• About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact
Uttarakhand Samachar
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
Uttarakhand Samachar

अनियोजित विकास से बेचैन हैं पर्वतराज हिमालय

18/03/25
in उत्तराखंड, देहरादून
Reading Time: 1min read
0
SHARES
19
VIEWS
Share on FacebookShare on WhatsAppShare on Twitter

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
पर्वतीय क्षेत्र में विकास के लिए किया जाता है तो इससे आने वाली चुनौतियों से पहले ही निपटा जा सकेगा.हिमालयी ग्लेशियर कई मील सिकुड़ चुके हैं. यदि यही सिलसिला जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं जब संपूर्ण पर्वतीय क्षेत्र भूस्खलन की मार झेलने को विवश होगा.” सरकारों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती होती है पहाड़ों में रहने वाले लोगों के लिए बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना. उत्तराखंड एक सीमावर्ती राज्य है. इसलिए स्वाभाविक है कि सुरक्षा जरूरतों को ध्यान में रख कर सड़कों का निर्माण किया जाए. भारत-चीन सीमा पर निर्माण कार्य में लगे हुए मजदूरों के हितों की रक्षा सरकार की जिम्मेदारी है. हिमस्खलन के बाद मजदूरों को बचाने के लिए जो कोशिशें हुईं उसकी सराहना की जानी चाहिए. लेकिन ग्लेशियर वाले इलाकों में किसी भी संरचना के निर्माण के पहले सावधानी बरतने की जिम्मेदारी भी सरकार की ही है.यह सच है कि भूस्खलन की भविष्यवाणी संभव नहीं है. लेकिन भौगोलिक परिस्थितियों का नियमित अध्ययन कर खतरे का अनुमान लगाया जा सकता है. वनों और पहाड़ों के संरक्षण हेतु स्थानीय लोगों के अनुभवों को सुनना जरूरी है. पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट का मानना है कि, “आज पूर्व सूचना तंत्र स्थानीय, हिमालयी, एशियाई और वैश्विक स्तर पर होना चाहिए, ताकि मानव जीवन को आपदाओं से बचाया जा सके. इसके लिए भारत, चीन, नेपाल और भूटान का एक संयुक्त तंत्र बनना चाहिए. हिमस्खलन और भूस्खलन से लेकर बाढ़ सुरक्षा तक के लिए यह जरूरी है. साथ ही, बारिश की मारक क्षमता को कम करने के कार्य भी बड़े पैमाने पर होने चाहिए. हिमनदों, हिमतालाबों, बुग्यालों और जंगलों की संवेदनशीलता की भी व्यापक जानकारी होनी चाहिए.” समूचा हिमालय क्षेत्र आज अवैज्ञानिक और अनियोजित विकास के तहत भारी मात्रा में इस्तेमाल किए जाने वाले विस्फोटों से भीतर तक हिल गया है. इसके परिणामस्वरूप यहां हर दो किलोमीटर बाद एक भूस्खलन तथा दस किलोमीटर पर विशाल भूस्खलन सक्रिय हैं.हिमालय की पीड़ा को कुछ इस तरह व्यक्त करते हैं, “पहाड़ के पहाड़ खिसकने-टूटने की घटनाएं अब सामान्य हो गयी हैं. बाढ़ और भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाओं की बारंबारता बढ़ गयी है. सड़कों, नहरों के जाल ने यहां के पर्यावरण के संतुलन को ही डगमगा दिया है. अनेक प्रकार के वन्य जीव अब दिखाई नहीं देते. कई किस्म की जड़ी-बूटियां अब उग नहीं रहीं. जंगल अब बचे ही कहां हैं. हालात यहां तक बन आए हैं कि मध्य, उत्तर हिमालय तथा वृहत्तर हिमालय में ‘बर्फ रेखा’ (स्नो लाइन) तेजी से ऊपर की ओर बढ़ रही है. यानी पहले जिस ऊंचाई पर हिमपात होता था, अब और भी ऊंचाई में होने लगा है. हमारे देश की तुलना में यूरोप में यह ‘बर्फ-रेखा’ काफी नीची है. हिमालय में स्थित विभिन्न तालों, झीलों का जलस्तर तेजी के साथ घट रहा है. ग्लेशियर पिघल रहे हैं; कुछ तो समाप्त भी हो गये हैं.”