डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
किनवा वैज्ञानिक नाम. चेनोपोडियम किनवा बुनियादी तौर पर एक फलदार पौधा है, जो एमरैंथ चौलाई परिवार से संबंधित है। भारतीय ग्राहक किनवा के करीबी रिश्तेदार बथुआ और राजगीर से अच्छी तरह परिचित हैं, जो पौष्टिक गुणों में काफी हद तक समान हैं और उन्हें अक्सर किनवा कहकर बेच दिया जाता है। इसके छोटे बीजों में काफी हद तक अनाजों की ही तरह गुण होते हैं जिसकी वजह से उन्हें छद्म.अनाज भी कहा जाता है। किनवा औषधीय गुणों से युक्त बेहतरीन गुणवत्ता वाले पौष्टिक तत्त्वों से भरपूर होते हैं। इसके अलावा यह कुछ लोगों में एलर्जी पैदा करने वाले ग्लूटेन से मुक्त भी होता है। आंध्र प्रदेश एवं राजस्थान किनवा की अहमियत को पहचानने वाले शुरुआती राज्य हैं, जिन्होंने दूसरी फसलें नहीं उग पाने वाले इलाकों में भी इसकी बुआई शुरू की। इन राज्यों के सूखा प्रभावित इलाकों में किनवा की खेती को बढ़ावा दिया गया। बाद में इसकी खेती तेलंगाना, कर्नाटक और उत्तराखंड के अलावा कुछ अन्य राज्यों में भी शुरू हो गई। हाल ही में लद्दाख भी इसे सफलतापूर्वक आजमाने वाला राज्य बना है।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने किनवा को अपने अंतरिक्ष यात्रियों के रोजमर्रा के खानपान में शामिल करने की मंजूरी दी हुई है। भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन डीआरडीओ ने भी किनवा की कीमत पहचानी है। उत्तराखंड के हल्द्वानी स्थित जैव.ऊर्जा रक्षा शोध संस्थान डिबेर ने वर्ष 2015 में किनवा की खेती के बारे में एक बहुस्थलीय शोध परियोजना शुरू की थी। डिबेर संस्थान के वैज्ञानिकों ने इंडियन फार्मिंग के अक्टूबर 2019 अंक में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में बताया था कि किनवा में सभी जरूरी अमिनो अम्ल शामिल होते हैं जो कि खाद्य फसलों में बेहद दुर्लभ है। यह प्रोटीन का एक बेहद समृद्ध स्रोत है, जिसमें लाइसिन की मात्रा 5.1-6.4 फीसदी और मेथियोनाइन 0.4-1.0 फीसदी होता है। इसमें विटामिन, खनिज, ऐंटी.ऑक्सीडेंट एवं ऐंटी.इन्फ्लेमेटरी एजेंट से भरपूर फ्लेवोनॉयड और आहार रेशे की भी मौजूदगी होती है। इस वजह से किनवा एक बेहद पौष्टिक एवं प्रतिरोधक क्षमता.वद्र्धक आहार बन जाता है। खास बात यह है कि इसके पौष्टिक गुण खाना पकाने पर भी बरकरार रहते हैं। दिलचस्प ढंग से किनवा के पौधे के लगभग सभी हिस्से ही खाने लायक हैं और उनमें उपचारात्मक खासियत भी मौजूद होती है। असल में, यकृति लिवर से जुड़ी समस्याओं, दिल में उठने वाली चुभन एंजाइना, दांत के दर्द, मूत्र.प्रणाली से संबंधित समस्याओं और बुखार जैसी करीब 20 बीमारियों के इलाज में किनवा को लाभकारी पाया गया है।
