डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड की शांत वादियों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बदमाशों ने अपनी
शरणस्थली बना ली थी। वह बड़े अपराध कर उत्तराखंड में छिपने के
लिए आते थे। पिछले कुछ समय से मुठभेड़ की घटनाएं बढ़ने के बाद
बदमाशों ने उत्तराखंड का रूख करना तो कम कर दिया है, लेकिन अब
नशा तस्कर अपना कारोबार जमाने में लग गए हैं। उत्तराखंड पुलिस की
एमडीएमए ड्रग्स तैयार करने वाले गिरोह व कोबरा गैंग का पर्दाफाश
करने से यह बात साबित होती है।नशा तस्कर देवभूमि में अब धीरे-धीरे
अपना नया ठिकाना बना रहे हैं। पिछले कुछ समय में पकड़े गए बड़े
गिरोह ने यह बात साबित की है। मुंबई व उत्तर प्रदेश में नशा तस्कर
अपना जाल नहीं फैला पा रहे हैं तो वह शांत वादियों में घुसपैठ की
फिराक में हैं।उत्तराखंड पुलिस की ओर से पिछले कुछ समय से नशा
तस्करों पर बड़ी कार्रवाई की है। इससे यह भी सवाल उठ रहे हैं कि जब
नशा तस्करों ने उत्तराखंड में ठिकाना बनाया, तब क्यों नहीं सुरक्षा
एजेंसियों को इसकी भनक लगी।उत्तराखंड की सीमा चीन व नेपाल से
सटी है, ऐसे में यहां पर नशा तस्करी की संभावना बढ़ी है। इसको देखते
हुए नशा तस्करों की धरपकड़ के लिए नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो
(एनसीबी) के साथ-साथ उत्तराखंड की स्पेशल टास्क के अंतर्गत एंटी
नारकोटिक्स टास्क फोर्स (एएनटीएफ) व हर जिले में भी एएनटीएफ
की टीमें लगाई हुई हैं।तमाम सुरक्षा प्रबंधों के बावजूद भी नशा तस्करों
का नेटवर्क लगातार बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2024 से उत्तराखंड में स्मैक,
हेरोइन व एमडीएमए जैसे मादक पदार्थ की तस्करी बढ़ी है। सुरक्षा
एजेंसियां भी इसे आने वाले समय के लिए खतरा बता रही हैं।नशा
तस्करों का नेटवर्क तोड़ने के लिए एजेंसियां लगातार काम कर रही हैं।
इसी का नतीजा है एसएसपी एसटीएफ कि पिछले कुछ समय से बड़े
नशा पेडलरों को जेल भेजा गया है। एएनटीएफ का ढांचा तैयार किया
जा रहा है ताकि कार्रवाई को और तेज किया जा सके। – लेकिन यह
शांत राज्य अब एक और कारण से चर्चा में है. यहां के लोग अब अपनी
सुरक्षा के लिए हथियार रखने का विकल्प चुन रहे हैं. जी हां, देहरादून
में अकेले 12,000 से ज्यादा लोग ऐसे हैं, जिनके लिए राज्य की शांति
भी खुद को सुरक्षित महसूस करने के लिए पर्याप्त नहीं है. हाल ही में
रुड़की में हुए फायरिंग विवाद ने शस्त्र लाइसेंस के बढ़ते मामलों को एक
बार फिर से उजागर किया है.उत्तराखंड की वादियों को कभी शांति और
सुकून का प्रतीक माना जाता था लेकिन रुड़की में हुई फायरिंग की
घटना ने राज्य को हिलाकर रख दिया. इस घटना के बाद हरिद्वार के
जिलाधिकारी ने पूर्व विधायक के परिवार को दिए गए 9 शस्त्र लाइसेंस
निलंबित कर दिए. वहीं मौजूदा विधायक का आर्म्स लाइसेंस भी
निलंबित कर दिया गया है लेकिन सवाल अब यह उठता है कि आखिर
शांत प्रदेश में इतनी बड़ी संख्या में लोग खुद को खतरे में क्यों महसूस
कर रहे हैं. बीते कुछ सालों से उत्तराखंड की वादियों को अपराधी अपनी
पनाहगाह के रूप में इस्तेमाल करने लगे हैं. उत्तराखंड में अपराधी खुद
को महफूज समझते हैं. यही कारण है कि उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा,
दिल्ली, छत्तीसगढ़, राजस्थान, बिहार जैसे राज्यों में खूंखार अपराधी
घटनाओं को अंजाम देकर उत्तराखंड मैदानी और तराई इलाकों में शरण
लेते हैं. लोकल पुलिस से बचते हुए अपराधी यहां अपना समय काटते
हैं, जैसे ही उन्हें किसी बड़ी घटना को अंजाम देना होता है वे फिर यहां
से निकल जाते हैं. अपराधियों के उत्तराखंड कनेक्शन की जानकारी
ज्यादातर उनकी गिरफ्तारी के बाद होती है. जब वे पूछताछ में अपने
ठिकानों का जिक्र करते हैं तो उनमें उत्तराखंड का नाम जरूर होता
है.ऐसे दर्जनों मामले उत्तराखंड सामने आए हैं जब अपराधियों ने उधम
सिंह नगर, हरिद्वार, देहरादून, विकास नगर, टिहरी गढ़वाल, अल्मोड़ा
चंपावत जैसे जिलों में लंबा समय काटा. ऐसा ही ताजा मामला
राजस्थान के भरतपुर में घटे जुनैद और नासिर हत्याकांड से जुड़ा है.
जिसका मुख्य आरोपी राजधानी देहरादून के विकासनगर में छुपे होने के
बाद सामने आया. पश्मिची उत्तर प्रदेश के बदमाशों के लिए उत्तराखंड
महफूज पनाहगाह बनता जा रहा है. संगीन वारदातों को अंजाम देने के
बाद बदमाश उत्तराखंड की शांत वादियों में छिपने चले आते हैं.
लेकिन उत्तराखंड पुलिस को इसकी भनक तब लगती है जब बदमाश
पकड़े जाते हैं या फिर मुठभेड़ में मारे जाते हैं. दूसरी प्रमुख वजह पुलिस
का उदारवादी चेहरा भी है. वैसे कुख्यात बदमाशों का काफी अर्से से
उत्तराखंड आने जाने का सिलसिला रहा है, लेकिन ऐसे बदमाशों को
उत्तराखंड पुलिस कभी-कभार ही पकड़ सकी है. *लेखक विज्ञान व*
*तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*