डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर हमेशा से ही सवाल खड़े होते रहे हैं. यही नहीं, प्रदेश के खासकर पर्वतीय क्षेत्रों से ऐसी मार्मिक तस्वीरे सामने आती रही हैं जिससे स्वास्थ्य विभाग समय- समय पर कटघरे में खड़ा नजर आता है. साल 2024 स्वास्थ्य विभाग के लिहाज से बेहद खास रहा. इस साल स्वास्थ्य विभाग को मजबूत और स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर किए जाने को लेकर तमाम महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं.मानव जीवन की मूलभूत सुविधाओं में स्वास्थ्य सुविधाएं काफी महत्वपूर्ण होती गै. लोगों को कभी ना कभी स्वास्थ्य सुविधाओं की जरूरत पड़ती है. स्वास्थ्य सुविधाएं सीधा जनता से जुड़ी हुई हैं. यही वजह है कि स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव होने की वजह से न सिर्फ लोगों की बीमारियां बढ़ती जाती हैं. समय पर उपचार न मिलने से मरीजों की मौत भी हो जाती है. यही वजह है कि उत्तराखंड सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर और दुरुस्त किए जाने पर जोर दे रही है. ऐसे स्वास्थ्य सुविधाओं को दुरुस्त और बेहतर किए जाने को लेकर साल 2024 में तमाम महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं. जिसके पूरी तरह से धरातल पर उतरने के बाद स्वास्थ्य सुविधाओं के बेहतर होने की संभावना है. स्वास्थ्य सुविधाओं की अगर बात करें तो स्वास्थ्य सुविधाओं में तीन चीज सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं. जिसमें इंफ्रास्ट्रक्चर, इक्विपमेंट और मैनपॉवर शामिल है. अगर स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करना है तो सरकार को इन चीजों पर विशेष जोर देना होगा. यही वजह है कि उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग ने साल 2024 में इन तीनों बिंदुओं पर विशेष ध्यान दिया है. उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग एक ओर डॉक्टर्स की कमी से जूझ रहा है तो वहीं, दूसरी ओर 158 डॉक्टर ऐसे भी हैं जो लंबे समय से सरकारी अस्पतालों से गायब चल रहे थे. जिसको देखते हुए स्वास्थ्य विभाग ने बड़ा एक्शन लिया. स्वास्थ्य विभाग ने गायब चल रहे डॉक्टर को नोटिस भेजा. जवाब नहीं मिलने पर स्वास्थ्य विभाग ने 158 डॉक्टरों को बर्खास्त कर दिया है. स्वास्थ्य सचिव ने कहा कि इन डॉक्टर्स को बर्खास्त किए जाने के बाद इन सभी पदों पर नई नियुक्तियां की जाएगी, ताकि जनता को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उपलब्ध कराया जा सके. उत्तराखंड के राजकीय चिकित्सालयों में मरीजों को ओपीडी और आईपीडी रजिस्ट्रेशन शुल्क को इस साल कम किया गया है. जुलाई 2024 में स्वास्थ्य विभाग के चार्जेज की कम किए जाने संबंधित प्रस्ताव पर मुहर लगा दी थी. जिसके बाद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के ओपीडी पर्चा शुल्क को 13 रुपए से 10 रुपए किया गया. आईपीडी रजिस्ट्रेशन शुल्क को 17 की जगह 15 रुपए किया. इसी तरह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के ओपीडी शुल्क को 17 की जगह 10 रूपये और आईपीडी शुल्क को 57 की जगह 25 रुपए किया गया. जिला व उप जिला चिकित्सालय में ओपीडी शुल्क को 28 की जगह 20 रूपये और आईपीडी शुल्क 134 से घटाकर 50 रुपए किया गया. इसके अलावा, एडमिशन चार्ज, प्राइवेट वार्ड चार्ज, एम्बुलेंस चार्ज को भी कम किया गया.