हिमालय के समाज तथा वहां की प्रकृति के कष्टों को केवल स्थानीय समस्या मान कर ही नहीं देखा जाना चाहिए. साथ ही हिमालय की ओर देखने की वह दृष्टि भी बदलनी पड़ेगी जो वहां की नदियों और वन संपदा को आर्थिक लाभ के लिए दुहना चाहती है. कोहिमा से कश्मीर तक विस्तृत पर्वतीय क्षेत्र की जानकारी रखने वाले के अनुसार, “पिछले कुछ दशकों में विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों के दोहन ने स्थानीय लोगों को उनके प्रकृति प्रदत्त अधिकारों से भी वंचित कर दिया है.” तय करना होगा कि हमें हिमालय की नदियों को दांव पर लगा कर कुछ वर्षों के लिए बिजली चाहिए या हमेशा के लिए अच्छी हवा, साफ पानी और सुरक्षित पर्यावरण. वैज्ञानिक मानते हैं कि हिमस्खलन की 90 प्रतिशत घटनाएं मानव जनित होती हैं और अक्सर वे मानव भी हादसे का शिकार हो जाते हैं. हिमस्खलन 320 किलोमीटर प्रति घंटे से भी अधिक तेज गति से गिर सकता है.
केदारनाथ हादसे के बाद आपदा प्रबंधन के स्तर पर काफी सुधार हुआ है. लेकिन हिमालय क्षेत्र में प्रकृति के साथ संतुलन बनाने के लिए बहुत कुछ किया जाना अभी बाकी है. पवित्र चार धाम – बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री हिमनदों के अंचल में ही स्थित है. इन तीर्थ स्थलों में लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं. हजारों वाहन आते हैं. तेज आवाज वाले हेलीकॉप्टरों का काफिला शांत प्रकृति को हिला देता है. शहरीकरण के लिए आधारभूत संरचना का निर्माण हो रहा है. परिणाम यह है कि ग्लेशियर साल-दर-साल घटते जा रहे हैं. पर्यावरण वैज्ञानिक ग्लेशियर को बचाने के लिए चिंतित हैं. वह इसके लिए सुझाव भी देते हैं. का मानना है कि “जिन चट्टानों पर ग्लेशियर टिके हों, वहां किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए. तापक्रम बढ़ने से ग्लेशियर का पिघलना सामान्य बात है, लेकिन उन पर गिरने वाली बर्फ से भरपाई होती रहे, तो उनका संतुलन बना रहता है.” पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश में भारी हिमपात और बारिश के कारण भूस्खलन हुआ. राज्य की प्रमुख सड़कें एवं राष्ट्रीय राजमार्ग बाधित रहे. कुल्लू, लाहौल-स्पीति, किन्नौर, चंबा और शिमला में जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया. अधिकारियों के अनुसार 2,300 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले जनजातीय क्षेत्रों और अन्य ऊंचाई वाले इलाकों में हिमस्खलन का खतरा है. स्पष्ट है कि अत्यधिक मानवीय हस्तक्षेप के कारण हिमालय के वातावरण में कई बदलाव आ रहे हैं. हिमालय के असीम व अलौकिक सौंदर्य और बेशकीमती प्राकृतिक संपदा की रक्षा हेतु गंभीर प्रयास जरूरी है. उत्तराखंड एवं अन्य हिमालयी राज्यों का विकास पर्यावरण के अनुकूल होना चाहिए।