• About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact
Uttarakhand Samachar
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
Uttarakhand Samachar
No Result
View All Result

घरौंदा छिनने से गुम हुई गौरेया

20/03/21
in उत्तराखंड, हेल्थ
Reading Time: 1min read
185
SHARES
231
VIEWS
Share on FacebookShare on WhatsAppShare on Twitter

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
दुनिया भर में आज विश्व गौरैया दिवस मनाया जा रहा है। यह हर साल 20 मार्च को मनाया जाता है। इसका मकसद इस पक्षी के संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाना है। दरअसल, पिछले कुछ सालों से यह चिड़िया धीरे.धीरे विलुप्त होती जा रही है। एक वक्त था जब हम हर सुबह इस चिड़िया की चहचहाहट सुनकर उठते थे, लेकिन आज इस चिड़िया का अस्तित्व खतरे में है। गौरैया की इसी स्थिति को देखते हुए साल 2010 से दुनिया भर में श्विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। जब हमारा देश आज़ाद नहीं हुआ था, 1936 में इंग्लैंड के लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड पर मेरिलबोन क्रिकेट क्लब और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के बीच एक क्रिकेट मैच खेला जा रहा था। इस मैच में भारत के जहांगीर खान कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के लिए खेल रहे थे। मैच के दौरान जब जहांगीर गेंदबाजी कर रहे थे, तभी अचानक एक गौरैया उनकी बॉल की चपेट में आ गई। जहांगीर की गेंद से वो गौरैया काफी चोटिल हो गई थी और उसके कुछ समय बाद उसकी मौत हो गई। इसके बाद उस गौरैया को उसी गेंद के साथ लॉर्ड्स के म्यूजियम में रख दिया गया। जिसे बाद में स्पैरो ऑफ लॉर्ड्स नाम दिया गया।

घर.घर आंगन में चहकने वाली गौरैया अब कम ही दिखाई देती है। उत्तराखंड में इनकी पांच प्रजातियों पर शायद संकट है। यह तब है जबकि उत्तराखंड को चिड़ियाओं के संसार के रूप में भी देखा जाता है। यहां चिड़ियाओं की करीब 700 प्रजातियां हैं। गौरैया शहरी क्षेत्रों में भी दिखाई दे जाती है, लेकिन अब इनकी संख्या में कमी आ रही है। लंबे समय से शहरों में रह रहे लोग इसकी पुष्टि कर रहे हैं। वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक बिना सर्वे के यह कहना मुश्किल है कि गौरैया की संख्या कम हो रही है, इतना जरूर है कि गौरैया का शहरों में दिखना कम हो गया है। मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक के मुताबिक आप कस्बों की तरफ निकल जाइए, आपको गौरैया सहित कई पक्षी दिखाई देंगे। शहरों में लोगों का ध्यान गौरैया की तरफ कम जाता है और यही वजह है कि मान लिया जाता है कि गौरैया की संख्या कम हो रही है, इसके लिए एक सर्वे जरूरी है।

यह मामला गौरैया की तरह नाजुक तितलियों जैसा ही है। प्रदेश में तितलियों की करीब 576 प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन शहरों में शायद ही आप किसी तितली को महीनों में देख पाते हों। जलवायु परिवर्तन और आबो हवा में बदलाव भी एक वजह हो सकती है कि तितलियों और पक्षियों ने अपने लिए नए आसरे ढूंढ लिए हों। वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक पिछले कुछ समय से गौरैया को लेकर लोगों की जागरूकता में इजाफा हुआ है। शहरों में लोग चिड़ियाओं के लिए घोंसले लगा रहे हैं। वन विभाग की ओर से भी इस तरह के घोंसले उपलब्ध कराए जाते हैं और इनकी मांग बढ़ रही है। शोर शराबा अगर कम हो तो गौरैया घर के किसी कोने में अपना घोंसला बना लेती है।

