डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
रामनवमी को लेकर प्रभु रामचंद्र की नगरी अयोध्या राममय हो चुकी है. सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में आपको कई ऐसे ऐतिहासिक मंदिर और कई प्राचीन धरोहर देखने को मिलेगी, जिनका अपना ऐतिहासिक प्रमाण रहा है. जहां भगवान राम के शिला रूपी चरण देखने को मिलते हैं. उत्तराखंड अल्मोड़ा के मल्ला महल में रामशिला मंदिर स्थापित है. बताया जाता है कि ये मंदिर करीब 400 साल से भी ज्यादा पुराना है. इस मंदिर में रामनवमी के दिन काफी संख्या में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. सुबह से ही भक्तों की भीड़ जुटना शुरू हो जाती है. अल्मोड़ा के मल्ला महल में राजा रुद्रचंद ने 1588 में राम शिला मंदिर की स्थापना की थी. राजा ने राजमहल के पास ही भगवान राम के चरणों को स्थापित किया. ताकि वह भगवान राम के चरणों की श्रद्धालु पूजा-अर्चना कर सकें.पुजारी ने बताया कि यह मंदिर चंद वंश राजाओं के द्वारा बसाया गया था. यहां सुबह से ही भक्तों का तांता लगा रहता है. काफी संख्या में लोग पूजा-अर्चना करने के लिए आते हैं. भगवान राम की शिला रूपी चरण पादुकाओं को श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते हैं. अल्मोड़ा नगर स्थित रामशिला मंदिर (वर्तमान में जिलाधीश कार्यालय प्रांगण में स्थित) के भौगोलिक विस्तार, महत्व एवं संबंधित कथा का वर्णन प्राप्त होता है जिसके अनुसार कौशिकी (कोसी) तथा शालि (सुयाल) नदियों के मध्य स्थित क्षेत्र ‘विष्णुक्षेत्र कहलाता है जो रामक्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध है. जहाँ श्रीराम के चरणों से चिन्हित रामशिला विद्यमान है जिस पर बैठकर भगवान राम ने देवों, ऋषियों, सनकादि सप्तऋषियों तथा पितरों का तर्पण किया था.यहीं से श्रीराम के चरण युगल से रम्भानदी का उद्गम हुआ था जो संभवत: रम्भानौला रहा हो. यह रम्भानदी उत्तर की ओर बहती हुई कोसी नदी में मिलती थी. इस स्थान पर तिरात्ति प्रवास का महत्व भी इस अध्याय में बताया गया है. यहाँ मोक्षदायनी रामशिला अभी भी जाग्रत है. पर मानसखण्ड में अल्मोड़ा के समीपस्थ अनेक क्षेत्रों जैसे कसारदेवी, कटारमल, बिन्सर, सिमतोला आदि का वर्णन प्राप्त होता है.इस ग्रंथ के ‘कौशिकी महात्म्य’ नामक 37 वें अध्याय में स्वयंभूपर्वत एवं यहाँ स्थित स्वयम्भूनाथ के पूजन का महत्व बताया गया है. इस स्थान का तादात्म्य वर्तमान सिमतोला से किया गया है. इसके बाईं ओर स्थित ‘काषाय पर्वत’ (स्थानीय नाम कलमटिया) है. उक्त पर्वतों में प्रवास के उपरान्त कोसी में स्नान करके साहित्य के पूजन का महत्व बताया गया है. यह बड़ादित्य अल्मोड़ा नगर के समीप स्थित कोसी में कटारमल का सूर्यमंदिर है. मानसखण्ड के ‘बड़ादित्य महात्म्य’ नामक 38वें अध्याय साहित्य पूजन के महात्य का विस्तृत वर्णन किया गया है. ‘कौशिकी महात्म्य’ नामक 39वें अध्याय में राम के चरणों से उद्गमित रम्भा नदी के कौशिकी में मिलने का वर्णन है. श्याम पर्वत अर्थात स्याहीदेवी स्थित ‘शक्ति’ की उपासना का महत्व भी बताया गया है. अतीत की तरफ मुड़कर देखें तो अल्मोड़ा शहर अपने आप में एक इतिहास है और इसके साथ जुड़ी अतीत की इमारतें इसकी धरोहर। पत्थर और लकडिय़ों की बनी इमारतों में कई वर्षों का गुजरा कल बसता है। मल्ला महल भी एक ऐसी इमारत है। जिसने एक दौर में राजाओं की सल्तनत देखी। हुक्म देते हुए देखा और दरबार सजते भी हुए देखे। वर्तमान में इस महल में अल्मोड़ा का कलक्ट्रेट संचालित होता है। लेकिन यह महल अपनी पुरानी दास्तां को खुद बयां करे। इसके लिए अब इसे हैरिटेज के रूप में विकसित किया जा रहा है।बात मल्ला महल की करें तो वक्त ने ज्यों ज्यों करवट बदली तो इसके साथ किस्से भी हजारों जुड़ते चले गए। 