हिमालयी ग्लेशियर कई मील सिकुड़ चुके हैं. यदि यही सिलसिला जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं जब संपूर्ण पर्वतीय क्षेत्र भूस्खलन की मार झेलने को विवश होगा.” सरकारों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती होती है पहाड़ों में रहने वाले लोगों के लिए बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना. उत्तराखंड एक सीमावर्ती राज्य है. इसलिए स्वाभाविक है कि सुरक्षा जरूरतों को ध्यान में रख कर सड़कों का निर्माण किया जाए. भारत-चीन सीमा पर निर्माण कार्य में लगे हुए मजदूरों के हितों की रक्षा सरकार की जिम्मेदारी है. हिमस्खलन के बाद मजदूरों को बचाने के लिए जो कोशिशें हुईं उसकी सराहना की जानी चाहिए. लेकिन ग्लेशियर वाले इलाकों में किसी भी संरचना के निर्माण के पहले सावधानी बरतने की जिम्मेदारी भी सरकार की ही है.यह सच है कि भूस्खलन की भविष्यवाणी संभव नहीं है. लेकिन भौगोलिक परिस्थितियों का नियमित अध्ययन कर खतरे का अनुमान लगाया जा सकता है. वनों और पहाड़ों के संरक्षण हेतु स्थानीय लोगों के अनुभवों को सुनना जरूरी है. पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट का मानना है कि, “आज पूर्व सूचना तंत्र स्थानीय, हिमालयी, एशियाई और वैश्विक स्तर पर होना चाहिए, ताकि मानव जीवन को आपदाओं से बचाया जा सके. इसके लिए भारत, चीन, नेपाल और भूटान का एक संयुक्त तंत्र बनना चाहिए. हिमस्खलन और भूस्खलन से लेकर बाढ़ सुरक्षा तक के लिए यह जरूरी है. साथ ही, बारिश की मारक क्षमता को कम करने के कार्य भी बड़े पैमाने पर होने चाहिए. हिमनदों, हिमतालाबों, बुग्यालों और जंगलों की संवेदनशीलता की भी व्यापक जानकारी होनी चाहिए.” समूचा हिमालय क्षेत्र आज अवैज्ञानिक और अनियोजित विकास के तहत भारी मात्रा में इस्तेमाल किए जाने वाले विस्फोटों से भीतर तक हिल गया है. इसके परिणामस्वरूप यहां हर दो किलोमीटर बाद एक भूस्खलन तथा दस किलोमीटर पर विशाल भूस्खलन सक्रिय हैं.हिमालय की पीड़ा को इस तरह व्यक्त करते हैं, “पहाड़ के पहाड़ खिसकने-टूटने की घटनाएं अब सामान्य हो गयी हैं. बाढ़ और भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाओं की बारंबारता बढ़ गयी है. सड़कों, नहरों के जाल ने यहां के पर्यावरण के संतुलन को ही डगमगा दिया है. अनेक प्रकार के वन्य जीव अब दिखाई नहीं देते. कई किस्म की जड़ी-बूटियां अब उग नहीं रहीं. जंगल अब बचे ही कहां हैं. हालात यहां तक बन आए हैं कि मध्य, उत्तर हिमालय तथा वृहत्तर हिमालय में ‘बर्फ रेखा’ (स्नो लाइन) तेजी से ऊपर की ओर बढ़ रही है. यानी पहले जिस ऊंचाई पर हिमपात होता था, अब और भी ऊंचाई में होने लगा है. हमारे देश की तुलना में यूरोप में यह ‘बर्फ-रेखा’ काफी नीची है. हिमालय में स्थित विभिन्न तालों, झीलों का जलस्तर तेजी के साथ घट रहा है. ग्लेशियर पिघल रहे हैं; कुछ तो समाप्त भी हो गये हैं.”हिमालय के समाज तथा वहां की प्रकृति के कष्टों को केवल स्थानीय समस्या मान कर ही नहीं देखा जाना चाहिए. साथ ही हिमालय की ओर देखने की वह दृष्टि भी बदलनी पड़ेगी जो वहां की नदियों और वन संपदा को आर्थिक लाभ के लिए दुहना चाहती है. कोहिमा से कश्मीर तक विस्तृत पर्वतीय क्षेत्र की जानकारी रखने वाले के अनुसार, “पिछले कुछ दशकों में विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों के दोहन ने स्थानीय लोगों को उनके प्रकृति प्रदत्त अधिकारों से भी वंचित कर दिया है.” तय करना होगा कि हमें हिमालय की नदियों को दांव पर लगा कर कुछ वर्षों के लिए बिजली चाहिए या हमेशा के लिए अच्छी हवा, साफ पानी और सुरक्षित पर्यावरण. वैज्ञानिक मानते हैं कि हिमस्खलन की 90 प्रतिशत घटनाएं मानव जनित होती हैं और अक्सर वे मानव भी हादसे का शिकार हो जाते हैं. हिमस्खलन 320 किलोमीटर प्रति घंटे से भी अधिक तेज गति से गिर सकता है.