रुद्रप्रयाग जिले के मुखुमठ गांव में तीन साल पहले लोगों ने अपने मकानों में गौरैया के लिए छोटे.छोटे कंक्रीट के घर बनाने की शुरुआत की, यह मुहिम आज भी जारी है। बताया जाता है कि यहां अच्छी खासी तादात में गौरेया देखने को मिल जाती हैं। कई नेशनल पार्क, आद्र भूमि और 70 प्रतिशत वन भूमि होने के बाद भी प्रदेश में चिड़ियाओं पर संकट कम नहीं है। राज्य पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से जारी स्टेट एनवायरमेंट रिपोर्ट के मुताबिक आईसीयूएन की रेड लिस्ट में उत्तराखंड के पक्षियों की करीब 45 प्रजातियां सूचीबद्ध हैं। प्राकृतिक रूप से गौरैया का आवास कच्चे मकान, झोपड़ी आदि थे, लेकिन पक्के मकानों से यह चिड़िया दूरी बना रही है।

गौरैया घरेलू और पालतू पक्षी है। यह इंसान और उसकी बस्ती के आसपास रहना ज्यादा पसंद करती है। यह अक्सर झुंड में रहती है। बढ़ते रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग गौरैया के लिए भोजन की चिता बन गया है। रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग से भूमि में पाए जाने वाले कीड़े.मकोड़े विलुप्त हो रहे हैं। गौरेया आज संकटग्रस्त पक्षी है जो पूरे विश्व में तेज़ी से दुर्लभ हो रही है। दस.बीस साल पहले तक गौरेया के झुंड सार्वजनिक स्थलों पर भी देखे जा सकते थे, लेकिन खुद को परिस्थितियों के अनुकूल बना लेने वाली ये चिड़िया अब भारत ही नहीं, यूरोप के कई बड़े हिस्सों में भी काफी कम रह गई है। ब्रिटेन, इटली, फ्रांस, जर्मनी और चेक गणराज्य जैसे देशों में इनकी संख्या जहाँ तेज़ी से गिर रही है, तो नीदरलैंड में तो इन्हें दुर्लभ प्रजाति के वर्ग में रखा गया है। जिस आंगन में नन्ही गौरैया की चहल कदमी होती थी, आज वो आंगन सूने पड़े हुए हैं। आधुनिक मकान, बढ़ता प्रदुषण, जीवन शैली में बदलाव के कारण गौरैया लुप्त हो रही है।

कभी गौरैया का बसेरा इंसानों के घर में होता था। अब गौरैया के अस्तित्व पर छाए संकट के बादलों ने इसकी संख्या काफी कम कर दी है और कहीं.कहीं तो अब ये बिल्कुल दिखाई नहीं देती। इस संकट की घड़ी में नन्ही गौरैया को अपने अंगने में बुलाने के लिए हम लोगों को मिलकर कई काम करने होंगे।

विश्व गौरैया दिवस 20 मार्च को मनाया जाता है। इस उपलक्ष्य में आपको गौरैया की कहानी बताते हैं की आखिर इस छोटी चिड़िया को क्या हो गया। हम इनको कैसे बचा सकते हैं। गौरैया की चूं चूं अब चंद घरों में ही सिमट कर रह गई है। एक समय था जब उनकी आवाज़ सुबह और शाम को आंगन में सुनाई पड़ती थी। मगर आज के परिवेश में आये बदलाव के कारण वो शहर से दूर होती गई। गांव में भी उनकी संख्या कम हो रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक गौरैया की आबादी में 60 से 80 फीसदी तक की कमी आई है। यदि इसके संरक्षण के उचित प्रयास नहीं किए गए तो हो सकता है कि गौरैया इतिहास की चीज बन जाए और भविष्य की पीढ़ियों को यह देखने को ही न मिले। आंध्र विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक गौरैया की आबादी में करीब 60 फीसदी की कमी आई है। ऐसा ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में हुआ है। गौरैया की घटती संख्या के कुछ मुख्य कारण हैं। भोजन और जल की कमी, घोसलों के लिए उचित स्थानों की कमी तथा तेज़ी से कटते पेड़, पौधे, गौरैया के बच्चों का भोजन शुरूआती दस पन्द्रह दिनों में सिर्फ कीड़े मकोड़े ही होते है। लेकिन आजकल हम लोग खेतों से लेकर अपने गमले के पेड़, पौधों में भी रासायनिक पदार्थों का उपयोग करते है। जिससे ना तो पौधों को कीड़े.मकोड़े भी नष्ट होते जा रहे हैं जिससे इस पक्षी का समुचित भोजन पनप नहीं पाता है। इसलिए गौरैया समेत दुनिया भर के हजारों पक्षी हमसे रूठ चुके हैं और शायद वो लगभग विलुप्त हो चुके हैं या फिर किसी कोने में अपनी अन्तिम सांसें गिन रहे हैं।

