डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
देवभूमि उत्तराखंड अतीत से ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती
रही है. यहां की शांत वादियां और हिमाच्छादित पर्वत मालाएं लोगों के
मन को सुकून से भर देती हैं. उत्तराखंड में कई ऐसे पर्यटक स्थल हैं, जहां
साल भर सैलानियों का तांता लगा रहता है. जहां से विदा लेते समय
सैलानी फिर लौटकर आने का वादा करते हैं. उत्तराखंड में कश्मीर जैसी
जगह की अगर बात करें तो उत्तराखंड में हर की दून, दयारा बुग्याल,
हर्षिल वैली, औली, चोपता, नीति घाटी, चाईंशील बुग्याल, आली-
बेदनी बुग्याल कुछ ऐसी लोकेशन हैं जो नैसर्गिक सौंदर्य से लबरेज हैं.
गढ़वाल के हिल स्टेशनों की बात करें तो मसूरी, धनोल्टी, चकराता,
उत्तरकाशी, पौड़ी, टिहरी, चमोली, गैरसैंण, टिम्मरसैंण, आदिबदरी,
लैंसडाउन, भराड़ीसैंण पिथौरागढ़ में मौजूद दारमा वैली, नामिक
ग्लेशियर पंचाचूली बेस कैंप, गूंजी, आदि कैलाश, नारायण आश्रम
काफी पर्यटक पहुंचते हैं. वहीं मुनस्यारी, धारचूला, चौकोड़ी, बिर्थी
फॉल, कालामुनि टॉप, खलिया टॉप, गुफाओं का केंद्र गंगोलीहाट,
डीडीहाट नारायण आश्रम, मलयनाथ मंदिर, पिथौरागढ़ बड़ालू झील
सैलानी साल भर देखने पहुंचते हैं.में साल भर सैलानियों का तांता लगा
रहता है. जहां कुदरत ने अपनी नेमत बरसाई है.किसी भी राज्य अथवा
क्षेत्र के बुनियादी ढांचे की बात होती है तो सबसे पहले वहां की सड़कों
की स्थिति का उल्लेख होता है, क्योंकि सड़क ही बुनियादी ढांचे के
विकास की पहली सीढ़ी है। इस दृष्टिकोण से उत्तराखंड को देखें तो
भाजपा का डबल इंजन तेजी से दौड़ रहा है।उत्तराखंड में पर्यटन विकास
की तस्वीर उम्मीद बंधा रही है। पर्यटन को आर्थिकी व रोजगार का
सशक्त माध्यम बनाया जा सकता है। जनसामान्य के बीच इस
परिकल्पना को ले जाने में सरकारों को सफलता मिली है, लेकिन सही
मायने में पर्यटन को रोजगार, स्वरोजगार के रूप में स्थापित करने की
चुनौती अभी भी बरकरार है। होम स्टे जैसी कम खर्चीली योजना की
शुरुआती सफलता पर्यटन सुविधाओं के विकास के मद्देनजर नई कहानी
गढ़ती दिख रही है। पिछले 11 वर्षों में पर्यटन-तीर्थाटन के क्षेत्र में
विभिन्न योजनाओं पर काम हुआ है और बीते पांच वर्षों में इनमें तेजी
आई है। इससे भविष्य की संभावनाओं के द्वार भी खुले हैं। पर्यटन
सुविधाओं के विस्तार को पर्यटक व श्रद्धालु स्वयं भी महसूस कर रहे हैं।
राज्य में चल रहे विधानसभा चुनाव में भाजपा पर्यटन योजनाओं का
अपने अभियान में प्रयोग करने के साथ ही पांच साल में पर्यटन विकास
के आंकड़ों को रख रही है। वहीं, कांग्रेस यह आरोप लगाने से नहीं चूक
रही कि उसके कार्यकाल की योजनाओं को नाम बदलकर भाजपा ने
आगे बढ़ाया है। चुनाव के दौरान राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का क्रम
तो चलता रहेगा, लेकिन असल चुनौती तो कोरोनाकाल में पर्यटन
उद्योग पर पड़े असर को देखते हुए इसकी गाड़ी को तेजी से आगे दौड़ाने
