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पहाड़ से लेकर तराई तक गांधी की खादी की बिक्री में आई कमी

23/09/20
in अल्मोड़ा, उत्तराखंड
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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
भारत में ब्रांड खादी की स्वीकार्यता व्यापक रूप से देखने को मिली है। जबकि खादी का उत्पादन, दीर्घकालिक विकास के लिए सबसे अनुकूल पर्यावरण उत्पाद, पिछले पांच वर्षों में दोगुने से भी ज्यादा हो चुका है, यानी 2015-16 के बाद से इसी अवधि के दौरान खादी की बिक्री में लगभग तीन गुनी बढ़ोत्तरी देखी गई है। इसी प्रकार, ग्रामोद्योग वीआई क्षेत्र के उत्पादन और बिक्री में भी पिछले पांच वर्षों में लगभग 100 प्रतिशत की अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी देखी गई है। पिछले एक वर्ष में खादी के कारोबार के प्रदर्शन का अवलोकन करते हुए, यह 2018-19 में 3215.13 करोड़ रुपये था, जिसमें 31 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए, यह 2019-20 में 4211.26 करोड़ रुपये हो गया। ग्रामोद्योग उत्पादों का कारोबार 2019-20 में 84,675.39 करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जिसमें पिछले वर्ष की तुलना में 19 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की गई है, जो कि 2018-19 में 71,077 करोड़ रुपये था। वर्ष 2019-20 में, खादी एवं ग्रामोद्योग का कुल कारोबार 88,887 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।
खादी परिधानों के अलावा, ग्राम उद्योग उत्पादों की एक विस्तृत श्रृंखला जैसे सौंदर्य प्रसाधन, साबुन और शैंपू, आयुर्वेदिक दवाएं, शहद, तेल, चाय, अचार, पापड़, हैंड सैनिटाइजर, मिष्ठान्न, खाद्य पदार्थ और चमड़े की वस्तुओं ने भी बड़ी संख्या में देश.विदेश के उपभोक्ताओं को आकर्षित किया है। इसके परिणामस्वरूप पिछले पांच वर्षों में ग्रामोद्योग उत्पादों के उत्पादन और बिक्री में लगभग दोगुनी वृद्धि दर्ज की गई है। यह बात विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है कि केवीआईसी ने विभिन्न राज्य सरकारों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों जैसे एयर इंडिया, आईओसी, ओएनजीसी, आरईसी और अन्य, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों, भारतीय रेल और स्वास्थ्य मंत्रालय का समर्थन जुटाने में निरंतर रूप से प्रगति की है। इसके अलावा, ग्रामोद्योग क्षेत्र में केवीआईसी मधुमक्खी पालन, मिट्टी के बर्तन और बेकरी जैसे 150 से ज्यादा क्षेत्रों में इन.हाउस क्षमता के साथ उत्कृष्ट उत्पादों का दावा करता है।
खादी ग्रामोद्योग आयोग केवीआईसी से कुछ दिलचस्प लेकिन चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। छोटे, मध्यम तथा लघु उद्योग मंत्रालय ने ये आंकड़े लोक सभा में पेश किए हैं। द इकॉनॉमिक टाइम्स के अनुसार खादी उद्योग में बेरोजगार हाेने वाले लोगों की तादाद तेजी से बढ़ी है। साल 2015-16 और 2016-17 के दौरान इस उद्योग में काम करने वालो की आंकड़ा सिमटकर 4.6 लाख रह गया है, जबकि इससे पहले यह 11.6 लाख के आसपास था। यानी खादी उद्योग में काम करने वाले लगभग सात लाख लोग इन दो सालों में अपना रोजगार गवां चुके हैं। वहीं दूसरी तरफ़ इन्हीं दो साल में उत्पादन में अच्छी बढ़त दर्ज़ की गई है। यह 31.6 से बढ़कर 33 फ़ीसद तक पहुंच चुका है। एक दौर में पहाड़ से लेकर तराई तक लोगों को रोजगार देने का अकेला माध्यम गांधी आश्रम आज घाटे में चल रहा है। यहां उत्पादन और बिक्री दोनों में कमी आई है।
