डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में गर्मियों की छुट्टियों के बाद स्कूल फिर से खुल गए हैं। उत्तराखंड में
इस वक्त बरसात भी पूरे चरम पर है। बच्चों ने स्कूल आना शुरू कर दिया है
लेकिन उत्तराखंड के 942 स्कूल में इन बच्चों की जान को खतरा है।उत्तराखंड
जूनियर हाई स्कूल शिक्षा संघ के प्रदेश अध्यक्ष ने मीडिया को बताया कि बरसात
के मौसम में वैसे ही बच्चों को खतरा होता है, इसके साथ ही स्कूलों के जर्जर भवन
इस समस्या को और गंभीर बना रहे हैं। पूरे उत्तराखंड में 942 स्कूलों की स्थिति
जर्जर है, जो छात्रों की सुरक्षा को लेकर चिंतित कर रही है।इनमें सबसे ज्यादा
163 स्कूल पिथौरागढ़ जिले में शामिल हैं। इसके बाद 135 स्कूल अल्मोड़ा में,
133 स्कूल टिहरी गढ़वाल जिले में, 125 जर्जर स्कूल नैनीताल जिले में तो 107
पौड़ी गढ़वाल में स्थित है। राजधानी देहरादून में भी स्कूलों की स्थिति कुछ खास
नहीं है, यहां अभी भी लगभग 84 स्कूल जर्जर स्थिति में है जहां बच्चों की जान
को खतरा हो सकता है। देहरादून के रायपुर विकास नगर चकराता और कालसी
क्षेत्र की कई स्कूल बेहद जर्जर स्थिति में है। रिपोर्ट के अनुसार उधम सिंह नगर में
55, हरिद्वार में 35, रुद्रप्रयाग जिले में 34, चमोली में 18, चंपावत में 16,
उत्तरकाशी में 12 और बागेश्वर में 6 स्कूल ऐसे हैं जिनकी स्थिति दयनीय और
जर्जर है।इनमें से कई स्कूलों में सुरक्षा दीवार नहीं है तो कुछ में छत टपक रही हैं।
कहीं पानी भरने से फर्श दिख ही नहीं रहा और कहीं भूस्खलन का
खतरा बना हुआ है। माध्यमिक शिक्षा निदेशक ने बताया कि माध्यमिक स्तर पर
19 स्कूल भवनों की स्थिति बेहद खराब थी जिनमें से कुछ को तोड़कर नहीं भवन
बनाए गए लेकिन अभी भी काफी स्कूलों के भवन जर्जर स्थिति में है।शिक्षा
महानिदेशक ने सभी मुख्य शिक्षा अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि छात्रों को
किसी भी हालत में खस्ताहाल भवन, कक्ष या दीवार के पास न बैठाया जाए।
बरसात के दौरान विद्यालय के आसपास यदि नाला हो, तो छात्रों के आवागमन
में विशेष सावधानी बरती जाए। साथ ही, स्कूल परिसरों में जलभराव रोकने के
लिए तत्काल उपाय किए जाएं।राज्य सरकार भी शिक्षा का बजट देश के अन्य
राज्यों से ज्यादा रखने का दावा करती है, लेकिन फिर भी स्कूलों में बच्चों की
सुरक्षा आज भी चिंता का विषय है। साल दर साल जिस तरह से स्कूलों में बच्चों
के साथ अपराध हो रहे हैं या कोई बड़ी घटना घटित हो रही है, उससे किसी एक
को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इसके लिए हर संबंधित व्यक्ति जिम्मेदार
है।स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा को लेकर समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट,
बाल आयोग, शिक्षा विभाग द्वारा आदेश व दिशानिर्देश जारी किए जाते रहे हैं,
नीति बना ली जाती है लेकिन स्कूलों में ऐसे लागू करना सबसे अहम काम है।
स्कूलों का रवैया कुछ इस प्रकार है कि जब तक स्कूल परिसर में छात्र के साथ
कोई जुर्म हो ना जाए, तब तक वो छात्रों की सुरक्षा के बारे में सोचते तक नहीं हैं।
नियमानुसार तो हर स्कूल में पाक्सो कमेटी, बुलिंग कमेटी, डिसीप्लिनरी कमेटी,
चाइल्ड प्रोटेक्शन कमेटी, स्कूल सेफ्टी कमेटी व अन्य कमेटियां होनी चाहिए।यहां
तक कि स्कूल के बाहर एक ‘शिकायत पेटी’ का भी प्रविधान है, परंतु जैसा कि
हमेशा से ही देखा गया है अधिकांश स्कूलों में ये सभी कमेटियां नदारद हैं या
फिर केवल कागजों की शोभा बढ़ा रही हैं क्योंकि इनको सुनिश्चित करने व जांच
करने की जिनकी जिम्मेदारी है, वे सभी पदाधिकारी अपने कर्तव्य से विमुख रहते
हैं। स्कूलों की चारदीवारी के अंदर लगातार हो रही घटनाएं इस बात का साक्ष्य
हैं। सभी समितियों के आधार में अभिभावकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
सरकार की ओर से शिक्षा के क्षेत्र में सुधार को लेकर किए गए दावों की पोल यह
स्कूूल खेल रहा है. बच्चों और खासकर बच्चियों की सुरक्षा को अनदेखा किया जा
रहा है. ऐसे मामलों में जिम्मेदार अधिकारियों से अपेक्षा की जाती है कि वे बच्चों
की सुरक्षा और सुविधाओं को प्राथमिकता दें. अब देखना होगा कि क्या इस स्कूल
में सुधार होगा या फिर बच्चों को खतरे के बीच पढ़ाई का सफर जारी रखना
बहोगा." *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में*
*कार्यरत हैं।*