की है, ताकि यह प्रदेश की आर्थिकी को और सशक्त बना सके।उत्तराखंड
में वाहन दुर्घटनाओं और बारिश व भूस्खलन के कारण हो रहे हादसों में
पिछले तीन माह में 45 से अधिक लोग अकाल मौत मर गए। सबसे ताजा
हादसा उत्तरकाशी में बडकोट के निकट यमुनोत्री मार्ग पर बादल फटने से
हुआ। यहां भूस्खलन में एक निर्माणाधीन होटल तबाह हो गया और कम से
कम 9 मजदूर दब गए। इससे पहले 25 जून को रुद्रप्रयाग से बदरीनाथ जा
रही एक बस घोलतीर के निकट अलकनंदा में गिर गई जिसमें कम से कम
12 तीर्थयात्री बह गए। कुछ के शव मिले, अधिकांश का पता नहीं चला। 22
जून को देहरादून के निकट वाहन दुर्घटना में चार युवक मारे गए। 15 जून
को केदारनाथ से लौट रहा हेलीकॉप्टर क्रेश हो गया जिसमें पायलट सहित
सात लोगों की मौत हो गई। 26 मई को कीर्तिनगर-बडियारगढ़ मोटर मार्ग
पर एक कार गहरी खाई में गिर गई जिसमें चार लोगों की मौके पर ही मौत
हो गई। 12 अप्रैल को बदरीनाथ हाईवे पर श्रीनगर के निकट थार अलकनंदा
में जा गिरी जिसमें पांच लोगों की जान चली गई।ये आंकड़े उत्तराखंड में
सड़क सुरक्षा की बेहद डरावनी तस्वीर पेश करते हैं। सूचनाधिकार से प्राप्त
आंकड़े बताते हैं कि राज्य गठन के 24 सालों के भीतर उत्तराखंड में विभिन्न
सड़क दुर्घटनाओं में बीस हजार से अधिक लोगों ने जान गंवाई है। केंद्रीय
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की पिछले साल जारी एक रिपोर्ट से
पता चलता है कि उत्तराखंड छोटा राज्य होने के बावजूद सड़क दुर्घटनाओं
की गंभीरता यानी मारक क्षमता के मामले में 62.2 प्रतिशत के साथ देश में
आठवें पायदान पर है जबकि राष्ट्रीय औसत 36.5 प्रतिशत है। पहाड़ी मार्गों
पर होने वाले सड़क हादसे कोई भूकम्प या प्राकृतिक आपदा नहीं हैं कि रोके
न जा सकें। ऐसे अधिकांश मामलों में लापरवाही, मानवीय भूल, खस्ताहाल
सड़कें, वाहनों की फिटनेस, ओवरलोडिंग, तेज रफ्तार, अकुशल ड्राइविंग,
ड्राइवरों की मनोदशा, शराब और खराब मौसम जैसी वजहें गिनाई जाती
हैं। इनमें एक भी कारण ऐसा नहीं है जिससे पार न पाया जा सके। बावजूद
इसके, हर नया साल यहां मौतों का बढ़ा हुआ आंकड़ा छोड़कर विदा हो रहा
है। पिछले चार वर्षों को देखें तो 2018 में हुए 1468 सड़क हादसों के
मुकाबले 2022 में ये बढ़कर 1674 हो गए जिनमें 958 मौतें और 1500 के
करीब लोग घायल हुए। वर्ष 2023 में सड़क दुर्घटनाओं के 1520 मामलों में
946 लोगों की जान चली गई। वर्ष 2024 में हुए करीब डेढ़ हजार से
अधिक सड़क हादसों में मौतों का आंकड़ा भी 900 के पार बताया जाता है।
बीते साल सबसे भीषण दुर्घटना 4 नवम्बर 2024 को पौड़ी-अल्मोड़ा की
सीमा पर मरचूला में हुई जिसमें गढ़वाल मोटर यूजर्स की बस डेढ़ सौ मीटर
नीचे खाई में जा गिरी और 36 लोग मौके पर ही मारे गए जबकि दो ने
अस्पताल में दम तोड़ा। एक अन्य बस हादसे में 25 दिसम्बर को भीमताल
से हल्द्वानी जा रही उत्तराखंड रोडवेज की बस सौ मीटर गहरी खाई में जा
गिरी जिसमें चार लोग मारे गए और 24 घायल हो गए। उत्तराखंड में नया
