डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में चारधाम यात्रा में सबसे कठिन यात्रा केदारनाथ की मानी जाती है. हिमालय की
गोद में विराजमान बाबा केदार के दर्शनों के लिए भक्तों को 18 किलोमीटर की पैदल चढ़ाई
करनी पड़ती है. इस बार की यात्रा भीड़ के आंकड़ों की वजह से ही नहीं है बल्कि, हादसों की
वजह से भी चर्चाओं में है. दुर्घटनाएं भी ऐसी कि अगर श्रद्धालु हेलीकॉप्टर से केदारनाथ के
दर्शन जा रहा है तो हेलीकॉप्टर क्रैश हो जा रहा है और अगर पैदल मार्ग से भोले के दर्शन के
लिए पहुंच रहा है तो उसमें भी भूस्खलन से लोगों की मौत हो रही है.हाल में ही यानी 18 जून
को भी एक ऐसा ही दर्दनाक हादसा तब हुआ. कुछ श्रद्धालु केदारनाथ के दर्शन कर लौट रहे थे
कि अचानक पहाड़ी से पत्थर गिरने लगे. इस हादसे में जम्मू कश्मीर और नेपाल के दो मजदूरों
की मौत हो गई जबकि, एक लापता हो गया. केदारनाथ के पैदल मार्ग पर भूस्खलन की वजह से
यह हादसा कोई पहला हादसा नहीं है. साल 2013 के बाद से लेकर अब तक कई बार इस तरह
की घटनाएं घट चुकी हैं. घटना के बाद सवाल खड़े होते हैं कि आखिरकार बरसात के दिनों में
अगर पैदल मार्ग पर खतरा है तो यात्रा को मानसून के दौरान रोका क्यों नहीं जाता, या फिर
यात्रा शुरू होने से पहले पैदल मार्ग के उन स्थानों को दुरुस्त क्यों नहीं किया जाता जहां से
पत्थर गिरने का खतरा रहता है. उत्तराखंड में चारधाम यात्रा में अभी तक 5 हेलीकॉप्टर हादसे
और क्रैश लैंडिंग की घटनाएं हो चुकी हैं. इनमें से दो गंभीर हेलीकॉप्टर हादसों में 13 श्रद्धालुओं
की मौत हो चुकी है. वहीं, 18 जून को पत्थर गिरने से भी दो लोगों की मौत हुई है. जबकि,
हृदय गति रुकने या अन्य बीमारियों की वजह से चारधाम पर आने वाले श्रद्धालुओं की मौत की
संख्या 100 पार पहुंच गई है. अभी यात्रा को शुरू हुए महज दो महीने हुए हैं. ऐसे में एक के
बाद एक इस तरह की दुर्घटनाओं से न केवल स्थानीय प्रशासन चिंता में है. बल्कि, श्रद्धालु भी
डर के साए में यात्रा पर जा रहे हैं. साल 2013 की आपदा के बाद उत्तराखंड सरकार ने
केदारनाथ तक पैदल पहुंचने के लिए पहाड़ी को काटकर एक नया रास्ता बनाया है. यह रास्ता
पुराने रास्ते से कठिन है. इस रास्ते में एक दो जगह नहीं बल्कि, पूरे 13 ऐसे लैंडस्लाइड जोन हैं
जो सरकारी आंकड़ों में भी दर्ज हैं. इस बारे में आपदा प्रबंधन विभाग भी कह चुका है कि यात्रा
के दौरान इन 13 जगहों पर विशेष सतर्कता बरती जाए. शायद यही कारण है कि पैदल मार्ग
के एक्रो ब्रिज के पास, घोड़ा पड़ाव के साथ जंगल चट्टी, भीम बाली, छोटी लिनचोली और बड़ी
लिनचोली के खतरनाक इलाकों पर यात्रा के दौरान एनडीआरएफ, एसडीआरएफ एवं पुलिस के
जवान तैनात रहते हैं. ताकि, किसी भी घटना के दौरान जल्द से जल्द न केवल रेस्क्यू ऑपरेशन
चलाया जाए और आने-जाने वाले श्रद्धालुओं को भी सावधानी से इन प्वॉइंट से निकाला जाए.
लेकिन केदारनाथ पैदल मार्ग पर हादसे रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं. केदारनाथ मार्ग पर कैसा
है हादसों का रिकॉर्ड? अधिकारी मानते हैं खतराइन सभी हादसों पर उत्तराखंड आपदा प्रबंधन
सचिव का कहना है कि 'ये जो घटनाएं हो रही हैं, बेहद दुर्भाग्यपूर्ण हैं. हम जानते हैं कि पहाड़ों
पर भूस्खलन जोन लगातार बनते रहते हैं. ऐसा नहीं है कि हम इस पर कोई काम नहीं कर रहे
हैं. साल 2024 में यह संख्या 29 के करीब थी. जहां पर पत्थर गिरने का काफी खतरा था.' जब
किसी इलाके में अत्यधिक बारिश हो जाती है तो वहां पर भूस्खलन होना स्वाभाविक है. इसे
हम एक्सट्रीम रेनफॉल भी कहते हैं. इसके साथ ही भूस्खलन बारिश के अलावा छोटे-मोटे भूकंप
या पेड़ काटने और पहाड़ काटने से भी होता है. केदारनाथ में लगातार निर्माण कार्य चल रहा है
और बारिश के दौरान पत्थर गिरना वहां पर आम बात है. केदारनाथ के आसपास कई ग्लेशियर
भी हैं, जिनका पिघलना भी भूस्खलन की एक बड़ी वजह होता है. कई लोगों को ऐसा लगता है
कि नीचे बारिश नहीं हो रही है तो यात्रा शुरू कर दें. अगर मौसम खराब है और मौसम विभाग
की तरफ से अलर्ट जारी किया गया है तो आप ये सोचकर यात्रा करें कि हो सकता है कि ऊपरी
इलाकों में अत्यधिक बारिश हो रही हो. जब ऊपरी इलाकों में बारिश होती है तो अचानक से
नदी नालों में पानी आ जाता है. केदारनाथ के रास्तों में भी कई जगह ऐसी हैं, जहां पर अचानक
से पानी तेज गति से बहने लगता है. इसलिए लोग सुरक्षित रहें. बारिश के समय पर यात्रा की
चढ़ाई न करें. गौरीकुंड से केदारनाथ पैदल मार्ग पर प्रत्येक वर्ष पहाड़ी से बोल्डर गिरने के
कारण अक्सर दुर्घटनाएं घटित होती रहती है, इसके बावजूद यहां पर पहाड़ी से बोल्डरों व
भूस्खलन को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया। वहीं केदारनाथ पैदल मार्ग भूस्खलन
की दृष्टि से काफी संवेदनशील है।वहीं प्रशासन की ओर से भी पैदल मार्ग पर जगह-जगह
डीडीआरएफ, एसडीआरएफ के साथ ही पुलिस भी तैनात की गई है, जो यात्रियां को पैदल मार्ग
पर डेंजर जोन में सुरक्षित आवाजाही करवाते हैं, जबकि कई मार्ग कोई भी दुर्घटना होने पर
तत्काल रेस्क्यू अभियान शुरू कर देते हैं।ट्रेड यूनियन के अध्यक्ष का कहना है कि केदारनाथ पैदल
मार्ग पर बारिश में आवाजाही पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगना चाहिए, बारिश के समय
भूस्खलन की घटनाएं अधिक होती है, जिससे दर्दनाक हादसे हो रहे हैं।
*लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*