हम मनुष्यों को गौरैया के लिए कुछ ना कुछ तो करना ही होगा वरना यह भी मॉरीशस के डोडो पक्षी और गिद्ध की तरह पूरी तरह से विलुप्त हो जायेंगे। आधुनिक स्थापत्य की बहुमंजिली इमारतों में गौरैया को रहने के लिए पुराने घरों की तरह जगह नहीं मिल पाती। सुपर मार्केट संस्कृति के कारण पुरानी पंसारी की दूकानें घट रही हैं। इससे गौरेया को दाना नहीं मिल पाता है। इसके अतिरिक्त मोबाइल टावरों से निकले वाली तंरगों को भी गौरैयों के लिए हानिकारक माना जा रहा है। ये तंरगें चिड़िया की दिशा खोजने वाली प्रणाली को प्रभावित कर रही है और इनके प्रजनन पर भी विपरीत असर पड़ रहा है। जिसके परिणाम स्वरूप गौरैया तेजी से विलुप्त हो रही है।

गौरैया को भोजन में प्रोटीन घास के बीज और खासकर कीड़े काफी पसंद होते हैं। जो शहर की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से मिल जाते हैं। ज्यादा तापमान गौरेया सहन नहीं कर सकती। प्रदूषण और विकिरण से शहरों का तापमान बढ़ रहा है। खाना और घोंसले की तलाश में गौरेया शहर से दूर निकल आई हैं और अपना नया आशियाना तलाश रही है जरुरत एस विलुप्त होती चिड़िया को बचाने की जिससे आने वाली पीढ़ी भी इसे सिर्फ किताबो में न पढ़े। घर.आंगन और बागानों में अपना आशियाना बना कर रहने वाली गौरैया और रंग.बिरंगी अन्य घरेलू चिड़ियां की प्रजातियों का तेजी से विलुप्त होना निःसंदेह पर्यावरण में आई गिरावट का बड़ा संकेत है। जरूरत है इस पर गंभीरता पूर्वक विचार करने की, अन्यथा इनमें से अधिकांश प्रजातियां इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जायेंगी।

पक्षी विज्ञानियों के अनुसार गौरैया ही एकमात्र पक्षी है जो इंसानों के सबसे अधिक करीब है। इंसानों के बगैर गौरैया रह ही नहीं सकती। पक्षी विज्ञानियों के शोध में यह बात सामने आई है कि इंसानों ने जिस इलाके से पलायन किया, वहां से गौरैया भी पलायन कर गई। देश दुनिया के शहरों में गौरैया तेजी से विलुप्त हो रही है, जो चिंता का विषय है। राहत बात यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में गौरैया की संख्या अब भी पर्याप्त है। प्रत्येक व्यक्ति को गौरैया के संरक्षण को लेकर जागरूक होना होगा। गौरैया महज एक पक्षी नहीं है, बल्कि हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। गौरैया के संरक्षण के लिए वन विभाग के जरिये अभियान चलाया जाए।

