उत्तराखंड समाचार
देहरादून। राहुल गांधी की दून रैली से कांग्रेस उत्तराखंड में अपने चुनावी अभियान को गति देने की सोच रही है। राहुल गांधी की रैली को अभी कुछ दिन पहले हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली से अधिक बड़ी रैली बनाकर कांग्रेस बड़ी लकीर खींचने के प्रयास में जुटी हुई है।
राहुल गांधी भले ही कांग्रेस के अध्यक्ष न हों, वह कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष हैं और भावी भी हो सकते हैं, कुल मिलाकर कांग्रेस के लिए आशा की किरण और कर्णधार हैं। इसलिए 2022 के चुनाव अभियान की राहुल गांधी की इस पहली रैली को कांग्रेस यादगार बना देना चाहती है। इसीलिए कांग्रेस के उत्तराखंड प्रभारी देंवेंद्र यादव, सह प्रभारी दीपिका पांडे सिंह और राजेश धर्माणी लगातार क्षेत्रों में जन संपर्क में जुटे हुए हैं।
अलग-अलग क्षेत्रों से भीड़ जुटाने का तारगेट रखा गया है। टिकट चाहने वालों को भीड़ जुटाने के लिए लक्ष्य दिया गया है। सबसे अधिक भीड़ देहरादून तथा हरिद्वार से जुटाई जानी है। एक तो ये दोनों नजदीकी क्षेत्र हैं, दूसरा आबादी के हिसाब से प्रदेश के सबसे अधिक आबादी वाले जिले हैं। हरिद्वार तथा देहरादून में आवासीय व्यवस्था करने के लिए हजारों कमरे किराये में लिए गए हैं।
कांग्रेस चाहती है कि राहुल गांधी की यह रैली नरेंद्र मोदी की रैली से उन्नीस न हो। भीड़ जुटाने का यही पैमाना कांग्रेस के कर्णधारों के सामने है। यदि इस पैमाने पर कांग्रेस खरी उतरती है तो निश्चित रूप से कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए यह एक बूस्टर डोज की तरह होगी।
दूसरी तरह कांग्रेस ऐसा माहौल भी बनाए रखना चाहती है कि कांग्रेस में आने के लिए समाज के हर वर्ग से लोग लालायित हैं। इसी कड़ी में एक दिन पहले भीम आर्मी समेत तमाम संगठनों और पूर्व फौजियों को कांग्रेस में शामिल किया गया था। कांग्रेस की रणनीति है कि यह क्रम निरंतर बना रहे, ताकि उसके चुनावी अभियान को पंख लग सकें।
दूसरी तरफ हरीश रावत अपने तरकश से एक के बाद एक लगातार तीर छोड़कर सरकार की नामाकियों को उजागर करते जा रहे हैं। उन्होंने एक दिन पहले राज्य सरकार के वित्तीय प्रबंधन पर जमकर प्रहार किया था और इसे लेकर श्वेत पत्र जारी करने की मांग भी सरकार के सामने रखी थी। यह एक तरह से रणनीतिक कौशल का प्रदर्शन है। करीब 80 हजार करोड़ से अधिक के ऋण में डूबे छोटे से राज्य में बेहतर वित्तीय प्रबंधन के बिना राज्य चलाने का मतलब राज्य को अंधे कुंए की तरफ ले जाना है। कांग्रेस के रणनीतिकार इसी पर चोट कर सरकार की नाकामियों को उजागर करने की कोशिश में हैं।