उत्तराखंड में विशेषज्ञ डॉक्टर्स की कमी को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग ने विशेषज्ञ डॉक्टरों की सेवानिवृत्त आयु सीमा को 60 से 65 साल की. हालांकि, ये व्यवस्था डॉक्टर्स की इच्छा के आधार पर रखी गई है. यानी अगर कोई विशेषज्ञ डॉक्टर्स 65 साल तक अपनी सेवाएं देना चाहता है तो वो अपनी सेवाएं दे सकता है. इसके लिए सेवानिवृत्त होने से करीब 6 महीने पहले इस विकल्प को चुनना होगा. 60 साल की उम्र पूरी होने के बाद विशेषज्ञ डॉक्टरों को प्रशासनिक पदों और वित्तीय सम्बंधित जिम्मेदारी नहीं दी जाएगी. बतौर मुख्य परामर्शदाता के रूप में वे अपनी सेवाएं दे सकेंगे. स्वास्थ्य सचिव ने बताया सरकार के इस फैसले के बाद तमाम विशेषज्ञ डॉक्टर्स का आवेदन प्राप्त हुए हैं. इससे एक बड़ा फायदा ये होगा कि प्रदेश ने विशेषज्ञ डॉक्टर्स की कमी को दूर किया जा सकेगा. उत्तराखंड के राजकीय चिकित्सालयों के बाद स्वास्थ्य विभाग ने मेडिकल कॉलेज से संबद्ध अस्पतालों के यूजर चार्जेज़ को एक समान कर दिया है. ऐसे में ये व्यवस्था एक जनवरी 2025 से मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय में लागू हो जाएगी. अभी तक प्रदेश के सभी मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय में यूज़र चार्जेज अलग अलग है. जिसमें एकरूपता लाने और मरीजों की सहूलियत हो देखते हुए निर्णय लिया गया है. स्वास्थ्य विभाग की ओर से लिए गए निर्णय के अनुसार, अब मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय में ओपीडी शुल्क 20 रुपए होगा. इसके साथ ही, आईपीडी शुल्क 50 रुपए, जनरल वार्ड 25 रुपए, प्राइवेट वार्ड 300 रुपए, एक्सरे 133 रुपए, अल्ट्रासाउंड शुल्क 570 रुपए, डायलिसिस शुल्क 1400 रुपए, एमआरआई 2848 रुपए, और सीटी स्कैन शुल्क 1350 रुपए हो जाएगा. उत्तराखंड सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने के साथ ही 108 एम्बुलेंस के जरिए मरीज समय से अस्पताल पहुंचे इस पर जोर दिया है. इसके लिए स्वास्थ्य विभाग ने 108 एंबुलेंस के रिस्पांस टाइम को न सिर्फ काम कर दिया है बल्कि समय के भीतर एंबुलेंस ना पहुंचने पर लगाए जाने वाले जुर्माने को भी बढ़ा दिया है. जिसके तहत पर्वतीय क्षेत्रों में 108 इमरजेंसी एंबुलेंस के रिस्पांस टाइम को 35 मिनट से घटकर 20 मिनट और मैदानी क्षेत्रों में इमरजेंसी एंबुलेंस के रिस्पांस टाइम को 20 मिनट से घटकर 12 मिनट किया गया है. उत्तराखंड राज्य में 108 इमरजेंसी एंबुलेंस की 272 गाड़ियां संचालित हो रही हैं. जिसका संचालन निजी कंपनी द्वारा किया जा रहा है. स्वास्थ्य सचिव ने बताया इस साल हरिद्वार मेडिकल कॉलेज का काम न सिर्फ पूरा हुआ बल्कि इस मेडिकल कॉलेज में क्लासेस भी शुरू कर दी गई हैं. हर्रावाला में 300 बेडेड कैंसर हॉस्पिटल भी जल्द ही पीपीपी मोड पर संचालित किया जाएगा. हल्द्वानी के मोतीनगर में 200 बेडेड मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल का काम पूरा हो गया है. इसके अलावा हर जिले में 50 