केदारनाथ हादसे के बाद आपदा प्रबंधन के स्तर पर काफी सुधार हुआ है. लेकिन हिमालय क्षेत्र में प्रकृति के साथ संतुलन बनाने के लिए बहुत कुछ किया जाना अभी बाकी है. पवित्र चार धाम – बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री हिमनदों के अंचल में ही स्थित है. इन तीर्थ स्थलों में लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं. हजारों वाहन आते हैं. तेज आवाज वाले हेलीकॉप्टरों का काफिला शांत प्रकृति को हिला देता है. शहरीकरण के लिए आधारभूत संरचना का निर्माण हो रहा है. परिणाम यह है कि ग्लेशियर साल-दर-साल घटते जा रहे हैं. पर्यावरण वैज्ञानिक ग्लेशियर को बचाने के लिए चिंतित हैं. वह इसके लिए सुझाव भी देते हैं. वैज्ञानिक का मानना है कि “जिन चट्टानों पर ग्लेशियर टिके हों, वहां किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए. तापक्रम बढ़ने से ग्लेशियर का पिघलना सामान्य बात है, लेकिन उन पर गिरने वाली बर्फ से भरपाई होती रहे, तो उनका संतुलन बना रहता है.” पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश में भारी हिमपात और बारिश के कारण भूस्खलन हुआ. राज्य की प्रमुख सड़कें एवं राष्ट्रीय राजमार्ग बाधित रहे. कुल्लू, लाहौल-स्पीति, किन्नौर, चंबा और शिमला में जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया. अधिकारियों के अनुसार 2,300 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले जनजातीय क्षेत्रों और अन्य ऊंचाई वाले इलाकों में हिमस्खलन का खतरा है. स्पष्ट है कि अत्यधिक मानवीय हस्तक्षेप के कारण हिमालय के वातावरण में कई बदलाव आ रहे हैं. हिमालय के असीम व अलौकिक सौंदर्य और बेशकीमती प्राकृतिक संपदा की रक्षा हेतु गंभीर प्रयास जरूरी है. उत्तराखंड एवं अन्य हिमालयी राज्यों का विकास पर्यावरण के अनुकूल होना चाहिए। हिमालय प्राण वायु के साथ ही पर्यावरण को संरक्षित और जैव विविधता को भी बनाकर रखता है. लेकिन मौजूदा स्थिति यह है कि हिमालय में हो रहे अनियंत्रित विकास पर वैज्ञानिक चिंता जाहिर कर रहे हैं. लेकिन उत्तराखंड की मौजूदा स्थिति यह है कि अनियंत्रित विकास विनाश को न्यौता दे रहा है. दरअसल, उत्तराखंड राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते आपदा जैसे हालात बनते रहे हैं. खासकर मानसून सीजन के दौरान प्रदेश की स्थिति काफी दयनीय हो जाती है.विकास के लिए वैज्ञानिकों की बातों पर ध्यान देने की जरूरतयही वजह है कि वैज्ञानिक हिमालय की संवेदनशीलता को देखते हुए इस बात पर जोर दे रहे हैं कि प्रदेश में पर्वतीय क्षेत्रों में अत्यधिक विकास ठीक नहीं है. क्योंकि लगभग पूरा हिमालय ही काफी संवेदनशील है, ऐसे में यहां पर बहुत ही सोच समझकर विकास कार्य होने चाहिए. साथ ही विकास के लिए वैज्ञानिकों की बातों पर भी ध्यान देने की जरूरत है. क्योंकि अगर अगले एक दशक तक ध्यान नहीं दिया गया तो बड़ी आपदा आने के अंदेशे से इनकार नहीं किया जा सकता.लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। *लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*

