डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक नगरी अल्मोड़ा से ही बाल मिठाई और सिंगौड़ी का आविष्कार हुआ था। बाल मिठाई का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। पर्वतीय शहर अल्मोड़ा में बाल मिठाई के जनक हलवाई जोगा लाल शाह माने जाते हैं। जोगा लाल शाह ने ही सबसे पहले ब्रिटिश शासनकाल में सन् 1865 में बाल मिठाई का निर्माण शुरू किया था। धीरे.धीरे बाल मिठाई ने अपनी पहचान बनानी शुरू कर दी। आज अल्मोड़ा शहर में जोगा लाल शाह की दुकान के साथ ही खीम सिंह, मोहन सिंह समेत दर्जनों दुकानें बाल मिठाई को बनाने लगे। आज बाल मिठाई न केवल अपने देश में प्रसिद्ध है, बल्कि विदेशों में भी अपनी पहचान बना चुकी है।
बाल मिठाई की एक खासियत ये भी है कि ये जल्दी खराब नहीं होती है। जोगा लाल शाह की दुकान को आज उनकी पांचवीं पीढ़ी यहां लाला बाजार में चला रही है। उनके पौत्र निखिल शाह बताते हैं कि सबसे पहले बाल मिठाई के निर्माता उनके परदादा ही थे। सुना है कि उस दौर में अंग्रेज भी बाल मिठाई को पसंद करते थे। वो यहां से बाल मिठाई पानी के जहाज से ले जाते थे। आज भी ये मिठाई अमेरिका, जर्मनी, आस्ट्रेलिया समेत कई देशों में पसंद की जाती है। अल्मोड़ा की बाल मिठाई, सिंगौड़ी और चॉकलेट देश ही नहीं, बल्कि विदेश में भी खासी मशहूर है। लोग सौगात के रूप में यही तीन मिठाइयां लेकर यहां से जाते हैं। यहां बाल मिठाई बनाने का इतिहास लगभग सौ साल पुराना है। इसके स्वाद और निर्माण के परंपरागत तरीके को निखारने का श्रेय मिठाई विक्रेता स्व. नंद लाल साह को जाता है, जिसे आज भी खीम सिंह मोहन सिंह रौतेला और जोगालाल साह के प्रतिष्ठान संवार रहे हैं। बाल मिठाई को आसपास के क्षेत्र में उत्पादित होने वाले दूध से निर्मित खोए से तैयार किया जाता है। इसे बनाने के लिए खोए और चीनी को एक निश्चित तापमान पर पकाया जाता है। लगभग पांच घंटे तक इसे ठंडा करने के बाद इसमें रीनी और पोस्ते के दाने चिपकाए जाते हैं। जिसे बाद में छोटे.छोटे टुकड़ों में काटा जाता है। ऐसा ही बेजोड़ स्वाद सिंगौड़ी का भी है। सिंगौड़ी मालू के पत्ते में लपेटी जाती है और इसे कोन का आकार दिया जाता है। यहां के परंपरागत व्यजनों का लुत्फ भी सैलानी आसानी से उठा सकते हैं।
ऐतिहासिक नगरी अल्मोड़ा की चर्चित बाल मिठाई लोगों के जुबां में मिठास बनाए हुए है। वहीं अल्मोड़ा की बाल मिठाई, सिंगौड़ी और चॉकलेट की देश ही नहीं, बल्कि सात समुंदर पार भी खासी मशहूर है। जिसको बनाने का इतिहास काफी पुराना है। महात्मा गांधी ने भी 1929 में अल्मोड़ा आजादी आंदोलन में मिठाई का स्वाद लिया था। 24 नवम्बर को तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने हरीश लाल शाह को दिल्ली तीन मूर्ति भवन में बुलाकर मिठाई का स्वाद लिया। आज भी वही स्वरुप में मिठाई बिकती है। समय बदला लेकिन आज भी इस बाल मिठाई के मूल स्वरूप व गुणवत्ता पर कोई अंतर नहीं आया है बौद्धिक संपदा अधिकार और भौगोलिक संकेत के माल सुरक्षा अधिनियम 1999 के तहत स्थानीय व्यंजनों व मिठाइयों को पेटेंट किया जा सकता कुमाऊं का सांस्कृतिक शहर अल्मोड़ा के कुमाऊं क्षेत्र की सबसे प्रसिद्ध मिठाई बाल मिठाई ही है। पहाड़ के लोगों को जड़ों की ओर लौटना ही होगा। यहां की परंपराएंए मान्यताओं का संरक्षण नहीं होगा तो इसका समाज पर नकारात्मक असर पडऩा तय है। ताउम्र इनका जायका नहीं भूलने वाले है। पहाड़ के लोगों को जड़ों की ओर लौटना ही होगा। यहां की परंपराएं, मान्यताओं का संरक्षण नहीं होगा तो इसका समाज पर नकारात्मक असर पडऩा तय है।