डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
बुरांस का पेड़ उत्तराखंड का राज्य वृक्ष है तथा नेपाल में बुरांस के फूल को राष्ट्रीय फूल घोषित किया गया है। गर्मियों के दिनों में ऊंची पहाड़ियों पर खिलने वाले बुरांस के सूर्ख फूलों से पहाड़ियां भर जाती हैं। हिमाचल प्रदेश में भी यह पैदा होता है। बुरांस हिमालयी क्षेत्रों में 1500 से 3600 मीटर की मध्यम ऊंचाई पर पाया जाने वाला सदाबहार वृक्ष है। बुरांस के पेड़ों पर मार्च.अप्रैल माह में लाल सूर्ख रंग के फूल खिलते हैं। बुरांस के फूलों का इस्तेमाल दवाइयों में किया जाता है, वहीं पर्वतीय क्षेत्रों में पेयजल स्रोतों को यथावत रखने में बुरांस महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
बुरांस के फूलों से बना शरबत हृदय.रोगियों के लिए बेहद लाभकारी माना जाता है। बुरांस के फूलों की चटनी और शरबत बनाया जाता हैए वहीं इसकी लकड़ी का उपयोग कृषि यंत्रों के हैंडल बनाने में किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी वृद्ध लोग बुरांश के मौसम् के समय घरों में बुरांस की चटनी बनवाना नहीं भूलते। बुरांस की चटनी ग्रामीण क्षेत्रों में काफी पसंद की जाती है।भारत विश्व की लगभग 87 प्रजातियांए 10 उप प्रजातियां तथा 14 किस्मों का प्रतिनिधित्व करता है जो कि उच्च हिमालयी राज्यों के जंगलों में अधिक मात्रा में पायी जाती हैं। आज इन्ही हिमालयी क्षेत्रों में बुरांश की कुछ प्रजातियां चीनए जापानए म्यामांरए थाईलैण्डए मलेशियाए इंडोनेशियाए फिलीपीन्स तथा न्यू गुनिया आदि देशों तक फैल चुकी है।
बुरांश की कुछ प्रजातियां अफगानिस्तान, पाकिस्तान, दक्षिणी यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका में और इसके अलावा दो प्रजातियां आस्ट्रेलिया में पायी जाती हैं। भारत में पायी जाने वाली कुल 87 प्रजातियों में से 12 प्रजातियां उत्तराखण्ड में पायी जाती हैं जिनमे चार प्रजातियां, रोडोडेंड्रोन बारबेटम, रोडोडेंड्रोन केम्पानुलेटम, रोडोडेंड्रोन एरबोरियम तथा रोडोडेंड्रोन लेपिडोटम प्रमुख हैं। जबकि 75 प्रजातियां अरूणाचल प्रदेश में पायी जाती हैं। बुरांस को सबसे पहले 1650 में ब्रिटिश में उगाया गया था जो बुरांश की एक प्रजाति रोडोडेंड्रोन हिरसुटम थी इसके बाद 1780 में साइबेरिया ने रोडोडेंड्रोन डाउरिकम और 1976 में रोडोडेंड्रोन चिराइसेंथम इसके इतिहास में वर्णित है। रोडोडेंड्रोन आरबोरियम पहली प्रजाति है जिसकी 1796 में श्रीनगर में खोज तथा पहचान की गयी। एक प्रसिद्ध बोटनिस्ट जोसेफ डी0 हूकर 1817-1911 द्वारा एक यात्रा की गयी जिसमें उनके द्वारा नेपाल से लेकर उत्तरी भारत तक बुरांश की सही जानकारी दी गयी। उत्तराखण्ड में बुरांस के प्रत्येक भाग का विभिन्न उपयोगों हेतु प्रयोग किया जाता है। पुराने समय से ही बुरांश के फूल को जूस तथा चटनी आदि में उपयोग किया जाता रहा है।
बुरांश की पत्तियों में अच्छी पौष्टिकता के कारण उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पशुचारे हेतु प्रमुखता से उपयोग में लाया जाता है। इसकी लकड़ी मुलायम होती है जिस वजह से इससे लकड़ी के बर्तन, कृषि उपकरणों में हैंडल आदि बनाने हेतु प्रयोग में लाया जाता रहा है।दूरस्थ हिमालयी क्षेत्रों में बुरांस को प्राचीन काल से ही विभिन्न घरेलू उपचार के लिये प्रयोग किया जाता है जैसे कि तेज बुखार, गठिया, फेफड़े सम्बन्धी रोगों में, इन्फलामेसन, उच्च रक्तचाप तथा पाचन सम्बन्धी रोगों में। अभी तक हुये शोध कार्यों के द्वारा प्रमुख रासायनिक अवयवों की पहचान की गई जैसे कि फूल से क्यारेसीटीन, रूटीन, काउमेरिक एसिड, पत्तियों से अरबुटीन, हाइपरोसाइड, एमाइरीन, इपिफ्रिडिलेनोल तथा छाल से टेराक्सेरोल, बेटुलिनिक एसिड, यूरेसोलिक एसिड एसिटेट आदि। वर्ष 2011 में हुये एक शोध कार्य के अनुसार बुरांश के फूल में महत्वपूर्ण रासायनिक अवयव स्टेरोइड्स, सेपोनिक्स तथा फलेवोनोइड्स पाये गये।