ShareSendTweet
http://uttarakhandsamachar.com/wp-content/uploads/2025/02/Video-National-Games-2025-1.mp4
Previous Post

मतदाताओं को न्याय दिलाने के लिए अभियान चलाएगी कांग्रेस : जिलाध्यक्ष

Next Post

डोईवाला : पुलिस आरक्षी भर्ती के दसवें दिन 276 अभ्यर्थी हुए सफल

Related Posts

उत्तराखंड

नारद जयंती: नारद, जिन्हें पहला पत्रकार माना जाता है

May 14, 2025
17
उत्तराखंड

बीकेटीसी अध्यक्ष हेमन्त द्विवेदी बदरीनाथ पहुंचे, दर्शन पूजा-अर्चना की, यात्रा व्यवस्थाओंं को देखा

May 14, 2025
44
उत्तराखंड

हरित चारधाम यात्रा की तैयारी प्लास्टिक पर रोक

May 14, 2025
8
उत्तराखंड

नयार नदी अध्ययन यात्रा दल के सदस्यों ने दी दून पुस्तकालय में प्रस्तुति

May 14, 2025
10
उत्तराखंड

केदारनाथ यात्रा के लिए हेलीकॉप्टर बुकिंग के नाम पर ठगी

May 13, 2025
16
उत्तराखंड

अनफ़िल्टर्ड : द लिटिल थिंग्स पर दून पुस्तकालय में हुई चर्चा

May 13, 2025
10

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Popular Stories

  • चार जिलों के जिलाधिकारी बदले गए

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • डोईवाला : पुलिस,पीएसी व आईआरबी के जवानों का आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण सम्पन्न

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • ऑपरेशन कामधेनु को सफल बनाये हेतु जनपद के अन्य विभागों से मांगा गया सहयोग

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  •  ढहते घर, गिरती दीवारें, दिलों में खौफ… जोशीमठ ही नहीं

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • विकासखंड देवाल क्षेत्र की होनहार छात्रा ज्योति बिष्ट ने किया उत्तराखंड का नाम रोशन

    0 shares
    Share 0 Tweet 0

Stay Connected

संपादक- शंकर सिंह भाटिया

पता- ग्राम एवं पोस्ट आफिस- नागल ज्वालापुर, डोईवाला, जनपद-देहरादून, पिन-248140

फ़ोन- 9837887384

ईमेल- shankar.bhatia25@gmail.com

 

Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड समाचार डाॅट काम वेबसाइड 2015 से खासकर हिमालय क्षेत्र के समाचारों, सरोकारों को समर्पित एक समाचार पोर्टल है। इस पोर्टल के माध्यम से हम मध्य हिमालय क्षेत्र के गांवों, गाड़, गधेरों, शहरों, कस्बों और पर्यावरण की खबरों पर फोकस करते हैं। हमारी कोशिश है कि आपको इस वंचित क्षेत्र की छिपी हुई सूचनाएं पहुंचा सकें।
संपादक

Browse by Category

  • Bitcoin News
  • Education
  • अल्मोड़ा
  • अवर्गीकृत
  • उत्तरकाशी
  • उत्तराखंड
  • उधमसिंह नगर
  • केदारनाथ
  • कोटद्वार
  • क्राइम
  • खेल
  • चकराता
  • चमोली
  • चम्पावत
  • जॉब
  • जोशीमठ
  • जौनसार
  • टिहरी
  • डोईवाला
  • दुनिया
  • देहरादून
  • नैनीताल
  • पर्यटन
  • पिथौरागढ़
  • पौड़ी गढ़वाल
  • बद्रीनाथ
  • बागेश्वर
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • रुद्रप्रयाग
  • रुद्रप्रयाग
  • विकासनगर
  • वीडियो
  • संपादकीय
  • संस्कृति
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • साहिया
  • हरिद्वार
  • हेल्थ

Recent News

नारद जयंती: नारद, जिन्हें पहला पत्रकार माना जाता है

May 14, 2025

बीकेटीसी अध्यक्ष हेमन्त द्विवेदी बदरीनाथ पहुंचे, दर्शन पूजा-अर्चना की, यात्रा व्यवस्थाओंं को देखा

May 14, 2025
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.