कुमाऊँ के 6 जिलों में स्थापित क्षेत्रीय उत्पादन केंद्रों में बिक्री और उत्पादन दोनों घट रहा है। जिस कारण अब पहाड़ से तराई तक गांधी की खादी का अस्तित्व खतरे में दिखने लगा है। आजादी की लड़ाई के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कुमाऊं में अनेक जगहों का भ्रमण किया। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की सभा को संबोधित करने के लिए सोमेश्वर के चनौदा भी पहुंचे। विदेशी कपड़े त्यागने के बाद बापू के आह्वान के बाद स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शांतिलाल त्रिवेदी ने सन 1937 में चनौदा में खादी आश्रम की स्थापना की। इस गांधी आश्रम ने आजादी की लड़ाई में विदेशी कपड़ों की होली जलाने और स्वदेशी खादी का प्रचार.प्रसार के बाद में अहम भूमिका निभाई थी। खादी के व्यापक प्रचार.प्रसार के बाद कुमाऊ के अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़, चंपावत, उधम सिंह नगर और नैनीताल में भी अनेक स्थानों पर गांधी आश्रमों की स्थापना की गई। दो दशक पूर्व तक गांधी आश्रम के जरिए दो सौ से अधिक कर्मचारी और पांच सौ से अधिक कत्तीन एवं बुनकरों को इन गांधी आश्रमों से रोजगार भी उपलब्ध होता था। यहां निर्मित टोपी, साल, कोट, मफलर, जैकेट, रजाई, गद्दे, चादर के अलावा ग्रामोउद्योग के बक्से एवं अलमारियों का भी निर्माण किया जाता था। जिन्हें कुमाऊ के सभी जिलों के अलावा बाहरी प्रदेशों में भी भेजा जाता था।
सन् 1998 के बाद से गांधी आश्रम लगातार घाटे में चल रहा है। इधर सरकार से मिलने वाली दो सालों की दस प्रतिशत सब्सिडी भी गांधी आश्रम को नहीं मिल पाई है। जिस कारण उत्पादन और बिक्री लगातार कम हो रही है। कच्चा माल न आने कारण अब बुनकरों का भी रोजगार छिनता जा रहा है। देखरेख के अभाव में चनौदा स्थित संस्था का भवन भी जीर्ण-शीर्ण हालत में पहुंच गया है। वर्तमान में गांधी आश्रम करोड़ों रुपए के घाटे में हैं और यहां कर्मचारियों की संख्या भी घटकर करीब 80 रह गई है। गांधी की खादी के इन आश्रमों में तिब्बत समेत देश के अलग.अलग राज्यों से ऊन मंगाकर उत्पाद तैयार किए जाते थे। राजस्थान, पंजाब और हरियाणा से कच्चा माल मंगाया जाता था। इसके बाद तैयार उत्पादों को देशी.विदेशी सैलानी भी खरीदते थे। घाटे में आने के बाद अब बाहरी राज्यों से कच्चा माल आना भी बंद हो गया है।