1915 में पहले जिलाधिकारी के तौर पर ई डब्ल्यू गार्डनर ने यहां कलक्टर की कुर्सी संभाली थी। मगर बात इससे पहले की करें तो राजशाही सल्तनत मल्ला महल ने देखी है। अल्मोड़ा के इतिहास पर नजर डालें तो यह कस्बा स्थापना से पूर्व कत्यूरी राजा बैचलदेव के अधीन था। कत्यूरी शासन के दौरान इस शहर को राजपुर नाम से जाना जाता था।17 वीं शताब्दी में चंद राजाओं ने अल्मोड़ा पर अपना कब्जा जमा लिया और तत्कालीन राजा रूद्र चंद ने अल्मोड़ा के मध्य में मल्ला महल का निर्माण कराया। वर्ष 1731 में नेपाल के गोरखाओं ने काली नदी के पश्चिम से अपने राच्य का विस्तार किया और अल्मोड़ा पर आक्रमण कर उसे अपने अधीन कर लिया। बाद में अंग्रेजों ने भारत पर आक्रमण किया और गोरखाओं को परास्त कर अल्मोड़ा को अपने अधीन कर लिया। इस तरह अल्मोड़ा के मल्ला महल ने अतीत से लेकर अब तक अनेक उतार चढ़ाव देखे। यह महल आज भी पुरानी यादों को सहेजे हुए है और इस शहर की यह सबसे प्राचीन धरोहरों में एक भी है। अल्मोड़ा की बसासत के इतिहास की बात करें तो यह चंद और कत्यूरी राजाओं से जुड़ा हुआ है। कत्यूरी शासकों का यहां वर्ष 1560 तक प्रवास रहा। मगर इस शहर ने असल आकार 1563 में चंद राजाओं के शासन से लेना शुरू किया। यह शहर चंद राजाओं की राजधानी भी बना। द वंशीय राजा रूद्र चंद्र द्वारा 1588 में अष्ट पहल दुर्ग में रामशिला मंदिर का निर्माण कराया था। यह उत्तर मध्यकालीन वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। इस मंदिर के केंद्रीय कक्ष में विस्तृत प्रस्तर पर युगल चरण चिन्ह अंकित हैं। जिन्हें भगवान राम चंद्र के चरणों की मान्यता है। इसके पश्चिमी कक्ष में राजा बाज बहादुर चंद द्वारा 1671 में गढ़वाल के जूनियागढ़ किले से विजय के उपरांत लाई गई मां नंदा देवी की मूर्ति स्थापित की गई। वर्ष 1815 से 35 के मध्य ब्रिटिश कमिश्नर जी डब्ल्यू ट्रेल ने नंदा देवी और काल भैरव के विग्रहों को दुर्ग से बाहर मल्ला महल में स्थानांतरित किया।वर्तमान में मल्ला महल में कलक्ट्रेट का संचालन किया जा रहा है। लेकिन मल्ला के इतिहास को देखते हुए इसे हैरिटेज के रूप में विकसित करने का कार्य शुरू हो गया है। कलक्ट्रेट को विकास भवन के पास बन रहे नए भवन में स्थानांतरित किया जाएगा। मल्ला महल के मूल रूप को संरक्षित करते हुए यहां उन सभी शासकों से जुड़ी यादों से जोड़ा जाएगा। उनके द्वारा प्रयोग में लाई गई सामग्री का संकलन कर उसे यहां विरासत के रूप में सहेजा जाएगा। रानी महल में फोटो गैलरी के अलावा ओपन एअर थिएटर, सोलह संस्कार, नंदादेवी स्टोरी व अर्बन कल्चर से जुड़ी सामग्री भी यहां सैलानियों को आकर्षित करने का प्रयास करेगी। कुल मिलाकर अब इस मल्ला महल में यहां से सल्तनत कर चुके प्रत्येक राजाओं और उनके वंशजों से जुड़ी जानकारी सैलानियों को इस महल में आकर मिल सकेगी। रामनवमी को लेकर प्रभु रामचंद्र की नगरी अयोध्या राममय हो चुकी है। सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में आपको कई ऐसे ऐतिहासिक मंदिर और कई प्राचीन धरोहर देखने को मिलेगी, जिनका अपना ऐतिहासिक प्रमाण रहा है। जहां ईश्वर राम के शिला रूपी चरण देखने को मिलते हैं। उत्तराखंड अल्मोड़ा के मल्ला महल में रामशिला मंदिर स्थापित है। कहा जाता है कि ये मंदिर करीब 400 वर्ष से भी अधिक पुराना है। उन्होंने यहां पर पूजा अर्चना की। श्रद्धालु लीला बोरा ने कहा कि सभी राम जन्मभूमि अयोध्या नहीं जा सकते, लेकिन अल्मोड़ा के रामशिला मंदिर आकर ईश्वर रामचंद्र की चरण पादुका के दर्शन कर रहे हैं। वह इस मंदिर में लोगों की आस्था आज भी बरकरार है . *लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*