
फोटो- एवलाॅच का दृष्य।
02- बरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 डीपी डोभाल ।
प्रकाश कपरूवाण
जोशीमठ। हिमस्खलन की बढती घटनाओं को देखते हुए अब सेना, बीआरओ व आईटीबीपी को भी स्थाई अथवा अस्थाई शिविरों वाले स्थानों की ग्लेशियर वैज्ञानिकांे के माध्यम से नियमित अध्ययन किए जाने की आवश्यकता होगी। वर्ष 2003 में भी मलारी-सुमना रोड पर किमी0 8 प्वाइंट पर एवलाॅच आने से 18 जवानों की मौत हो गई थी। ग्लेशियर वैज्ञानिक डा0 डीपी डोभाल ने भी हिमालयी क्षेत्रों मंे ग्लेशियर पर नियमित अध्ययन को बेहद जरूरी बताया है।
नीती घाटी में ऋषि गंगा की त्रासदी को अभी लोग भूले भी नहीं थे कि इसी वैली में एक और हिमस्खलन की घटना ने पूरे जनमानस को झकझोर कर रख दिया। एक तो अप्रैल महीने के अंन्त में उच्च हिमालयी क्षेत्रों में जबर्दस्त हिमपात व साथ में एवलाॅच की घटना से हुई ताजा मौतांे से आम जनमानस बेहद दुखी व ब्यथित हो चला है। भारत-चीन सीमा से सटी सुमना घाटी मे शुक्रवार को दोपहर बाद हुई हिमस्खलन की घटना ने झारखंण्ड प्रदेश से देा जून की रोटी के ििलए उच्च हिमालयी बर्फीले क्षेत्र मे रोजी-रोटी के लिए पंहुचे गरीब मजदूरों को ही अपना निशाना बना दिया। भारी बर्फबारी के कारण मजदूर अपने सुरक्षित शिविरो मे ही निवास कर रहे थे कि अचानक आए हिमखंण्डो ने बीआरओ के दो शिविरों को अपने आगोस मे समा डाला। शुक्रगुजार हैं भारतीय थल सेना का जिन्होने बिना देर किए रिमखिम व अन्य चैकियों से पंहुचकर युद्धस्तर पर रेस्क्यू आपरेशन शुरू किया और भारी बर्फबारी के बीच रात्रि को ही करीब 150से अधिक मजदूरों केा हिमखण्ंडो के बीच से सुरक्षित बाहर निकाल दिया था। सेना का रेस्क्यू आपरेशन निरन्तर जारी रहा और अगले दिन शनिवार को सुबह हाते-होते सेना 384मजदूरों केा बर्फ की चटटान से सकुशल बाहर निकालने मे सफल हो गई थीं। सेना के जाॅबाजों ने हिमखंण्डो मे दबे सात घायलोे केा भी बाहर निकालकर सेना के चाॅपर से सेना चिकित्सालय जोशीमठ पंहुचाया।
भारी बर्फबारी के बीच सेना द्वारा बीआरओ के मजदूरों व कार्मिकों को बचाने के लिए जो साहसिक अभियान चलाया गया उसकी सर्वत्र सराहना की जा रही है। सूबे के सीएम तीरथ सिंह रावत ने भी सुमना व जोशीमठ पंहुचकर सेना के शौर्य व पराक्रम की प्रंशसा करते हुए करीब चार सौ जिन्दगियाॅ बचान के लिए आभार प्रदर्शित किया। सुमना मे जिस स्थान पर बीआरओ ने अपने दो शिविर स्थापित किए थे उसका भी ब्यापक अध्ययन किया था, क्योकि पिछले कई वर्षो मे इस स्थान व आस-पास इस प्रकार की एवलाॅच की घटना सामने नही आई तो सुरक्षित समझते हुए बीआरओ ने भी यहाॅ शिविर स्थापित किया। जो पिछले कई वर्षो से है। लेकिन इस बार कुदरत व प्रकृति इन शिविरो पर हिमस्खलन के रूप मे टूट पडी। जिसमे करीब आठ अभागे गरीब मजदूर काल के ग्रास मे समा गए।
वर्ष 2003 में भी सुमना घाटी मे एवलाॅच की घटना ने 18 सीमा प्रहरियांें की जिन्दगियाॅ लील ली थी। तब यह घटना मलारी-सुमना रोड पर 8 किमी0 प्वाइंट पर घटित हुई थीं। और महीना भी अप्रैल-मई का ही था। उसके बाद इस क्षेत्र मे यह सबसे बडी घटना है। ग्लेशियर वैज्ञानिकों ने भी एक बार फिर दोहराया है कि ग्लेशियर पर निरंन्तर अध्ययन किए जाने की जरूरत है। वाडिया हिमालियन भू-विज्ञान संस्थान के निर्वतमान बरिष्ठ वैज्ञानिक डा0डीपी डोभाल ने एक फिर दोहराया है कि प्रकृति की शक्ति को कमत्तर आंकना बडी भूल होगी। उनका मानना है कि ग्लेशियर टूटने की घटना प्राकृतिक अवश्य है,लेकिन प्राकृतिक घटना आपदा व त्रासदी मे परिवर्तित ना हो इसके लिए उसके नीचे व आस-पास के शिविरों व चैकियों को सुरक्षित रखा जाना भी बहेद जरूरी है, और यह तभी संभव होगा जब ग्लेशियरों की निरंन्तर मोनिटिरिंग हेागी। डा0डोभाल ने कहा कि अप्रैल महीने मे अत्यधिक बर्फबारी होना भी एवलाॅच का प्रमुख कारण है क्याकि जब दिसबंर-जनवरी मे बर्फबारी नही हुई तो पहाड नगंे व सुस्क हो चले थे, इस पर अचानक से बर्फबारी होने तथा सोयल टैपंरेचर नही मिलने के कारण बर्फ टिक नही पाती और अपने साथ काफी मलबा लेकर नीचे की ओर लुढकती है जो विशालकाय एवलॅाच बनकर वसावट की जिन्दिगियों पर काल बनकर टूटता है। इन सबसे बचने के लिए ग्लेशियरो पर निरन्तर अध्ययन किए जाने की आवश्यकता है।
डा0डोभाल के अनुसार वर्ष 2003 मे इसी घाटी मे आए विनासकारी एवलाॅच का समय मे अप्रैल-मई महीना ही था और तब भी इसी तरह की बर्फबारी हुई थी। प्रकृति के इस प्रकार के परिर्वतन से सीख लेते हुए उसी प्रकार की तैयारियों की जरूरत होगी ताकि जान व माल का नुकसान होने से बचा जा सके।
बहरहाल फरवरी महीने मे ़ऋषिगंगा त्रासदी के बाद अप्रैल महीने मे नीती घाटी के ही सुमना मे हुई एवलाॅच की दिल दहलाने वाली घटना के बाद ग्लेशियर को लेकर किस प्रकार के अध्ययनात्मक कदम उठाए जाते है,, इस सीमा प्रहरियों के साथ ही सीमा तक सडक संपर्क जुटाने मे लगी एजेसियांे को भी गंभीरता से बिचार किए जाने की आवश्यकता है। ताकि सीमाओ पर इस प्रकार की घटना की पुनरावृत्ति ना हो सके।