डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
चम्पावत भारतीय राज्य उत्तराखण्ड का एक जिला है। इसका मुख्यालय चंपावत में है। उत्तराखंड का ऐतिहासिक चंपावत जिला अपने आकर्षक मंदिरों और खूबसूरत वास्तुशिल्प के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। पहाड़ों और मैदानों के बीच से होकर बहती नदियां अद्भुत छटा बिखेरती हैं। चंपावत में पर्यटकों को वह सब कुछ मिलता है जो वह एक पर्वतीय स्थान से चाहते हैं। वन्यजीवों से लेकर हरे.भरे मैदानों तक और ट्रैकिंग की सुविधाए सभी कुछ यहां पर है। समुद्र तल से 1615 मीटर की ऊंचाई पर स्थित चंपावत एक प्रसिद्ध सैरगाह है। विभिन्न मंदिरों और सुरम्य प्रकृतिक दृश्यों के लिए मशहूर चंपावत 1997 में एक अलग जिला बना था। 1631 वर्ग किमी में फैले इस जिले की सरहद नेपाल, उद्यमसिंह नगर, नैनीताल और अल्मोड़ा से लगती है। तथ्यों के अनुसार यह जगह कभी चंद वंश की राजधानी हुआ करती थी।
चंपावत का नामकरण राजा अर्जुन देव की बेटी चंपावती के नाम पर हुआ है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु का कूर्म अवतार यहीं हुआ था। प्रख्यात प्रकृतिविद् और शिकारी जिम कॉर्बेट ने जब यहां बाघों का शिकार किया तो इस जगह को प्रसिद्धी मिली।उन्होंने अपनी किताब मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊं में बाघों को मारने का विस्तृत विवरण लिया है क्रांतेश्वर महादेव मंदिर, बालेश्वर मंदिर, पूर्णागिरी मंदिर, ग्वाल देवता, आदित्य मंदिर, चौमू मंदिर और पाताल रुद्रेश्वर चंपावत के खास आकर्षण हैं। नागनाथ मंदिर कुमाऊं क्षेत्र के प्राचीन वास्तुशिल्प का बेहतरीन नमूना है। यहां स्थित एक हथिया का नौला के पत्थरों पर की गई नक्काशी को देखना भी शानदार अनुभव होता है। ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण सिर्फ एक रात में किया गया था। समुद्र तल से 1940 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मायावती आश्रम यहां का एक और चर्चित पर्यटन स्थल है।
ऐतिहासिक महत्व वाला शहर लोहाघाट चंपावत से सिर्फ 14 किमी दूर है। यहां की मंत्रमुग्ध कर देने वाली सुंदरता को देखते हुए पीण् बैरन ने इसे दूसरा कश्मीर कहा था। हर साल यहां बड़ी संख्या में पर्यटक लोहाघाट के प्राचीन मंदिरों के दर्शन करने आते हैं। यहां से 45 किमी दूर देवीधुरा में स्थित बाराही मंदिर हर साल रक्षाबंधन के अवसर पर आयोजित किए जाने वाले बंगावल त्योहार के लिए जाना जाता है। अगर लोहाघाट में खरीदारी का मन करे तो इसके लिए खादी बाजार अच्छा विकल्प हो सकता है। इसके अलावा यहां प्रचीन बानासुर का किला है, जिसके बारे में कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने यहां बानासुर नाम के एक दानव की हत्या की थी। एक मान्यता यह भी है कि इस किले का निर्माण मध्यकाल में किया गया था।
ट्रेकिंग के लिए भी चंपावत एक आदर्श जगह है। यहां ऐसे कई ट्रेकिंग रूट हैं जो चंपावत को पंचेश्वर, लोहाघाट, वानासुर, टनकपुर, व्यसथुरा, पूर्णागिरी और कंटेश्वर मंच से जोड़ते हैं। उत्तराखण्ड राज्य की ये पीड़ा हमेशा से ही है। रोजगार और बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा व सुविधा की एवज में बड़ी तादात में लोग पलायन कर शहरों की तरफ भाग रहे हैं। हाल ही में पलायन आयोग ने चम्पावत जिले की रिपोर्ट जारी की तो मानो पहाड़ के जख्म फिर से हरे हो गए। जनपद के 43 गांव 50 फीसद से अधिक खाली हो गए तो वहीं चार गांव की आबादी शून्य हो गई। रिपोर्ट यह बताती है कि कैसे लोग पहाड़ों से पलायन कर रहे हैं और पहाड़ खाली हो रहे हैं। पलायन होने वाले गांवों में सबसे बड़ी दिक्कत सड़क की है। पलायन से खाली 43 में 33 गांव आज तक रोड से नहीं जुड़ पाए। रोड से न जुड़ पाने के लिए अन्य सुविधाओं का न पहुंचना कोई बड़ी बात है। ऐसे में पलायन रोकने के लिए मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना बगैर रोड के कितनी कारगर साबित होगी यह तो समय ही बताएगा।
