शंकर सिंह भाटिया
सन् 2017 में जब बड़ी जीत हासिल कर यूपी में भाजपा की सरकार बनी तो अप्रत्याशित रूप से योगी आदित्यनाथ का मुख्यमंत्री बनना भाजपा के अंदर ही कई लोगों को हजम नहीं हो पाया। 2022 में भाजपा की सरकार यूपी में फिर से बन गई। सरकार के लगातार दूसरे कार्यकाल में जीतकर आना योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व की उपलब्धि माना गया। इसके बावजूद पार्टी के अंदर ऐसे लोग अपने पर अड़े रहे। इतना सब होने के बावजूद योगी आदित्यनाथ अपने कर्तव्यपथ पर चलते रहे, लेकिन मजबूत सरकार होने की वजह से कोई खुलकर सामने नहीं आ पाया। 2024 के लोक सभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन ज्यों ही खराब हुआ, पार्टी के अंदर से योगी के खिलाफ आवजें बुलंद होने लगी। हालात यहां तक बन गए कि उत्तर प्रदेश भाजपा कार्यसमिति की बैठक में जिस लहजे से उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने सरकार से बड़ी पार्टी होती है, वाला राग अलापा सब कुछ उघड़ कर सामने आ गया।
यह बात सामने आ रही है कि कार्यकर्ता की आड़ लेकर योगी का विरोध किया जा रहा है, विरोध के पीछे की वहज कुछ और है। 2017 में जब भाजपा राज्य में सत्ता में आई पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष केशव मौर्या थे। उन्हें लगा कि जब पार्टी सत्ता में आई, तब पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वह थे, इसलिए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उनका पहला अधिकार है। 2022 में थिरासू सीट से चुनाव हार जाने के बावजूद उन्हें फिर से उप मुख्यमंत्री बनाया गया। यह विशेषाधिकार उन्हें आज तक हजम नहीं हुआ। इसलिए वह सरकार में रहकर भी सरकार की खिलाफत करते रहे। उनके खिलाफ कोई एक्शन लेने के बजाय हाई कमान से कहीं न कहीं उन्हें उकसावा भी मिलता रहा, इसलिए उनके हौंसले बुलंद होते रहे। प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में जिस लहजे से केशव प्रसाद मौर्या ने अपनी बात रखी, उससे साफ हो गया कि पार्टी के अंदर हालात बस से बाहर हो गए हैं। इन हालातों में विपक्ष भाजपा की चुटकी लेने लगा। इससे भाजपा हाई कमान के भी कान खड़े हो गए। उप मुख्यमंत्री केशव मौर्या और प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चैधरी को हाई कमान ने दिल्ली तलब किया।
इस पूरे घटनाक्रम में यह बात सामने आई कि योगी भाजपा के स्तंभ हैं। वह एक ऐसी चट्टान हैं जिससे टकराकर लहरें बिखर जाती हैं, लेकिन चट्टान पर कोई फर्क नहीं पड़ता। इसके बाद यह बात भी सामने आई कि विरोध करने वाले दिल्ली तलब किए गए और उन्हें शायद उप चुनाव के बाद अपनी जिम्मेदारियों से हटा दिया जाएगा। लेकिन योगी के नेतृत्व पर आंच नहीं आई। इस दौरान योगी प्रदेश में दस विधानसभा उपचुनाव की तैयारियों में जुटे रहे। उन्होंने तीस मंत्रियों के साथ बैठक कर उन्हें उप चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी।
एक बात बहुत साफ है कि जब पार्टी लंबे समय तक सत्ता में रहती है, तो इस तरह की दिक्कतें आती ही है। इसके बावजूद योगी आदित्यनाथ के बारे में कहा जाता है कि प्रदेश के मुखिया रहते हुए उनकी भूमिका इस समय नीलकंठ के रूप में है। जब मंथन होता है तो अमृत पीने के लिए सभी लालायित रहते हैं, विश केवल शिव को पीना पड़ता है। योगी शिव की भूमिका में हैं। इन हालात में यह बात उभर कर आई है कि पार्टी के अंदर कई गुट हैं, जो मौका आते ही सिर उठाने लगे हैं, लेकिन यह बात बहुत साफ है कि योगी आदित्यनाथ का कोई गुट नहीं हैं। वह गुटबाजी झेल रहे हैं, लेकिन खुद गुटबाजी से दूर रहकर सारी दिक्कतें खुद उठा रहे हैं।
इस घटनाक्रम के बाद यह बात बहुत साफ हो गई है कि हाई कमान में बैठे कई नेता योगी की लोकप्रियता से परेशान होते हों, उन पर लगाम लगाने के लिए अपनी ही पार्टी को चुनाव में हार का आधार तैयार करते हैं, टिकट तय करने में योगी की भूमिका को ही नकार देते हैं, तब हार में योगी की जिम्मेदारी कहां बनती है?
योगी की जिस तरह लोकप्रियता पूरे देश में है, यह चुनाव के दौरान पार्टी प्रत्याशियों द्वारा उनकी सभाओं की डिमांड के रूप में देखी जा सकती है। चुनाव के दौरान भाजपा प्रत्याशियों की पूरे देश में सबसे अधिक मांग मोदी और योगी की होती है। इससे योगी को निराधार आरोपों से हटाने की हिम्मत पार्टी हाई कमान भी नहीं ले सकती है। इस पूरे घटनाक्रम से यह बात साबित हो जाती है कि पार्टी के अंदर से विरोध के बावजूद योगी और मजबूत होकर सामने आए हैं। यदि उप चुनाव में भाजपा का बेहतर प्रदर्शन होता है और 2027 के चुनाव में बीजेपी यूपी में फिर से सत्ता में लौटती है, तो योगी के आसपास फटकने की हिम्मत ऐसे लोगों की नहीं होगी।