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स्वांग’ परंपरा के बिना अधूरी है कुमाऊं की होली

07/03/25
in उत्तराखंड, देहरादून
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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
होली सिर्फ रंगों का त्योहार ही नहीं, बल्कि परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर का अनोखा प्रतीक है. उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में होली की अनूठी परंपराएं देखने को मिलती हैं, जिनमें से प्रमुख है ‘स्वांग’ की परंपरा. यह परंपरा न केवल मनोरंजन का जरिया है, बल्कि इसके पीछे गहरी सांस्कृतिक और सामाजिक मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं. कुमाऊं की होली में स्वांग का मतलब विभिन्न किरदारों के द्वारा हास्य और व्यंग्य से भरपूर प्रस्तुतियां देना होता है. इस परंपरा में होलियार (होली गाने और खेलने वाले लोग) अलग-अलग वेशभूषा धारण कर विभिन्न सामाजिक मुद्दों, पौराणिक कथाओं या समसामयिक विषयों पर आधारित नाटक करते हैं. होली में स्वांग की परंपरा रही है, पुराने जमाने में महिलाएं स्वांग के जरिए समाज में फैली कुरीतियों को लेकर लोगों को जागरूक करती थी, वहीं अब स्वांग के जरिए समाज को बेटी बचाओ, पर्यावरण संरक्षण जैसे तमाम सामाजिक मुद्दों के लिए जागरूक किया जाता है. वहीं दूसरी तरफ स्वांग होली में हंसी मजाक और मनोरंजन का भी जरिया है. बिना स्वांग के होली अधूरी है. कुमाऊं की होली केवल रंगों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें संगीत, नृत्य, नाटक और स्वांग जैसी परंपराएं भी शामिल हैं, जो इसे खास बनाती हैं. होली 3 मुख्य रूपों में मनाई जाती है, बैठकी होली, खड़ी होली और महिला होली. बैठकी होली में शास्त्रीय रागों पर आधारित होली गीत गाए जाते हैं, जबकि खड़ी होली में होलियार पारंपरिक परिधानों में नृत्य और गायन करते हैं. महिला होली में महिलाएं एकत्र होकर होली के गीत गाती हैं और पारंपरिक अंदाज में त्योहार का आनंद लेती हैं. वह होली ही क्या जिसमें हंसी, ठिठोली, मतवालापन न हो…। यहां सिर्फ पुरुषों की बात करना बेईमानी होगी। पहाड़ की होली महिलाओं की भागीदारी के बिना अधूरी है, चाहे वह खड़ी होली हो या बैठकी होली। उत्तराखंड के जनकवि एवं प्रसिद्ध रंगकर्मी स्व. गिरीश तिवारी गिर्दा ने भी एक पुस्तक में लिखा था कि होली का एक स्वरूप महिलाओं की होली भी है। महिलाओं की होली स्वतंत्र अध्ययन की मांग करती है। काहे करत तकरार..गरबा लगा ले रह गए, अब तो सावन के दिन चार कुछ ऐसे गीत हैं जिन्हें महिला और पुरुष दोनों ही गायक महफिलों में गाना पसंद करते हैं। पाश्चात्य संस्कृति हावी हुई है अब तो लोग बैठकी होली में भी बॉलीवुड के गाने बजाने लगे हैं जो अखरता है। ऐसे आयोजनों की आवश्यकता है, जिसमें नई पीढ़ी और बुजुर्गों के बीच चर्चा हो। हम लोग सांस्कृतिक मंचों से जुड़े हैं और नई पीढ़ी को भी इनसे जुड़ना चाहिए। कई विदेशी नागरिक भी आज हमारी संस्कृति को अपना रहे हैं, मगर हमारे युवा इसे संजो के रखने में फेल साबित हो रहे हैं।फिल्मी होली और हमारी कुमाऊं की होली में बहुत अंतर है। हमारी होली संस्कृति, रीति-रिवाज, पहनावा, खान-पान से जुड़ी है। इसमें हुल्लड़ है, जिंदगी का आनंद है और सबसे अच्छी बात है कि आपसी संबंध प्रगाढ़ होते हैं महिला होलियारों ने बताया कि होली महोत्सव कराने का मकसद है कि पहाड़ की महिलाओं को अपनी संस्कृति और कला को लोगों तक पहुंचाना है. बैठकी होली की तरह ही यहां महिला होली भी मनाई जाती है। जहां महिलाओं की बैठकें लगती हैं। जिसमें गीत-संगीत सिर्फ महिलाओं पर ही आधारित होते हैं। राग-दादरा और राग कहरवा में गाए जाने वाले कुमाऊंनी होली में राधा कृष्ण, राजा हरिशचन्द्र, श्रवण कुमार सहित रामायण और महाभारत काल की गाथाओं का वर्णन भी किया जाता है।लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।

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