बहरहाल प्रशासन पलायन हुए पांच गांवों में आजीविकाए स्वरोजगार व कौशल विकास की योजनाएं तैयार कर रहा है।पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार के जनपद के जहां चार गांवों की आबादी शून्य हो गई तो वहीं 39 गांवों में से 50 प्रतिशत आबादी पलायन कर गई। लगातार हो रहे पलायन को रोकने के लिए प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना शुरू की है। इसके तहत जनपद को 1.81 करोड़ रुपये मिले हैं। इस धनराशि से 39 गांवों में प्रशासन को कौशल विकास, आजीविका व स्वरोजगार की योजनाएं प्रस्तावित करनी थी लेकिन यह धनराशि उन क्षेत्रों के लिए वैसी थी जैसे ऊंट के मुंह में जीरा। बहरहाल प्रशासन ने सभी गांवों को न लेकर इस बार पलायन हुए मात्र पांच गांवों को लिया है। जिसमें कौशल विकास, स्वरोजगार व आजीविका संवर्द्धन की योजनाएं तैयार की जा रही है।मगर सोचने की बात है कि इन पांच गांव में से तीन गांव रोड से जुड़े हैं। जबकि दो गांव के लोग आज भी रोड का इंतजार कर रहे हैं। ऐसे में ग्रामीण कौशल, आजीविका व स्वरोजगार कैसे करेंगे। इन गांवों के लिए तैयार किया जा रहा प्रस्ताव योजना के तहत प्रशासन ने पाटी ब्लॉक के मछियाड़ ग्राम सभा के भंडारी मछियाड़ व रमक ग्राम सभा के कोटा गांव को लिया है।
वहीं चम्पावत ब्लाक के घुरचुम ग्राम सभा के काम्ता जमराड़ी, द्यूरी ग्राम सभा का नैकाना गांव तथा डुंगरीफत्र्याल ग्राम सभा का सलना गांव शामिल है। इन गांवों में है इतनी आबादी व यह सुविधाएंभंडारी मछियाड़ गांव में पूर्व में 64 लोग रहते थे अब मात्र 14 लोग बचे हैं। रोड पहुंच गई है लेकिन अन्य मूलभूत सुविधाएं आज तक नही है। वहीं कोटा गांव में 44 में अब 17 लोग बचे हैं। वहां रोड तो पहुंच गई लेकिन पानी आज तक नहीं पहुंचा। अन्य सुविधाएं तो दूर की बात है। काम्ताजमराड़ी गांव में 94 में से 21, नैकाना में 180 में 64 तथा सलना में 390 में अब मात्र 60 लोग बचे हैं। काम्ता जमराड़ी को छोड़ अभी तक इन गांव में रोड नहीं पहुंची। वहीं सूर, चसक, गोठ व जमलातोक गांव की आबादी शून्य हो चुकी है। मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना के तहत पलायन हुए पांच गांवों को चयनित किया गया है। योजना के तहत करोड़ रुपये मिले हैं। जहां कौशल विकास, आजीविका व स्वरोजगार से जुड़ी योजनाएं प्रस्तावित की जा रही है। इन क्षेत्रों को पलायन से रोकना ही प्राथमिकता है। इन गांवों में पूर्व में ही कई विकास कार्य कराए गए हैं, इसलिए इन्हें चयनित किया गया है।
नीबू, माल्टा, नाशपाती जैसे फसलों की पैदावार बहुत अधिक है लेकिन सही बाजार नही मिल पाता अगर इन क्षेत्रो में आचार जैम, जूस आदि के औद्योगिक इकाईया स्थापित कर दी जाए तो यहाँ के ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति में जरुर सुधार आ जायेगा। साथ ही यहाँ के किसानो को अगर पानी की सुविधा मिल जाये तो फलो, सब्जियों के लिए यहा का वातावरण बेहद अनुकूल है। सरकार के साथ साथ अगर किसान भी जागरूक हो जाए तो उत्तराखंड के पर्वतीय गांवो को उजड़ने से बचाया जा सकता हैं।
भले ही प्रशासन और शासन ने रिवर्स पलायल को लेकर तमाम दावे किए जा रहे हैंए मगर जमीनी हकीकत कुछ और ही है। लौटे प्रवासियों को ऊंट के मुंह में जीरे जैसी राहत मिल पा रही है। मूलभूत सुविधाओं के अभाव में अधिकतर प्रवासी कोरोना का कहर कम होते ही महानगरों की ओर लौटने का मन बना चुके हैं। हालात ये है कि सरकार की ओर से प्रवासियों को रोजगार देने के लिए बनाए गए हॉप पोर्टल पर भी अब तक महज हजार लोगों ने ही रजिस्ट्रेशन कराया है।खासबात ये है कि उनमें से भी करीब 50 फीसद प्रवासी स्वरोजगार पर दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। मार्च में लॉकडाउन के बाद से चम्पावत जिले में प्रवासियों के लौटने का सिलसिला शुरू हो गया था। अब तक करीब 30 हजार प्रवासी यहां पहुंच चुके हैं। प्रवासियों को रोजगार से जोड़ने के लिए सरकार ने करीब तीन माह पूर्व हॉप पोर्टल लॉच किया था।