साल भी विभिन्न सड़क दुर्घटनाओं में आठ मौतों के बुरे समाचार के साथ
शुरू हुआ और जून आते-आते इनमें खौफनाक इजाफा होता चला
गया।बढ़ती सड़क दुर्घनाओं से साफ है कि सड़क सुरक्षा को लेकर उत्तराखंड
राज्य अपना रिकॉर्ड सुधारने की दिशा में उतना गंभीर नजर नहीं आता।
मरचूला हादसे को ही लें तो 40 यात्रियों की क्षमता वाली बस में 63 लोग
सवार थे। चलने के करीब डेढ़ घंटे के बाद ही बस असंतुलित होकर मरचूला
के निकट डेढ़ सौ मीटर गहरी खाई में जा गिरी और 38 यात्रियों के अंतिम
सफर का शोकगीत लिख गई। इससे पूर्व एक जुलाई 2018 को इसी क्षेत्र में
धूमाकोट के निकट ऐसी ही एक बस दुर्घटना में 48 लोगों की मौत हुई थी।
देश में सबसे अधिक जोखिम भरी पहाड़ की परिवहन व्यवस्था को
शासकीय और गैरशासकीय दोनों स्तर पर हल्के ढंग से लिया जाता रहा
है। सड़क हादसों की जांच का क्या हस्र होता है, कभी पता नहीं चलता। हर
नए हादसे के बाद कुछ दिन तक कड़े नियम-कानूनों खूब शोर मचता है,
फिर सबकुछ पुराने ढर्रे पर लौट आता है। मरचूला हादसे के बाद सरकार ने
सीटों के अतिरिक्त एक भी यात्री ले जाने पर सख्त पाबंदी लगाई थी,
मगर क्या हुआ ! आज कोटद्वार बस अड्डे का ही जायजा लें तो यहां से पहाड़
से विभिन्न मोटर मार्गों पर चलने वाली बसों में यात्रियों का रेला सारी
सच्चाई बयां कर देगा।भीतरी पहाड़ों में जिस तेजी से सड़कों का जाल बिछ
रहा है, उस परिमाण में सड़क सुरक्षा और सार्वजनिक परिवहन सेवाओं का
विस्तार नहीं हो पाया है। यहां रोडवेज सेवा अंतरमार्गीय परिवहन का
मुख्य साधन कभी नहीं रहीं। भीतरी पहाड़ों में परिवहन का असल धर्म
गढ़वाल मोटर ओनर्स यूनियन (जीएमओयू), टिहरी गढ़वाल मोटर्स ओनर्स
यूनियन (टीजीएमओयू) और कुमाऊं मोटर्स ओनर्स यूनियन (केएमओयू) ने
निभाया है। परिवहन में सहकारिता का विलक्षण आयाम स्थापित करने
वाली ये सेवाएं ही सही मायने में पर्वतीय परिवहन की प्राणरेखा रहीं हैं।
पर्यटन के बजट परिव्यय और राज्य सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) से
उसके प्रतिशत को देखें तो इसमें कुछ सुधार दिखाई देता हैउत्तराखंड में
सामान्य परिस्थितियों में प्रतिवर्ष औसतन तीन करोड़ से ज्यादा सैलानी
पहुंचते हैं। इनमें यहां के चारधाम बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व
यमुनोत्री समेत अन्य धार्मिक स्थलों की महत्वपूर्ण भूमिका है। प्रतिवर्ष ही
बड़ी संख्या में देश-विदेश से लोग यहां के रमणीक व धार्मिक स्थलों में
पहुंचते हैं। पर्यटकों और श्रद्धालुओं की आवक से रोजगार के अवसर भी
सृजित हो रहे हैं। चारधाम वाले जिलों चमोली, रुद्रप्रयाग व उत्तरकाशी के
निवासियों की आर्थिकी की अहम धुरी तो चारधाम यात्रा ही है। पूर्ववर्ती
सरकार ने चारधाम में सुविधाओं के विकास पर फोकस किया, लेकिन इसमें
तेजी पिछले पांच वर्षों मे अधिक देखने में आई है। प्रदेश में पिछले सात वर्षों
में न सिर्फ सड़कों का जाल फैला है, बल्कि सड़क ढांचा सुदृढ़ होता भी दिख
रहा है। इस दृष्टि से चारधाम को जोड़ने वाली आल वेदर रोड परियोजना
