डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
सत्तर के दशक में शुरू होने के बाद, चिपको, भारत का सबसे प्रसिद्ध पर्यावरण आंदोलन है, जिसका नेतृत्व उत्तराखंड के ग्रामीणों और मजदूर वर्ग के लोगों ने प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा और हिमालयी क्षेत्र में सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए किया था, जिसने देश और दुनिया को हिलाकर रख दिया। पचास साल बाद, आर्टिकल 14 ने विमला बहुगुणा से बात की, जिन्होंने अपने दिवंगत पति सुंदरलाल बहुगुणा के साथ मिलकर पेड़ों के संरक्षण का बीड़ा उठाया, अग्रणी पर्यावरणविदों और काम और दृढ़ विश्वास से बंधे जोड़े के रूप में उनकी असाधारण यात्रा के बारे में। स्व सुंदरलाल बहुगुणा के बेटे राजीव नयन बहुगुणा के मुताबिक कि दिसंबर 1946 को कौसानी में महिला शिक्षा और ग्रामीण भारत के उदय को लेकर लक्ष्मी आश्रम की स्थापना की गई थी. शुरुआती दौर में लक्ष्मी आश्रम की देखरेख महात्मा गांधी की नजदीकी शिष्या सरला बेन कर रही थी. हालांकि जब आश्रम की स्थापना हुई उसे दौरान अल्मोड़ा जिले के रहने वाले लोगों में विरोधाभास की स्थिति थी. लेकिन पौड़ी और टिहरी जिले में आश्रम को लेकर उत्साह देखा गया. क्योंकि टिहरी जिले से एक साथ पांच छात्राओं ने आश्रम में दाखिला लिया था. इन पांचों छात्राओं में एक छात्रा बिमला नौटियाल भी थी. समय के साथ बिमला नौटियाल आश्रम की सबसे प्रिय छात्रा बन गई. जानकार मानते थे हैं कि आश्रम से बाहर की सामाजिक गतिविधियों में भी बिमला बहुगुणा काफी अहम भूमिका निभाती थी. जब विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में आश्रम के प्रतिनिधित्व की जरूरत पड़ी तो बिमला बहुगुणा का ही नाम चुना गया था, बिमला बहुगुणा भूदान आंदोलन में अपने बेहतर काम के लिए भी जानी जाती रहीं. विनोबा भावे के मंत्री दामोदर ने बिमला को “वन- देवी” की उपाधि दी थी और कहा था कि ऐसी लड़की उन्होंने पहले कभी नहीं देखी, जो बहुत आसानी और मजबूती से नौजवानों का सही मार्गदर्शन करती हैं. बहुत ही कम लोग जानते हैं कि बिमला बहुगुणा और सुंदर लाल बहुगुणा की शादी की कहानी बड़ी रोचक है. साल 1954 में बिमला बहुगुणा ने शादी के लिए सुंदर लाल के सामने शर्त रखी थी. जिसके बाद ही उन्होंने विवाह के लिए हां किया था. दरअसल बिमला को पिता की एक चिट्ठी के जरिए मालूम चला कि उनका विवाह सुंदर लाल के साथ तय हुआ है. इस चिट्ठी में आदेश दिया गया था कि अमुक दिनांक,अमुक माह में उनका विवाह सुंदर लाल के साथ तय कर दिया गया है. अब बिमला बहुत ही दुविधा में थीं वो शादी नहीं करना चाहती थीं लेकिन अपनी छोटी बहनों की पढ़ाई बीच में ना छूट जाए और पिता जी नाराज ना हो जाए, ये भी डर उनको सता रहा था. तो उन्होंने विवाह से पहले एक शर्त रखी.शादी के लिए शर्त ये थी कि सुंदरलाल राजनीतिक कामों को छोड़कर एक आश्रम की स्थापना करें. जिस पर सुंदरलाल भी तैयार हो गए और तब सड़क से मीलों दूर सिलयारा आश्रम की शुरुआत की गई. विवाह ठक्कर बाबा आश्रम में संपन्न हुआ था.चिपको आंदोललन एवं गांधीवादी विचारों के रूप में अपनी अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाने वाले स्वर्गीय सुंदरलाल बहुगुणा की पत्नी बिमला बहुगुणा का निधन हो गया है. 