बेडेड क्रिटिकल केयर ब्लॉक बनाए जाने को मंजूरी दी गई है. साथ ही कुछ जिलों में क्रिटिकल केयर ब्लॉक बनाए जाने का काम भी शुरू कर दिया गया है. हरिद्वार में 200 बेड का एमसीएच सेंटर का कार्य पूरा किया जा चुका है. इसके अलावा रुद्रपुर मेडिकल कॉलेज का निर्माण कार्य तेज गति से चल रहा है. पिथौरागढ़ मेडिकल कॉलेज के लिए फॉरेस्ट क्लीयरेंस भी भारत सरकार से मिल गया है. इसके साथ ही प्रदेश के तीन शहरों में एक- एक नर्सिंग कॉलेज भी बनाए जाने का निर्णय लिया गया है. जिसमें पिथौरागढ़, रुद्रपुर और हरिद्वार नर्सिंग कॉलेज शामिल है. जिसकी शासन स्तर से जल्द ही स्वीकृत होने वाली है. राज्य के लिए सबसे बड़ी परेशानी इस बात की है कि जो चिकित्सक पहाड़ों पर काम भी कर रहे थे, वह या तो धीरे-धीरे सेवानिवृत हो रहे हैं या फिर पहाड़ से मैदान ना आ पाने की अंतिम संभावना के बीच अपनी सेवाएं छोड़ रहे हैं. उधर सरकार भी इन चिकित्सकों को पहाड़ पर ही बने रहने के लिए लुभाने में नाकाम रही है. बहरहाल देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में खस्ताहाल स्वास्थ्य व्यवस्था एक तरफ जहां इस क्षेत्र के लचर प्रशासनिक व्यवस्था को दर्शाता है वहीं दूसरी ओर सरकार की उदासीनता पर भी सवाल खड़ा करता है। पूरे जिले में हृदय, बच्चों के डाॅक्टर एक या दो ही हैं। ऐसी स्थिति में यहां के लोगों का जीवन किस प्रकार कठिनाइयों से गुज़रता होगा, इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है। यही कारण है कि गांवों के लोग पहाड़ पर अपनी पैतृक ज़मीन और घर को छोड़कर नीचे मैदानी इलाकों में स्थाई रूप से बस चुके हैं। इससे तिब्बत (चीन) से लगा पूरा सीमांत इलाका बहुत तेजी से जनशून्य होता जा रहा है। यदि सरकार इस विशाल सीमा क्षेत्र में चिकित्सा, स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, संचार की अच्छी सेवाएं उपलब्ध नहीं कराती तो यह आगे चलकर निश्चित ही देश की सुरक्षा के लिए बहुत हानिकारक साबित हो सकता है। जिनकी स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर हमेशा ही सवाल खड़े होते रहे है. पीपीपी मोड पर संचालित होने वाले सरकारी हॉस्पिटल को लेकर सरकार को भी लगातार शिकायतें मिल रही थी. ऐसे में सरकार ने सरकारी हॉस्पिटलों को पीपीपी मोड से संचालित करने का फैसला वापस ले लिया है.। भले ही राज्य गठन के बाद स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति आई हो, लेकिन अभी भी प्रदेश के सीमांत क्षेत्र ऐसे हैं. जहां स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है. जिसके चलते मरीज को बेहतर इलाज के लिए शहरी क्षेत्र की ओर रुख करना पड़ता हैस्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में भी कई कारण है. कुछ जगहों पर अस्पताल तो हैं लेकिन वहां पर डॉक्टर नहीं है. कहीं अस्पतालों में अल्ट्रासाउंड मशीन तो है, लेकिन एक्स रे टेक्नीशियन नहीं है. जिसके चलते खासकर पहाड़ी क्षेत्रों के मरीजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड में स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने के लिए कोई पहल नहीं की गईलेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।