का प्रमुखता से जिक्र किया जा सकता है। लगभग 900 किलोमीटर लंबी
और 12000 करोड़ लागत की इस परियोजना के कई हिस्सों का कार्य पूरा
हो चुका है, जबकि शेष भाग में तेजी से कार्य चल रहा है। इसके साथ ही
राष्ट्रीय राजमार्ग, राज्य राजमार्ग, जिला मार्ग, ग्रामीण मार्ग समेत अन्य
सड़कों की स्थिति भी अपेक्षाकृत सुधरी है। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि
पिछले वर्षों में केंद्र ने इसके लिए भरपूर धनराशि दी है। उत्तराखंड एक
पर्यटन राज्य भी है और पर्यटन का सीधा संबंध परिवहन से होता है। बढ़ती
दुघर्टनाओं का संदेश पर्यटन के लिए अच्छा नहीं है। ऐसे में सड़क से लेकर
आकाश तक की सुरक्षा के पैरामीटरों पर ध्यान दिया जाना सरकारों की
सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। यदि राज्य की शिनाख्त सड़क हादसों
की दृष्टि से संवेदनशील श्रेणी में की गई है तो इसका सीधा संबंध ड्राइवरों
की मनोदशा, सड़कों के रख-रखाव, राहत व बचाव कार्यों, पैरा मेडिकल व
अन्य चिकित्सा सेवाओं, ब्लैक स्पॉट की पहचान और पैराफिट सुरक्षा जैसे
कारकों से है। इन सब कारकों का कारगर और सुदृढ़ समन्वय ही एक
सुरक्षित परिवहन की गारंटी हो सकता है। उत्तराखंड में लगातार बढ़ रहे
सड़क दुर्घटनाओं को देखते हुए राज्य सरकार की ओर से समय-समय पर
कदम उठाए जाते रहे हैं. लेकिन अभी तक कोई भी बड़ी सड़क दुर्घटना होने
पर किसी विभाग की जिम्मेदारी तय नहीं हो पाती थी. ऐसे में विभागों की
जिम्मेदारी तय किए जाने को लेकर परिवहन विभाग ने सड़क सुरक्षा
नियमावली 2025 तैयार की है रोड सेफ्टी पॉलिसी में सड़क सुरक्षा से जुड़े
सभी जरूरी मानकों और विषयों को समाहित किया गया है. लेकिन सड़क
दुर्घटना के दौरान खास तौर पर विभागों की जिम्मेदारी किस तरह तय की
जाएगी, उन बिंदुओं को पॉलिसी में शामिल किया गया है. इस पॉलिसी के
आने के बाद अब विभाग किसी भी सड़क दुर्घटना पर अपना पलड़ा नहीं
झाड़ पाएंगे. खास तौर से लोक निर्माण विभाग, परिवहन विभाग, पुलिस
विभाग और स्वास्थ्य विभाग की सड़क सुरक्षा में किस तरह भूमिका होगी
और सड़क दुर्घटना होने पर दुर्घटना की वजह साफ होने की स्थिति में किस
विभाग की जिम्मेदारी बनेगी. इसे भी पॉलिसी में स्पष्ट किया गया है.
हालांकि, जब सड़क का निर्माण किया जाता है तो उस दौरान सड़क निर्माण
करने वाली कार्यकारी संस्था रोड सेफ्टी ऑडिट करवाती है. लेकिन अब
परिवहन विभाग ने प्रदेश की तमाम सड़कों का रोड सेफ्टी ऑडिट कराने का
निर्णय लिया है. जिसके लिए 5 से 6 रोड सेफ्टी ऑडिटर्स कंपनियों को
इम्पैनल करने जा रहा है. रोड सेफ्टी ऑडिटर के इंपैनल होने के बाद प्रदेश
के उन सड़कों का ऑडिट करवाया जाएगा जो ब्लैक स्पॉट है या फिर जो
दुर्घटना संभावित मार्ग हैं. ताकि सड़क दुर्घटनाओं को कम से कम किया जा
सके.ही इनकी निगरानी भी रखी जाएगी।! *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के*
*जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*