अल्मोड़ा। राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के तत्वाधान में आयोजित नयी शिक्षा नीति पर शैक्षिक विमर्श कार्यशाला को संबोधित करते हुए मुख्यअतिथि प्रो. डाॅ. नरेंद्र सिंह भंडारी सदस्य लोक सेवा आयोग उत्तराखंड ने कहा कि शिक्षा से ज्ञानवान तो बना जा सकता है, किंतु बुद्धिमान बनने के लिए कल्पनाशीलता की आवश्यकता होती है।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीयता, शिक्षा, संस्कार एवं संस्कृति से समाज का निर्माण होता है। विद्यालयी शिक्षा में दृष्टिकोण निर्देशन एवं नवाचार का समावेश होना आवश्यक है। जिसके लिए विद्यालयों में परामर्श एवं निर्देशन हेतु विषय विशेषज्ञो की नियुक्ति आवश्यक है। विशिष्ठ अतिथि प्रो. देव सिंह पोखरिया ने कहा कि आज प्रारंभिक शिक्षा मातृ भाषा में ही दिये जाने की आवश्यकता है। शिक्षा में प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में ही दिये जाने की आवश्यकता है, शिक्षा में प्रारंभिक रहने की प्रवृति के स्थान पर विश्लेशणात्मक पद्धति को व्यवहार में लाये जाने की आवश्यकता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. बीडीएस नेगी ने कहा कि केंद्र और राज्यों में परस्पर सामंजस्य स्थापित करने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा आयोग और राज्यों में राज्य शिक्षा आयोग की अवधारणा नयी शिक्षा नीति में आवश्यक है। कार्यक्रम का संचालन जगदीश पांडे, डाॅ. ललित लाल ने किया। इस अवसर पर शिवनारायण सिंह, प्रवक्ता राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ हरेंद्र सिंह बिष्ट, शंकर सिंह बिष्ट, रमेश धपोला, सीएसएस बनकोटी, हेम चंद्र पंत, डाॅ. कैललाश डोलिया, हीरा सिंह बोरा, हंसा दत्त शर्मा, संदीप चैधरी, राजीव जोशी, मनमोहन चैधरी, दीपक वर्मा, डाॅ. जलाल, डाॅ. पुष्पा भोज, नीना मनौला, डिम्पल जोशी आदि मौजूद थे।