दुनिया में पहली बार गौरैया दिवस 20 मार्च 2010 को मनाया गया था। गौरैया पक्षी के संरक्षण को लेकर दिल्ली सरकार ने तो साल 2012 में इस पक्षी को राज्य पक्षी का भी दर्जा दे दिया था। उधर, भारतीय डाक विभाग ने नौ जुलाई 2010 को गौरैया पर डाक टिकट जारी किया था। उत्तराखंड आज भी प्रदूषण तथा भीड़भाड़ से दूर और अपने हरे भरे जंगलों तथा शांत पहाड़ों के कारण इन विलुप्त होते पक्षियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं। गौरैया ज्यादातर छोटे.छोटे झाड़ीनुमा पेड़ों में रहती है लेकिन अब वो बचे ही नहीं हैं। अगर आपके घर में कनेर, शहतूत जैसे झाड़ीनुमा पेड़ है तो उन्हें न काटे और गर्मियों में पानी को रखें। गौरैया ज्यादा तापमान सहन नहीं कर सकती। प्रदूषण और विकिरण से शहरों का तापमान बढ़ रहा है। खाना और घोंसले की तलाश में गौरेया शहर से दूर निकल जाती हैं और अपना नया आशियाना तलाश लेती हैं। घट रही गौरैया की संख्या को अगर गंभीरता से नहीं लिया गया तो वह दिन दूर नहींए जब गौरैया हमेशा के लिए दूर चली जाएगी। इसलिए गौरैया को सहेजने की जरूरत है। इस खूबसूरत और मनुष्य के लिए लाभकारी पक्षी का विलुप्त होना सही नहीं हैभारत में दुनिया की सबसे ज्यादा गौरैया पाई जाती है क्योंकि भारत में घरों में गौरैया के लिए घरौंदा बनाना हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग था हम पुराने जमाने में मिट्टी पत्थर के घरों में गौरैया के लिए आवश्यक रूप से छेद छोड़ते थे। लेकिन अब सीमेंट के घरों में गौरैया के लिए छेद नहीं छोड़े जाते अब भले ही हमारे घर पक्के और बड़े हो गए हैं लेकिन हमारे दिल छोटे हो गए हैं इसीलिए अब गौरैया का जीवन संकट में है अंतर्राष्ट्रीय फौरईवर नेचर सोसायटी की शोध में पाया गया कि यदि मनुष्य ने इन छोटी छोटी गौरर्याओं को बचाने कोई कदम नही उठाए तो अगले कुछ १०-१५ वर्षों में गौरर्या विश्व से समाप्त हो जाऐंगी। वैज्ञानिकों के शोध में पाया गया है कि यदि गौरैया धरती से समाप्त हो जाती है तो रोग फैलाने वाले कीड़े मकोड़े विकसित हो जाएंगे और जब गौरय्या जैसी एक बीच की कड़ी समाप्त हो जाएगी। उनको खाने वाली गोराया नाम की चिड़िया समाप्त हो जाएगी, तो बड़ी बड़ी बीमारियां विकसित होंगी और अंततोगत्वा इसका असर मनुष्य पर पड़ेगा और निश्चित रूप से मनुष्य भी धरती से समाप्त हो जाएंगे यह एक तरह का प्रकृति का फूड चेन है। जिसको किसी को डिस्टर्ब नहीं करना चाहिए। घट रही गौरैया की संख्या को अगर गंभीरता से नहीं लिया गया तो वह दिन दूर नहीं, जब गौरैया हमेशा के लिए दूर चली जाएगी।

Share74SendTweet46
https://uttarakhandsamachar.com/wp-content/uploads/2025/10/yuva_UK-1.mp4
Previous Post

अध्ययन और अनुशासन सफलता की कुंजीः कुमकुम जोशी

Next Post

स्टेडियम की जगह हैलीपैड निर्माण के आदेश के खिलाफ उबाल

Related Posts

उत्तराखंड

पर्यटन स्थल हैं त्रिपुरा देवी मंदिर!