93 साल की उम्र में बिमला बहुगुणा ने अंतिम सांस ली. स्वर्गीय सुंदरलाल बहुगुणा के बेटे राजीव नयन बहुगुणा ने सोशल मीडिया पर मां के निधन की जानकारी साझा की है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बिमला बहुगुणा के निधन पर शोक व्यक्त किया है.सामाजिक कार्यों में रहती थी सक्रिय स्वर्गीय सुंदरलाल बहुगुणा के बेटे राजीव नयन बहुगुणा ने सोशल मीडिया हैंडल पर लिखा कि,भोर 2.10 बजे मां ने अंतिम साँस ली. वह देहरादून, शास्त्री नगर स्थित आवास पर थीं. अंत घड़ी चूंकि मैं उनके साथ अकेला था, अतः घबरा न जाऊं, यह सोच कर उखड़ती सांसों के साथ पड़ोस में रहने वाले मेरे चचेरे बड़े भाई को बुलवाने के निर्देश दिए. सतत 93 साल तक प्रज्वलित एक ज्योति शिखा का अनंत ज्योति में मिलन.गौर हो कि, अपने पति सुंदरलाल बहुगुणा की भांति ही बिमला बहुगुणा ने भी अपना संपूर्ण जीवन पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र और सामाजिक उत्थान को समर्पित किया है शराबबंदी के लिए अभियान शुरू किया और जेल भी गईं। आम ग्रामीण महिलाओं को चिपको आंदोलन और शराबबंदी अभियान में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। टिहरी गढ़वाल जैसे गरीब और दुर्गम क्षेत्र की हजारों महिलाओं को जनांदोलन में लाने के उनके सफल प्रयास की कोई तुलना नहीं है। इन गतिविधियों को अंजाम देने के लिए पर्वतीय पर्यावरण संरक्षण समिति (पहाड़ी क्षेत्र पर्यावरण संरक्षण समिति) की स्थापना की।सुश्री बहुगुणा ने बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं को सार्वजनिक रूप से आगे आने के लिए प्रेरित किया है। उन्होंने अनाथ और परित्यक्त महिलाओं में आत्मविश्वास जगाने के लिए भी काम किया है। जिन महिलाओं को परिवार द्वारा उपेक्षित या परित्यक्त कर दिया गया था, उन्हें उन्होंने आत्मनिर्भर बनना सिखाया। आज भी ऐसी कई महिलाएं हैं जो उनके साथ काम कर रही हैं।सुश्री बहुगुणा बहुत कम ज़रूरतों वाली महिला हैं। उन्होंने अपनी संस्था से सिर्फ़ अपनी आजीविका के लिए सहायता ली। समिति सरकारी अनुदान प्राप्त करने में विश्वास नहीं रखती। यह कल्पना करना कठिन है कि 28 किलो की कमज़ोर महिला यानी सुश्री बहुगुणा कृषि, गौ सेवा, बुनियादी शिक्षा, झोपड़ी निर्माण, घर के काम-काज जैसे विभिन्न कार्यों में प्रतिदिन 19 घंटे काम करती हैं। उनकी सफलता का रहस्य उनकी लगन और आस्था है। सुश्री विमला बहुगुणा के दृढ़ संकल्प ने उनकी शारीरिक दुर्बलताओं पर विजय प्राप्त की है। 1975 में अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष के दौरान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा खेती पुरस्कार प्राप्त किया। पर्यावरण की रक्षा के लिए थी, और इसीलिए विभिन्न देशों के लोग भी हमसे जुड़ पाए। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लोग इस आंदोलन के बारे में महिलाओं की वजह से जानते हैं। उन्होंने हमारे संघर्ष और योगदान को पहचाना, जिसे वे संजोकर रखते हैं। इस उम्र में, मुझे संतुष्टि है कि हमने अपने पर्यावरण की रक्षा के लिए अपनी क्षमता के अनुसार सब कुछ किया। हमने अपना पूरा जीवन इस उद्देश्य के लिए समर्पित कर दिया और हमें इसका कोई पछतावा नहीं है। लेकिन मैं फिर भी यही कहूंगा कि वर्तमान पीढ़ी को और अधिक करने की आवश्यकता है। . ईश्वर पुण्यात्मा को श्री चरणों में स्थान एवं शोकाकुल परिजनों को यह असीम दुःख सहन करने की शक्ति प्रदान करें।।लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।