हरीश चन्द्र अन्डोला
विश्व प्रसिद्ध कॉर्बेट नेशनल पार्क के पास एक ऐसी जल विद्युत परियोजना है, जो न केवल उत्तराखंड बल्कि उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों को रोशनी देती है. रोशनी के साथ इस बांध के पानी से दोनों राज्यों के किसानों की फसलें भी लहलहाती हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं रामगंगा बांध जल विद्युत परियोजना की, जिससे सरकार को हर साल करोड़ों का राजस्व प्राप्त होता है.कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के पास है रामगंगा जल विद्युत परियोजना: कालागढ़ में टाइगर रिजर्व के पास, जहां से रामगंगा नदी बहती है, इसी नदी पर स्थित है रामगंगा जल विद्युत परियोजना. खास बात यह है कि इस पावर प्लांट से सरकार को हर साल लगभग 20 से 30 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होता है. रामगंगा जल विद्युत परियोजना में 3266 मेगावाट की मशीनें लगी हुई हैं. इसकी कुल क्षमता 198 मेगावाट है. यहां हर साल 300 से 350 मिलियन यूनिट (एमयू) बिजली का उत्पादन किया जाता है. इसी बिजली से उत्तर प्रदेश के धामपुर, अफजलगढ़, शेरकोट और उत्तराखंड के रामनगर जैसे क्षेत्र रोशन होते हैं. यह जल विद्युत परियोजना बरसात के दौरान बंद कर दी जाती है. दरअसल, 15 जून से 15 अक्टूबर तक पानी नहीं छोड़ा जाता है, क्योंकि इस दौरान उत्तर प्रदेश को पानी की जरूरत नहीं होती. इसी वजह से इस अवधि में विद्युत उत्पादन रोक दिया जाता है. हर साल 300 से 350 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन करते हैं. इससे सरकार को 20 से 30 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होता है. इस प्लांट से बिजली उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में सप्लाई की जाती है. यह पूरी तरह से रामगंगा डैम पर आधारित है, जहां से नियंत्रित रूप से पानी छोड़ा जाता है.अधिशासी अभियंता, रामगंगा जल विद्युत परियोजनायूपी-उत्तराखंड को सिंचाई का पानी भी देता है ये परियोजना का महत्व सिर्फ बिजली उत्पादन तक ही सीमित नहीं है. यह उत्तर प्रदेश को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराने में भी अहम भूमिका निभाती है. जब मानसून के दौरान जलस्तर बढ़ता है, तो डैम में पानी भरने की प्रक्रिया शुरू की जाती है. 15 अक्टूबर के बाद दोबारा बिजली उत्पादन शुरू किया जाता है. रामगंगा जल विद्युत परियोजना पर्यावरण अनुकूल है और अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में एक बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत करती है. सरकार इस तरह की परियोजनाओं को बढ़ावा देकर न केवल बिजली संकट को कम कर रही है, बल्कि देश की आर्थिक स्थिति को भी मजबूत कर रही है. इस परियोजना के बांध का प्रकार एशिया का सबसे बड़ा सीमेन्ट रहित मिट्टी तथा पत्थर से निर्माण है. इस बांध की लंबाई 560 मीटर और ऊंचाई 125 मीटर है. इसकी जलविद्युत क्षमता 198 मेगावाट है. इस बांध के पानी से 57,500 हेक्टेयर (142,086 एकड़) भूमि की सिंचाई होती है. इस बांध का निर्माण 1961 में शुरू हुआ. 1974 में निर्माण कार्य पूरा हुआ था. रामगंगा जल विद्युत परियोजना या कालागढ़ बांध उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड के कंट्रोल में है. उत्तराखंड हाईकोर्ट ने जिला प्रशासन पौड़ी को कालागढ़ बांध के समीप खाली व जर्जर आवासों को ध्वस्त करने की अनुमति दे दी है. मुख्य न्यायधीश जी नरेंद्र व न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ में जिलाधिकारी पौढ़ी के ध्वस्तीकरण के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई हुई जिसमें पौड़ी गढ़वाल के जिला मजिस्ट्रेट ने न्यायालय में हलफनामा दायर कर बताया कि कालागढ़ क्षेत्र में 72 खाली और जर्जर संरचनाएं पाई गई हैं, जो अब पूरी तरह से ढहने की स्थिति में हैं. इसके अतिरिक्त, 25 अन्य संरचनाएं, जो पहले सिंचाई विभाग से वन विभाग को हस्तांतरित की गई थीं, भी खस्ताहाल स्थिति में हैं और इन्हें ध्वस्त करने की आवश्यकता है. बता दें कालागण कल्याण एवं उत्थान समिति द्वारा जिलाधिकारी पौढ़ी के ध्वस्तीकरण के आदेश को चुनौती दी गई थी.12 फरवरी 2025 को किए गए संयुक्त निरीक्षण में राजस्व, वन, सिंचाई और पुलिस विभागों के अधिकारियों ने इन सभी ढांचों का विस्तृत सर्वेक्षण किया, जिसमें पाया गया कि यह क्षेत्र कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र के अंतर्गत आता है. चूंकि यह इलाका वन्यजीव संरक्षण के लिए आरक्षित है, इसलिए यहां अवैध निर्माणों और मानव निवास की अनुमति नहीं दी जा सकती. साथ ही, यह भी सुनिश्चित किया जाए कि जहां लोग स्थायी रूप से निवास कर रहे हैं, उन संरचनाओं को कोई क्षति न पहुंचे, न्यायालय ने प्रशासन को यह प्रक्रिया यथाशीघ्र और कुशलतापूर्वक पूरा करने के निर्देश दिए हैं, डीएम और टाइगर रिजर्व निदेशक को न्यायालय में अनुपालन रिपोर्ट भी प्रस्तुत करनी होगी. लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। *लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*