October 24, 2025
55
उत्तराखंड

चंपावत में खोला जाएगा कृषि विश्वविद्यालय : मुख्यमंत्री

October 24, 2025
8
उत्तराखंड

मुख्यमंत्री ने टनकपुर ( चंपावत) में भैया दूज (च्यूड़ा पूजन) समारोह में किया प्रतिभाग, महिलाओं ने किया पारंपरिक पूजन

October 24, 2025
8
उत्तराखंड

दून पुस्तकालय में बहे ऋत्विज पंत के शास्त्रीय गायन के रंग

October 24, 2025
7
उत्तराखंड

वार्षिक पत्रिका ‘प्रयास’ के 16वें संस्करण का हुआ विमोचन

October 24, 2025
8
उत्तराखंड

सरदार पटेल केवल भारत के लौह पुरुष नहीं, बल्कि एकता और अखंडता के प्रतीक थे – जिलाधिकारी

October 24, 2025
4

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Popular Stories

  • चार जिलों के जिलाधिकारी बदले गए

    67470 shares
    Share 26988 Tweet 16868
  • डोईवाला : पुलिस,पीएसी व आईआरबी के जवानों का आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण सम्पन्न

    45755 shares
    Share 18302 Tweet 11439
  • ऑपरेशन कामधेनु को सफल बनाये हेतु जनपद के अन्य विभागों से मांगा गया सहयोग

    38026 shares
    Share 15210 Tweet 9507
  •  ढहते घर, गिरती दीवारें, दिलों में खौफ… जोशीमठ ही नहीं

    37422 shares
    Share 14969 Tweet 9356
  • विकासखंड देवाल क्षेत्र की होनहार छात्रा ज्योति बिष्ट ने किया उत्तराखंड का नाम रोशन

    37293 shares
    Share 14917 Tweet 9323

Stay Connected

संपादक- शंकर सिंह भाटिया

पता- ग्राम एवं पोस्ट आफिस- नागल ज्वालापुर, डोईवाला, जनपद-देहरादून, पिन-248140

फ़ोन- 9837887384

ईमेल- shankar.bhatia25@gmail.com

 

Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड समाचार डाॅट काम वेबसाइड 2015 से खासकर हिमालय क्षेत्र के समाचारों, सरोकारों को समर्पित एक समाचार पोर्टल है। इस पोर्टल के माध्यम से हम मध्य हिमालय क्षेत्र के गांवों, गाड़, गधेरों, शहरों, कस्बों और पर्यावरण की खबरों पर फोकस करते हैं। हमारी कोशिश है कि आपको इस वंचित क्षेत्र की छिपी हुई सूचनाएं पहुंचा सकें।
संपादक

Browse by Category

  • Bitcoin News
  • Education
  • अल्मोड़ा
  • अवर्गीकृत
  • उत्तरकाशी
  • उत्तराखंड
  • उधमसिंह नगर
  • ऋषिकेश
  • कालसी
  • केदारनाथ
  • कोटद्वार
  • क्राइम
  • खेल
  • चकराता
  • चमोली
  • चम्पावत
  • जॉब
  • जोशीमठ
  • जौनसार
  • टिहरी
  • डोईवाला
  • दुनिया
  • देहरादून
  • नैनीताल
  • पर्यटन
  • पिथौरागढ़
  • पौड़ी गढ़वाल
  • बद्रीनाथ
  • बागेश्वर
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • रुद्रप्रयाग
  • रुद्रप्रयाग
  • विकासनगर
  • वीडियो
  • संपादकीय
  • संस्कृति
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • साहिया
  • हरिद्वार
  • हेल्थ

Recent News

पर्यटन स्थल हैं त्रिपुरा देवी मंदिर!

October 24, 2025

चंपावत में खोला जाएगा कृषि विश्वविद्यालय : मुख्यमंत्री

October 24, 2025
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.