विधायक को पास प्रकरण की जांच को कमेटी गठन पर सरकार नहीं तैयार
मुख्य सचिव बोले, सरकार को पुलिस जांच पर भरोसा
क्या पास जारी करने की प्रक्रिया भी जांचेंगे दारोगाजी
लॉकडाउन तोड़ने के आरोप में ही हैं एक एफआईआर
मामूली धारा की वजह से थाने से ही छूट गए आरोपी
न्यूज वेट ब्यूरो
यूपी के विधायक के लॉकडाउन तोड़ने की जांच करने वाले कोई दारोगाजी क्या अपर मुख्य सचिव और देहरादून जिला प्रशासन के बयान तलब करेंगे। अगर ऐसा नही है तो फिर मुख्य सचिव ने मीडिया से यह क्यों कहा कि सरकार को पुलिस की जांच पर भरोसा है।
मुख्य सचिव ने जो कहा उसके आधार पर तो यही कहा जा सकता है कि इस हाइप्रोफाइल मामले में सरकार ने यूपी के मुख्यमंत्री के नाम का सहारा लेकर पैरवी करने वाले अपर मुख्य सचिव और नियमों से बाहर जाकर परमिशन देने वाले देहरादून जिला प्रशासन को बचा लिया है। लगता है कि इस मामले में नौकरशाहों पर जांच की कोई आंच नहीं आने वाली।
सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि जैसा कि मुख्य सचिव ने मीडिया से कहा है कि इस मामले में अलग से कोई जांच कमेटी नहीं बनाई जाएगी, इससे स्पष्ट होता है कि लॉकडाउन तोड़कर दस साथियों के साथ उत्तराखंड में सैर सपाटा करने वाले यूपी के विधायक अमनमणि त्रिपाठी के मामले में सरकार केवल थाने में दर्ज मुकदमे तक ही सीमित रहना चाहती हैं। यह तो मालूम ही है कि मुनिकी रेती थाना में केवल लॉकडाउन तोड़ने वालों पर ही मुकदमे हैंए न कि लॉकडाउन तोड़ने में मदद करने वालों पर।
अगर हम यह भी मान लेते हैं कि पुलिस उन कारणों की भी जांच करेगीए जिनकी वजह से विधायक को लॉकडाउन तोड़ने का मौका मिला, तो क्या विधायक त्रिपाठी को दस लोगों के साथ उत्तराखंड घूमने देने की अनुमति की पैरवी करने वाले अपर मुख्य सचिव और पास जारी करने देहरादून जिला प्रशासन के अधिकारी भी जांच के दायरे में आएंगे। ऐसे में पुलिस को यूपी के विधायक को पास जारी करने की प्रक्रिया को भी जांचना होगा। अगर ऐसा होता है तो क्या मुनिकी रेती थाना के दारोगा स्तर के जांच अधिकारी अपर मुख्य सचिव और देहरादून जिला प्रशासन के अधिकारी का जवाब तलब करेंगे।
अब मीडिया को मुख्य सचिव के बयान से सरकार की मंशा का पता चल गया होगा, इसलिए सरकार से किसी नौकरशाह पर किसी कार्रवाई की उम्मीद रखना सही नहीं होगा, भले ही सोशल मीडिया पर कितना ही शोर क्यों न मचा हो। देखते रहो, आगे क्य़ा होता है।