डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला एवं प्रशांत मेहता
16 अगस्त 2001 को अल्मोड़ा में जन्मे शटलर लक्ष्य सेन मूलरूप से जिले के सोमेश्वर के ग्राम रस्यारा निवासी हैं। 80 वर्षों से अधिक समय से उनका परिवार अल्मोड़ा के तिलकपुर मोहल्ले में रहता है। उनके दादाजी सीएल सेन जिला परिसर में नौकरी करते थे। दादा ने सर्विसेस में राष्ट्रीय स्तर की बैडमिंटन प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। वहीं कई खिताब अपने नाम किए। जबकि पिता डीके सेन भी वर्तमान में कोच हैं।
छह वर्ष की उम्र में मैदान पर उतर बैडमिंटन पकड़ने वाले लक्ष्य सेन को उनके दादा सीएल सेन ने ही बैडमिंटन की एबीसीडी से रूबरू कराया था। इसके बाद पिता की शागिर्दिगी में पूरी दुनिया में लक्ष्य ने जो नाम कमाया, उसे बताने की जरूरत नहीं। यह लक्ष्य की कामयाबी ही है कि आज देश के अर्जुन बन गए हैं। लक्ष्य ने जिला, राज्य के बाद राष्ट्रीय स्तर पर कई पदक अपने नाम किए। इसके बाद उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पैठ जमाई। लक्ष्य ने अपने ट्वीटर एकाउंट पर साझा की। उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा कि ‘प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं में से एक के रूप में घोषित किए जाने पर सम्मानित महसूस कर रहा हूं। यह ऐसा संयोग है कि इन पुरस्कारों की घोषणा 14 नवंबर को की जाती है, ठीक उसी दिन जब मेरे प्यारे दादा स्व. सी.एल. सेन 2013 में हमें छोड़कर चले गए थे।
दादाजी, यह आपके लिए है बुधवार को लक्ष्य को जब राष्ट्रपति द्राैपदी मुर्मू ने अर्जुन अवार्ड दिया तो लक्ष्य ने इसे बैडमिंटन हाथ में थमाने वाले दादा को समर्पित कर दिया।उत्तराखंड के लिए भी ये गर्व से भर देने वाला क्षण हैं, क्योंकि लक्ष्य सेन उत्तराखंड के अल्मोड़ा से संबंध रखते हैं, बचीनगर कमलुवागांजा में उनका ननिहाल है। लक्ष्य की सफलता की कहानी काफी रोचक है। लक्ष्य के दादा सीएल सेन बैडमिंटन के एक बेहतरीन खिलाड़ी थे। उन्होंने राज्य और राष्ट्रीय स्तर की कई प्रतियोगिताएं जीतीं थीं। लक्ष्य सेन को उनकी मंजिल तक पहुंचाने के लिए उनके पिता डीके सेन ने दिन-रात एक कर दिया।
डीके सेन ने अपने दोनों बेटों को बेहतर बैडमिंटन खिलाड़ी बनाने के लिए अल्मोड़ा तक छोड़ दिया और बेंगलुरु चले गए। हालांकि, अल्मोड़ा से उनका रिश्ता अब भी है और लक्ष्य वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतने के बाद वहां गए भी थे। एक बार जो लक्ष्य ने रैकेट पकड़ा, इसके बाद बचपन के खेलकूद सब भूल गए। लक्ष्य के पिता डीके सेन बैडमिंटन के जाने-माने कोच हैं और वर्तमान में प्रकाश पादुकोण अकादमी से जुड़े हैं। अर्जुन पुरस्कार’ से सम्मानित किया जाना प्रत्येक उत्तराखण्डवासी के लिए गौरव का क्षण है। आपकी यह अप्रतिम उपलब्धि प्रदेश के अन्य खिलाड़ियों के लिए प्रेरणास्रोत है। आपके उज्जवल भविष्य हेतु अनंत शुभकामनाएं। दोनों लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।
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