बुरांश औषधीय गुणों के साथ.साथ न्यूट्रिशनल भी है, इसके जूस में प्रोटीन 1.68 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेड 12.20 प्रतिशत, फाइवर 2.90 प्रतिशत, मैग्नीज 50.2 पी0पी0एम0, कैल्शियम 405 पी0पी0एम0, जिंक 32 पी0पी0एम0, कॉपर 26 पी0पी0एम0, सोडियम 385 पी0पी0एम0 तक पाये जाते हैं। बुरांस में विटामिन ए, बी.1, बी.2, सी, ई और के पाई जाती हैं जो की वजन बढने नहीं देते और कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल रखता है। पिंगमेंट पाए जाने के कारण बुरांस अचानक से होने वाले हार्ट अटैक के खतरे को कम कर देता है। इसका शर्बत दिमाग को ठंडक देता है और एक अच्छा एंटीऑक्सीडेंट होने के कारण त्वचा रोगों से बचाता है। बराह के फूलों की चटनी बहुत ही स्वादिष्ट होती है जो कि लू और नकसीर से बचने का अचूक नुस्खा है। इसकी पंखुड़ियां लोग सुखाकर रख लेते हैं और सालभर इसका लुत्फ़ उठाते हैं।बुरांस के विभिन्न औषधीय गुणो के कारण आयुर्वेदिक पद्यति की एक प्रसिद्ध दवा ष्अशोकारिष्टष् में भी रोडोडेंड्रोन आरबोरियम प्रयोग किया जाता है। अच्छी एंटीऑक्सीडेंट एक्टिविटी के साथ.साथ बुरांश में अच्छी एंटी डाइबिटिकए एंटी डायरिल तथा हिपेटोप्रोटिक्टिव एक्टिविटी होती है।
बुरांश को हीमोग्लोबिन बढ़ाने, भूख बढ़ाने, आयरन की कमी दूर करने तथा हृदय रोगों में भी प्रयोग किया जाता है। इन्हीं सभी औषधीय गुणों से परिपूर्ण होने के कारण बुरांश से निर्मित बहुत उत्पाद मार्केट में उपलब्ध हैं।बुरांस का उपयोग जूस के अलावा अचार, जैम, जैली, चटनी तथा आयुर्वेदिक एवं होम्योपैथिक दवाइयों में भी किया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर बुरांस के जूस की अच्छी मांग है जो कि अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में 30 डालर प्रति लीटर तक की कीमत में खरीदा जाता है। उत्तराखण्ड का बुरांस वैसे भी अपनी खुबसूरती, स्वाद तथा कई औषधीय गुणों के लिये जाना जाता है जिसकी वजह से बाजार में बुरांस से निर्मित कई खाद्य पदार्थ जैसे जूस, चटनी तथा आयुर्वेदिक औषधियां की मांग है। बुरांश को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए उद्यान व फल संरक्षण विभाग योजना चला रहा है। इसके तहत महिलाओं को जिले में स्थापित फल संरक्षण केंद्रों ताकुला, द्वाराहाट, ताड़ीखेत, भिकियासैंण, रानीखेत व अल्मोड़ा में विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है।
बुरांश का वृक्ष लघु कुटीर उद्योगों के विकास में भी सहायक है। इसकी गिरी हुई पत्तियों से जैविक खाद तैयार की जाती हैए जो पर्वतीय अंचल में रबी व खरीफ खेती के लिए बेहतर उर्वरक का काम करता है।यह वृक्ष जनवरी से अप्रैल माह तक बेरोजगारों के लिए स्वरोजगार के भी द्वार खोलता है। जिससे बेरोजगारों का जीवन स्तर सुधरता है। बेरोजगारों की आर्थिक उन्नति के साथ ही राष्ट्रीय आय में भी वृद्धि होती है। इसकी मध्य हिमालयी क्षेत्र में सिनामोमियम उप प्रजाति पाई जाती है। जिसमें सफेद फूल खिलता है। यह पेट संबधी रोग के लिए रामबाण माना जाता है। इसकी लकड़ी का प्रयोग चारकोल व ईधन बनाने में होता है। इन सब खूबियों के चलते इसे उत्तराखंड के राज्य वृक्ष होने का गौरव प्राप्त है। इसके फूल औषधीय गुणों से भरपूर हैं, जिनका इस्तेमाल सदियों से दवाइयों में हो रहा। बुरांस के फूलों का जूस हृदय रोगियों के लिए गुणकारी माना गया है। इसके अलावा चटनी समेत अन्य उत्पाद भी इनसे बनते हैं तो लकड़ी का उपयोग कृषि उपकरण बनाने में होता है।
जलस्रोत सहेजने में भी बुरांस की महत्वपूर्ण भूमिका है। बुरांस के औषधीय गुण उसके अनियंत्रित दोहन की वजह भी बन रहे हैं। लिहाजाए इस पर ध्यान देने की जरूरत है। उत्तराखंड में तमाम कंपनियां और संस्थाएं यहां के जैव संसाधनों का व्यावसायिक इस्तेमाल कर रही हैंए मगर स्थानीय समुदाय को लाभांश में से हिस्सेदारी देने में वे आनाकानी कर रही हैं। दरअसल, उत्तराखंड में जैव विविधता अधिनियम लागू है। इसमें स्पष्ट प्रविधान है कि यहां के जैव संसाधनों का व्यावसायिक उपयोग करने वाली कंपनियां, संस्थाएं, व्यक्ति अपने सालाना लाभांश में से आधे से लेकर पांच फीसद तक की हिस्सेदारी स्थानीय ग्रामीणों के लिए देंगे। यह राशि उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड के माध्यम से ग्राम स्तर पर बनी जैव विविधता प्रबंधन समितियों बीएमसी तक पहुंचेगी, ताकि वे जैव संसाधनों का संरक्षण कर सकें। राज्य में 1256 कंपनियां व संस्थाएं जैव संसाधनों का व्यावसायिक इस्तेमाल कर रहीं, मगर तमाम प्रयासों के बाद भी इनमें से करीब सौ के लगभग ही लाभांश से हिस्सेदारी दे रही हैं। हालांकि, अब इस मुहिम में तेजी लाने की तैयारी है।