उत्तराखंड में बदलता मौसम या अंधाधुंध विकास!
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में मानसून की वापसी के साथ ही बारिश का सिलसिला भी थम सा गया है. स्थिति यह है कि राज्य में पिछले कुछ महीनों से पर्वतीय जनपदों और मैदानी क्षेत्रों में लोग बारिश देखने तक के लिए तरस गए हैं. दिसंबर महीने में तो अब तक सामान्य से 90% तक बारिश कम रिकॉर्ड की गई है. बड़ी चिंता की बात यह भी है कि बारिश न होने के कारण वायुमंडल में पहले के पार्टिकल्स भी हवा में ही बने हुए हैं. जिसने पर्यावरण की सेहत को भी बिगाड़ा हुआ जलवायु परिवर्तन दुनियाभर में बहस का मुद्दा बना हुआ है. हालांकि इसके नुकसान को लेकर पिछले कई दशक से चर्चा चल रही है. लेकिन अब दुनिया भर में ही जलवायु परिवर्तन का बढ़ता असर नीति निर्धारकों और आम लोगों तक में चिंता को बढ़ा रहा है. इसके कारण मौसम में कई तरह के बदलाव देखे जा रहे हैं. इन बदलावों ने कभी बाढ़ तो कभी सूखे जैसे हालात को भी पैदा कर दिया है. दरअसल, मॉनसून में जहां सामान्य से कई गुना ज्यादा बारिश हो रही है, तो वहीं मॉनसून के जाने के बाद उत्तराखंड में सूखा सा पड़ गया है. उत्तराखंड में मौसम के इस बदलते पैटर्न का वैज्ञानिक भी अध्ययन कर रहे हैं. उत्तराखंड में साल का आखिरी महीना यानी दिसंबर पूरी तरह सूखा गुजर रहा है. इस महीने इक्का दुक्का बारिश या बर्फबारी के स्पेल देखे गए हैं. उसके बाद से ही उच्च हिमालयी क्षेत्र को छोड़कर कहीं भी बारिश और बर्फबारी नहीं हो पाई है. इस स्थिति के कारण मौसम विभाग के आंकड़े भी बारिश की कमी को जाहिर कर रहे हैं. इस बार उत्तराखंड में दिसंबर महीने के दौरान अब तक सामान्य से भी 90 प्रतिशत तक कम बारिश रिकॉर्ड की गई है. इतना ही नहीं मानसून जाने के बाद पिछले 3 महीनों में भी कुछ खास बारिश उत्तराखंड में नहीं हुई है. साल के आखिरी महीने में अब कुछ ही दिन बचे हैं. मौसम विभाग आने वाले एक हफ्ते में भी बारिश या बर्फबारी की कोई संभावना नहीं होने की बात कह रहा है. उधर दक्षिण से आने वाली हवाओं और चटख धूप के चलते पिछले 48 घंटे में तापमान में भी हल्की बढ़ोत्तरी हुई है. इस तरह देखा जाए तो दिसंबर महीने के आखिरी हफ्ते में पिछले कुछ सालों के दौरान जिस तरह की ठंड देखने को मिलती थी, फिलहाल तापमान में उस स्तर की कमी नहीं आई है. फिलहाल न्यूनतम और अधिकतम तापमान में हल्की बढ़ोत्तरी हुई है. राज्य में 24 घंटे पहले रात का न्यूनतम तापमान 7.5 डिग्री रहा है. पिछले 10 सालों के रिकॉर्ड के लिहाज से दिसंबर में न्यूनतम तापमान साल 2017 में 18 दिसंबर को 7.5 डिग्री सेल्सियस रिकार्ड किया गया था. हालांकि आने वाले दिनों में हल्की ठंडी हवाएं भी महसूस की जाएंगी, लेकिन बारिश होने के बाद ही तापमान में तेजी से कमी रिकॉर्ड की जा सकेगी. गंगोत्री और केदारनाथ धाम के अलावा ऊंचे क्षेत्रों में नदियों में पानी के जमने की तस्वीरें आई हैं. इस स्थिति के कारण उच्च हिमालय क्षेत्र के आसपास के इलाकों में पानी की सप्लाई तक भी बाधित हो रही है. इसके पीछे की वजह यह भी है कि पानी के पाइप में भी पानी जम रहा है. इससे कुछ जगहों पर पानी के पाइप फटने तक की भी जानकारियां आई हैं.खास बात यह है कि उत्तराखंड में गंगोत्री, हर्षिल, केदारनाथ और चमोली के उच्च इलाके और कुमाऊं में भी कुछ जिलों के उच्च क्षेत्र में तापमान -1 डिग्री से 10 डिग्री तक भी रिकॉर्ड हो रहे हैं. बारिश की कमी के कारण राष्ट्रीय स्तर पर भी पर्यावरण प्रभावित हो रहा है. खास तौर पर दिल्ली जैसे घनी आबादी वाले शहरों में प्रदूषण संकट बढ़ रहा है. दरअसल बारिश होने से पर्यावरण में फैले धूल के कण जमीन पर बैठ जाते हैं. इससे वातावरण में फैले प्रदूषण में कमी आती है. लेकिन देश भर में कई इलाकों में बारिश न होने के कारण इसका असर पर्यावरण पर भी पड़ रहा है. हालांकि सर्दी का मौसम आते ही प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है. इस स्थिति से बारिश की बूंदे पर्यावरण को बेहतर स्थिति में लाती हैं. कुल मिलाकर देखा जाए तो हवा को शुद्ध करने के लिए बारिश की बेहद अहम भूमिका होती है. बारिश न होने से पर्यावरण में प्रदूषण का स्तर भी बढ़ता है. बारिश के अनियमित होने के कारण कहीं भी और कभी भी बरसात हो रही है, जिससे हिमालय क्षेत्र में पहाड़ और मिट्टी के नाजुक हिस्सों में भूस्खलन हो जाता है. ज्यादातर भूस्खलन उन स्थानों पर हो रहे हैं जहां अंधाधुंध निर्माण कार्य या सड़क निर्माण किया गया है. सड़क निर्माण के दौरान जब पहाड़ों की कटाई की जाती है या उनमें कंपन होता है, तो उनकी प्राकृतिक संरचना बाधित हो जाती है. इस स्थिति में पहाड़ बारिश के पानी का दबाव सहन नहीं कर पाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप भूस्खलन होता है. मौसम परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण ग्लोबल वार्मिंग है, जिससे लगातार मौसम के पैटर्न में बदलाव हो रहा है. इस स्थिति में कभी ज्यादा धूप, कभी अधिक बारिश, और समय पर बरसात का न होना एक वैश्विक समस्या बन गई है. वर्तमान में ग्लोबल वार्मिंग और भूस्खलन जैसी घटनाएं अप्राकृतिक और मानव-जनित हैं.विकास के प्रयासों का खामियाजा प्रकृति और मानव दोनों भुगतना पड़ रहा है। लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।