डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी वाइब्रेंट विलेज योजना के तहत सीमावर्ती जादूंग गांव में पहले चरण में इसी
साल सितंबर से छह होमस्टे का निर्माण शुरू हुआ है। सभी होम स्टे पहाड़ी शैली में तैयार किए जा रहे हैं,
जो वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के चलते खाली करवाए गए जादूूंग गांव के मूल निवासियों को सौंपने
हैं।चीन सीमा से लगे जादूंग गांव में होम स्टे के साथ ही 10 करोड़ की लागत से मेला स्थल का निर्माण
होगा। इसके लिए पर्यटन विभाग ने कंसलटेंट एजेंसी के माध्यम से डीपीआर तैयार करवा रहा है। मैदान
बनने से जाड़ समुदाय के लोग जादूंग में अपने रीति-रिवाज और संस्कृति से जुड़े लोकोत्सवों का आयोजन
कर सकेंगे। अब इन होमस्टे के साथ वहां पर मेला स्थल के निर्माण की कवायद की भी जा रही है। मैदान
बनने से जाड़ समुदाय के लोगों को अपने रीति-रिवाज और संस्कृति से जुड़े लोकोत्सवों के आयोजन के लिए
जगह की कमी से नहीं जूझना पड़ेगा। कार्यदायी संस्था जीएमवीएन के सहायक अभियंता डीएस राणा का
कहना है कि तीन माह में छह में से तीन होमस्टे की नींव का निर्माण पूरा कर लिया गया है। चौथे होमस्टे
की नींव निर्माण का काम जारी है। होमस्टे के साथ मैदान का निर्माण प्रस्तावित है। यह निर्माण करीब 10
करोड़ की लागत से होना है। इसके लिए पर्यटन विभाग द्वारा आईएनआई कंसलटेंट कंपनी के माध्यम से
विस्तृत कार्ययोजना तैयार करवाई जा रही है।जीएमवीएन के सहायक अभियंता ने बताया, 21 सितंबर से
छह होमस्टे का निर्माण शुरू किया था। 30 नवंबर को गंगोत्री नेशनल पार्क के गेट बंद होने के चलते यह
काम अब 29 नवंबर को बंद कर दिया जाएगा। इसके बाद अगले साल जून में दोबारा शुरू किया जाएगा।
पर्यटन विभाग के अनुसार, दूसरे चरण में यहां 17 होमस्टे बनाए जाएंगे। इसके लिए डीपीआर तैयार करने
का काम शुरू कर दिया गया है। जादूंग में कुल 23 परिवार रहते थे। प्रत्येक के लिए होमस्टे बनाया जा रहा
है। पहले चरण में छह होमस्टे बनने के बाद दूसरे चरण में 17 का काम शुरू हो जाएगा। हालांकि, इसके
लिए जादूंग में तैनात आईटीबीपी की पोस्ट को भी स्थानांतरित करने की जरूरत होगी।जादूंग में मेला
मैदान के लिए डीपीआर तैयार करवाई जा रही है। इसके लिए जादूंग गांव के मूल निवासी जाड़ समुदाय के
लोगों से भी बातचीत चल रही है। दूसरे चरण के लिए 17 होमस्टे निर्माण के लिए भी डीपीआर बनाई जा
रही है। वाइब्रेंट विलेज योजना, उत्तराखण्ड के दूरस्थ क्षेत्रों के विकास में मील का पत्थर साबित होती नजर
आ रही है। इस केंद्रीय वित्तपोषित कार्यक्रम के तहत चुने गए गांवों में सरकार की विभिन्न योजनाओं को
धरातल पर उतारा जा रहा है, जिससे इन गांवों की आर्थिकी मजबूत हो रही है। वाइब्रेंट विलेज योजना में
सीमांत उत्तरकाशी जिले के 10 गांव भी शामिल हैं। इनमें आठ गांव हर्षिल घाटी और दो गांव नेलांग घाटी
में हैं। हर्षिल क्षेत्र में सेब और राजमा की फसल को प्रोत्साहन देकर यहां खेती और बागवानी का विस्तार
किया जा रहा है। इन वाइब्रेंट गांवों के कुछ ग्रामीण भेड़ पालन के व्यवसाय से भी जुड़े हैं। योजना के तहत
इन भेड़ पालकों का कौशल विकसित करने और पारंपरिक बुनकरों को डिजाइन विकास कार्यक्रमों के
माध्यम से नई डिजाइन श्रृंखला से जोड़ना है। इसमें ऊन के लिए ऊन कार्डिंग ओपनर बेलिंग सुविधा देना
भी शामिल है। जिलाधिकारी ने जिले में वाइब्रेंट विलेज योजना के तहत किए जा रहे कार्यों की जानकारी
दी। उत्तराखंड के उत्तरकाशी में 56 सालों से वीरान पड़े गांवों को दोबारा से सजाया और संवारा जा रहा
है. इतिहास के पन्नों में दर्ज इन गांवों की मकानों की दीवारें रंगों से सजने लगी हैं. गांव की तरफ जाने वाली
पगडंडी पर लोगों की चहल-पहल दिखाई देने लगे हैं. सब कुछ योजना के मुताबिक हुआ तो जिस आबाद
जादूंग गांव को भारत-चीन युद्ध के दौरान खाली करना पड़ा था, उस गांव को नए साल के शुरुआत तक
नया रूप मिल जाएगा. इससे गांव में पर्यटकों की आमद भी देखने को मिलेगी. भारत-चीन युद्ध 1962 में
जाड़-भोटिया समुदाय के सीमावर्ती नेलांग और जादूंग गांव को खाली करवाया गया था. वर्तमान में जादूंग
में जहां इंडियन तिब्बत बॉर्डर पुलिस (आईटीबीपी) तैनात है. वहीं, नेलांग में सेना काबिज है. केंद्र सरकार
ने वाइब्रेंट विलेज योजना के तहत सीमावर्ती जादूंग गांव को दोबारा आबाद करने की कवायद शुरू की है.
इसके तहत प्रथम चरण में जादूंग गांव में 6 होमस्टे का निर्माण किया जा रहा है. इन होमस्टे के निर्माण में
पुराने भवनों के निर्माण प्रयुक्त पत्थर की ही चिनाई की जा रही है. वर्तमान में एक होमस्टे की नींव तैयार
कर ली गई है. एक अन्य का काम चल रहा है. सभी 23 होमस्टे अगस्त 2025 तक तैयार करने का लक्ष्य है.
प्रत्येक होमस्टे को जोड़ने के लिए इंटरकनेक्ट फुटपाथ का भी निर्माण किया जाएगा, जिसमें सोलर लाइट
लगी होंगी.लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।