्यावरण के नाम पर प्रशासन की तरफदारी करने वाले कुछ लोगों की सहमति लेकर खानापूरी कर ली जाती है। प्रदूषण का सबसे बुरा परिणाम यह है कि नैनी झील जो कि यहां के आकर्षण का आधार है, बीमार है, उसे तक “एरियेसन” के जरिये बचाया गया है।
सौंदर्यीकरण के धंधे की नजर अब नैनीझील की गंगोत्री सूखाताल पर पड़ गयी है। जिसमें पारिस्थिकीय पहलुओं की जानबूझ कर उपेक्षा की जा रही है। जिसके दुष्परिणाम रातों रात तो सामने नहीं आयेंगे बल्कि लंबे समय के बाद दिखेंगे। तब तक कहीं ये छेड़ाखानी सहने की सीमाओं से बाहर न हो जाय। इसलिए जानकार व जागरूक नागरिकों को अभी इसके लिए कोशिश करनी चाहिये। इस बात की संभावना नहीं है कि सरकार बैठकों, विचार-विमर्शों से अपने इरादों और निर्णय को बदल दे। जाहिर है इसके लिए न्यायिक उपायों तक सोचना होगा।
यदि सरकार सूखाताल को “पुर्नजीवित” करने के प्रति वास्तव में गंभीर है तो क्यों नहीं ईकोलाॅजी और प्रकृति आधारित सस्ती और व्यवहारिक तकनीकों से पुर्नजीवन और सौंदर्यीकरण को करे। जिसमें सीमेंट-कंक्रीट न हो, सदाबहार ताल और फूड प्लाजा जैसी चमक-धमक भले ही न हो पर निश्चित रूप से नैनी झील और सूखाताल के जल भंडारों को संरक्षित करने का वैज्ञानिक प्रयास हो। ख्याति प्राप्त सरोवर नगरी नैनीताल में कभी नैनीझील की तरह सूखाताल झील भी पानी से लबालब हुआ करती थी। उसमें नावें भी चलती थीं और आसपास हरियाली भी थी।पर्यटन मानचित्र पर दर्ज यह झील कालांतर में अतिक्रमण और उपेक्षा की शिकार बन गई।
गर्मी के दिनों में यहां आने वाले पर्यटक आकर्षकविहीन इस झील को दूर से देखकर जाते रहे।अब हाईकोर्ट की सख्ती के बाद अतिक्रमण हटाकर झील को पुराने स्वरूप में लाने की कोशिश हो रही है। नैनीताल की खोज करने वाले ब्रितानी पीटर बैरन की पुस्तक ‘वांडरिंग इन द हिमाला’ और ‘आगरा अखबार’ में सूखाताल झील के अस्तित्व में होने का जिक्र है। याचिकाकर्ता का कहना है कि पीटर बैरन की पुस्तक ‘वांडरिंग इन द हिमाला’ में सूखाताल का जिक्र है। यह झील लोक परंपरा के साथ भी जुड़ी रही।नैनीझील में स्नान करने वाले लोग सूखाताल को देवी का निवास मानते हुए वहां मत्था टेकते थे और बारापत्थर से शहर से बाहर जाते थे।
उन्होंने कहा कि 1971 में वेटलैंड (साल भर पानी से भरी रहने वाली भूमि अथवा दलदल) के संरक्षण के संबंध में अंतरराष्ट्रीय संधि पर भारत समेत 168 देशों ने हस्ताक्षर किए थे।इसी क्रम में 1987 में भारत सरकार ने वेटलैंड बोर्ड बनाया। प्रदेश का मुख्य सचिव इसका अध्यक्ष होता था, लेकिन दुर्भाग्यवश उत्तराखंड में इसका गठन नहीं हो पाया है। इसी कारण से धीरे-धीरे यहां की झीलें उपेक्षित होती रहीं। वरिष्ठ समाजसेवी तथा 1971 से 77 तक नगर पालिका सभासद रहे राजेंद्र लाल साह का कहना है कि सरकार रेन वाटर हार्वेस्टिंग पर अरबों रुपए खर्च कर रही है, लेकिन प्राकृतिक झील सूखाताल की उपेक्षा हो रही है।उन्होंने आजादी के दौर की सूखाताल झील के फोटोग्राफ का जिक्र करते हुए कहा कि नैनीताल खोज के दौरान भी सूखाताल झील अस्तित्व में थी।
उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के जल संरक्षण का जिक्र करते हुए कहा कि उनके बाद 1950 तक नैनीझील के जल को पीने के लिए उपयोग में नहीं लाया जाता था। सूखाताल की भूमि में जल शोषण क्षमता हिमालयी क्षेत्रों के अन्य स्रोतों के मुकाबले सर्वाधिक है। इन कारणों से सूखाताल के नीचे एक गतिमान जल भंडार है, जो नैनीताल की झील व अन्य जल स्रोतों को साल भर जल आपूर्ति करता है। इसलिए सूखाताल जलग्रहण के लिए भी एक विशिष्ट संरचना है। सिविल सोसायटी की ओर से कहा गया है कि नैनीताल जैसे संवेदनशील स्थानों पर होने वाले किसी भी परियोजना में पारिस्थिकी (ईकोलोजी) को शीर्ष प्राथमिकता मिलनी चाहिये।
लेकिन इस परियोजना में कहीं पर भी पारिस्थिकी के किसी भी आयाम पर ध्यान नहीं दिया गया है। भूगर्भवेत्ता के अनुसार सूखाताल ताल क्षेत्र के ठीक बीच से नैनीताल की फाल्ट लाइन गुजरती है। भूगर्भ में फाॅल्ट लाइन का अर्थ भूगर्भीय दरार होता है। ये दरार यहां से होकर बलियानाला से गुजर कर काठगोदाम तक जाती है। इस दरार के कारण पूरा नैनीताल भंयकर रूप से संवेदनशील माना जाता है। भूगर्भवेत्ताओं के अनुसार सूखाताल की उत्पत्ति इसी दरार के धंसने के कारण हुई है। इसलिए इसके उपर किसी किस्म का निर्माण और छेड़छाड़ देर-सबेर खतरनाक हो सकती है। इस दिशा में गंभीरता से कार्य करने की जरूरत है।