मुनस्यारी के ऊनी कारोबार के लिए प्रमुख केन्द्र खादी ग्राम उद्योग ने अपना मुनस्यारी कार्यालय बन्द कर दिया है। पिछले कई दिनों से न तो कोई कर्मचारी है और न ही विभाग का ताला खोल जा रहा है । बड़ी संख्या मे लोग दफ्तर मे आ रहे है और लौट कर जा रहे हैं। ऊनी कारोबार के लिए पिछले कई सालों से मुनस्यारी मे ग्रामोउद्योग का कार्यालय और दुकान खोली गयी थी जो ऊनी कारोबार को बढ़ावा देता था। यहां स्थानीय लोग अपने ऊनी उत्पाद की मार्केटिंग भी करते थे। लेकिन सरकार द्वारा मुनस्यारी केन्द्र को बन्द कर दिया गया है। जिससे लोगों को मायूस लौटना पड़ रहा है। अल्मोड़ा में सब सेव पुरानी खादी आश्रम विक्रय केंद्र में जहां साल भर गर्मी हो या फिर सर्दी हर दिन खादी से बनी वस्तुओं की खरीदारी जारी रहती थी, लेकिन लम्बे लॉकडाउन की वजह से इसकी बिक्री में भारी गिरावट दर्ज की गई है। लॉकडाउन से सभी प्रकार के उद्योग धंधों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है अलमोड़ा के गांधी आश्रम खादी भंडार की वर्षों से चली आ रही इस केंद्र में खादी के वस्त्रों को बनाया और बिक्री किया जाता है। लेकिन इस लॉकडाउन में इस दुकान में खादी के मास्कों के भरोसे ही दुकानदारी चल रही है। खादी केंद्र के मैनेजर ने न्यूज़ नुक्कड़ को बताया कि पिछले साल 61 लाख की बिक्री की गई थीए लेकिन इस बार लॉकडाउन में अभी तक 7 लाख विक्री घट गई। अभी वर्तमान में उनके द्वारा मास्कों की बिक्री की जा रही है। खादी वस्त्रों के खरीदारों का कहना है खादी का ये बहुत पुराना केंद्र है, जिसमें हर प्रकार के खादी वस्त्र बनाए जाते हैं, खादी और ग्रामोद्योग आयोग के ऑनलाइन बिक्री मंच पर अब 180 से ज्यादा उत्पाद उपलब्ध हो चुके हैं। आयोग इसे इस वर्ष गांधी जयंती तक 1,000 उत्पाद करने का लक्ष्य लेकर चल रहा है।।
कोविड.19 संकट के बीच आयोग ने सिर्फ मास्क की बिक्री के साथ सात जुलाई को इस मंच की शुरुआत की थी। आयोग एमएसएमई ;सूक्ष्मए लघु और मध्यम उद्योगद्ध मंत्रालय के तहत काम करता है। मंत्रालय ने बुधवार को एक आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा कि आयोग की इस पहल से देशभर में खादी ग्रामोद्योग से जुड़े लोग दूर.दूर तक अपने उत् पाद बेचने में समर्थ हो रहे हैं। इस मंच पर सात जुलाई को केवल खादी के मास् क की ऑनलाइन बिक्री शुरू हुई थी। अब यह पूरी तरह विकसित ई.मा र्केट का रूप ले चुका है और इस पर 180 से अधिक उत् पाद मौजूद हैं। कई और उत्पादों को शामिल करने की प्रक्रिया चल रही है। आयोग के अध्यक्ष विनय कुमार सक्सेना ने इस बारे में कहा कि खादी उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री ष्स्वदेशीष् मुहिम को गति प्रदान करने वाली है और इसका उद्देश् य स् थानीय कारीगरों को सशक् त बनाना है। यह ष्आत् मनिर्भर भारतष् का निर्माण करने की दिशा में एक मजबूत कदम है। इस मंच पर 50 रुपये से लेकर पांच हजार रुपये तक के उत्पाद मौजूद हैं। आयोग ने कहा कि वह मंच पर रोजाना कम से कम 10 नए उत् पाद जोड़ रहा है। उसका लक्ष्य इसे दो अक्टूबर तक 1,000 उत्पाद तक पहुंचाने का है। लेकिन लॉकडाउन के कारण इसकी विक्री बहुत ज्यादा घट गई है। खादी पर लॉकडाउन की मार, मझधार में अटकी नैया को मास्क का सहारा खादी की घटती मांग और सरकारों की उदासीनता के कारण आज इस आश्रम में कार्य कर रहे लोगों के समक्ष अस्तित्व का सवाल उठ खड़ा हुआ है। भारत के स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले के गांधी आश्रम को उसकी प्रतिष्ठा के अनुरूप सरकारी व स्थानीय सहयोग की बड़ी आवश्यकता है।

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