उरगम घाटी। विश्व प्रसिद्ध वंशी नारायण मंदिर में रक्षाबंधन को होने वाले विशेष मेले के आयोजन की तैयारी की जा रही है।
वंशी नारायण मंदिर के बारे में कई जानकारियां भ्रामक रूप से भी प्रसारित की जाती रही हैं, बंशी नारायण मंदिर पंच केदार कल्पेश्वर उरगम घाटी के शीर्ष ऊपर 12000 फीट की ऊंचाई पर यह प्राचीन कत्यूरी शैली में बना हुआ विष्णु का मंदिर है। कुछ लोग बंशी शब्द सुनकर लगता है कि वहां वंशीधर भगवान कृष्ण हैं। किंतु ऐसा नहीं है, यहां भगवान नारायण का चतुर्भुज स्वरूप विराजमान है। और यहां बद्रीश पंचायत की तरह नारायण के साथ सभी देवगण उपस्थित हैं। बंशी नारायण की चतुर्भुज मूर्ति शिव की जलेरी रूप में विराजमान हैं। कुछ लोग भक्त भगवान नारायण को शंकर के रूप में भी पूजा करते हैं और जल चढ़ाते हैं। बंशी नारायण के मंदिर की बनावट को देखकर लगता है कि वह मंदिर कत्यूरी शैली में बना हुआ छठवीं से दसवीं इसवीं के मध्य निर्मित किया मंदिर है। कत्यूरी शैली के मंदिर उच्चे ताप वाले मंदिर हैं।
जनश्रुति के अनुसार ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों के द्वारा किया जा रहा था और पांडवों का यह संकल्प था कि बंसी नारायण से बद्री और केदार के दर्शन एक साथ हो जाएं इतना बड़ा इस मंदिर को बनाया जाना था। देव योग से यह कार्य पांडव पूर्व नहीं कर सके। किंतु उसका लिखित में कोई इतिहास में वर्णन नहीं मिलता है। इतना अवश्य है कि यह मंदिर पुरातत्व महत्व का प्राचीन मंदिर है। सरकार को इस प्रकरण में अवश्य पुरातत्वविद से सलाह लेकर मंदिर के बारे में एक बड़ी कार्य योजना बनानी चाहिए। जिससे कि इस मंदिर को संरक्षित श्रेणी में रखा जा सके। यहां वन देवियों का बड़ा महत्व है। जो भी यहां आता है वह नारायण की पूजा के अलावा बन देवी की पूजा अवश्य करता है। यहां मीलों तक पसरे हुए बुग्याल सैकड़ों प्रजाति के फूलों का खिलना और मिटना आम बात है। हिमालय का अत्यधिक सुंदर और महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है उरगम घाटी से 10 से 12 किलोमीटर पैदल दूरी तय कर यहां पहुंचा जाता है। हर वर्ष देश.विदेश के श्रद्धालु यह नारायण के दर्शन करने पहुंचते हैं पहले यहां वर्ष भर कपाट खुला रहते थे और रक्षाबंधन के दिन कलगोठ गांव के जाख देवता के पुजारी यहां विशेष पूजा का आयोजन करते थे।
यहां प्रतिवर्ष कलगोट गांव के लोग बारीगण अपने.अपने घरों से आटा घी तथा मक्खन की टिकिया लेकर यहां पहुंचते हैं और इसी मखन की टिक्की से घी तैयार किया जाता है। इससे हलवा पुरी सत्तू तैयार किया जाता है। रक्षाबंधन के पावन पर्व पर वर्तमान समय में बारी गणों के द्वारा नारायण की पूजा की जाती है। भोग लगाने के बाद यहां प्रसाद सभी को बांटा जाता है। हर दो वर्ष के अंतराल में डुमक गांव की वजीर देवता की छड़ी भी यहां पहुंचती है। बारी गणों के द्वारा स्वनुल कुंड में प्रसाद तैयार किया है और भगवती को विशेष भोग लगाया जाता है।
दर्शनार्थ बंशी नारायण मंदिर जाते हैं और वापस डुमक गांव लौट जाते हैं। इस वर्ष भी 11 अगस्त को आयोजित होने वाले बंशी नारायण रक्षाबंधन के मेले के लिए भव्य तैयारी चल रही है। कलगोठ गांव के युवक मंगल दल के द्वारा भव्य भंडारे के लिए तैयारियां हो रही है। आप बंसी नारायण की यात्रा का विचार कर रहे हैं, तो अपने साथ गर्म कपड़े टेंट खाने पीने की चीजें अवश्य ले जाएं। कल्पेश्वर उरगम के वांशा या कलगोठ के बाद कोई गांव नहीं है। बुग्याल में ही रात्रि विश्राम करना पड़ता है। आप लोग बाहरी राज्यों से यहां यात्रा के लिए आ रहे हैं, तो गाइड अवश्य ले जाएं। ऋषिकेश से बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग के अति निकट हेंलग तक 240 किलोमीटर बस, कार, जीप से पहुंच सकते हैं। यहां से कार जीप से उरगम 14 किलोमीटर की यात्रा गाड़ी से की जा सकती है। उसके बाद 12 किलोमीटर खड़ी चढ़ाई तय कर वंशी नारायण पहुंचा जा सकता है। लक्ष्मण सिंह नेगी स्वतंत्र लेखक फोन 8126770351