इसे आंत की सेहत, कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रण में रखने और बड़ी आंत के कैंसर के निवारण में भी उपयोगी माना जाता है। इसके अलावा जख्मों, चोटों की मरहम.पट्टी के लिए भी इसके ऐंटी.इंफ्लेमेटरी गुण फायदेमंद हैं। इसके अलावा अपनी तीव्र पाचन-क्षमता, ग्लूटेन की कमी और उल्लेखनीय पौष्टिक गुणों की वजह से किनवा को शिशुओं के आहार के लिए आदर्श घटक माना जाता है। अब तो किनवा के आटे के इस्तेमाल से इडली, डोसा एवं अन्य भारतीय व्यंजनों को बनाने की विधियां भी सामने आ चुकी हैं। इसके अलावा इससे कुकीज, ब्रेड और पास्ता जैसी चीजें भी बनने लगी हैं। किनवा से बनने वाले गुणवत्तापरक खाद्य उत्पादों के विकास के लिए आगे और शोध एवं विकास की जरूरत है ताकि इस सुपरफूड को आम लोगों के बीच भी लोकप्रिय बनाया जा सके। हालांकि सोयाबीन की तरह किनवा भी प्रोटीन से समृद्ध एक ऐसा उत्पाद है, जिसमें मौजूदा अपाच्य तत्त्व को खाने के पहले हटाने की जरूरत होती है। सोयाबीन के मामले में यह चीज फीइटो.एस्ट्रोजेन होती है जो अधिक मात्रा में होने पर जहरीला हो सकता है। वहीं किनवा के मामले में यह नुकसानदेह चीज सेपोनिन है जो बीज की बाहरी परत में मौजूद एक झागदार पदार्थ है। बीज की यह परत किनवा को थोड़ा कड़वा स्वाद दे देती है। अगर किनवा के दाने को पानी में 30 मिनट तक भिगोने के बाद 20 मिनट तक गर्म पानी से गुजारा जाए तो इससे सेपोनिन को अलग किया जा सकता है।
औद्योगिक स्तर पर इसके बीज के बाहरी हिस्सों को मशीन की मदद से अलग कर सेपोनिन से मुक्त कर दिया जाता है। इस तरह प्रसंस्करण उद्योग ने किनवा को आम आदमी की प्रतिरोधकता बढ़ाने वाला खाद्य उत्पाद बनाने में बेहद अहम भूमिका निभाई है। इस समय जरूरत यह है कि किनवा से संबंधित नवाचारी एवं मूल्य.वद्र्धित उत्पाद बनाए जाएं। कृषक उत्पादक संगठन एफपीओ एवं स्टार्टअप सरकार की थोड़ी मदद से इस काम को हाथ में ले सकते हैं। मिड.डे मील एवं पोषण अभियान जैसे सरकारी पौष्टिकता कार्यक्रमों में किनवा उत्पादों को शामिल करना समझदारी भरी सोच होगी। पौष्टिक एवं चिकित्सकीय गुणों की इस खान को नजरअंदाज करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। क्विनोआ का सेवन करने से पाचन संबंधी समस्याकएं नहीं होती। यह मेटाबॉलिज्मव को मजबूत बनाता है। जिससे आपका शरीर ग्रहण किए गए आहार हो बेहतर तरीके से पचा कर शरीर की अन्य आवश्यबकताओं की पूर्ति करता है। शरीर के लिए मेटाबॉलिज्म का मजबूत होना बेहद जरूरी है, क्योंकि यह भोजन को ऊर्जा में बदलने का काम करता है। मेटाबॉलिज्म में कमजोरी यानी आपके शरीर में ऊर्जा की कमी। क्विनोआ में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है, जो मेटाबॉलिज्म में सुधार के लिए काफी फायदेमंद है मौजूद हाई प्रोटीन इसे कोलेस्ट्रॉल फ्री और लो फैट का बड़ा स्रोत बनाते हैं। एक कप पके हुए क्विनोआ में 222 कैलोरी, 3.4 ग्राम फैट, 3 ग्राम फाइबर और 8.14 ग्राम प्रोटीन होता है। एक संतुलित आहार है इसकी बेहतर ब्रांडिंग के जरिये हम इनकी पहचान बनाने में सफल हुए तो इससे इनके उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा तथा ग्रामीण आर्थिकी को मजबूती मिलेगी सरकारी व स्थानीय सहयोग की बड़ी आवश्यकता है। तो निश्चित तौर पर पहाड़ की पुरानी रौनक वापस लौट सकती है।












