प्रकाश कपरूवाण
जोशीमठ।
विश्व धरोहर फूलों की घाटी मे असंख्य फूल लहलहा रहे है, लेकिन ये फूल घाटी मे फैल रही पौलीगोनम घास के कारण कई बार पर्यटको की नजरों से ओझिल हो जाते है। वन विभाग प्रतिवर्ष पौलीगोनम घास की कटाई के लिए मजदूरों को काम पर लगाता है, लेकिन इस बार एक नया प्रयोग सामने आया है। भ्यॅूडार गाॅव की महिला समूह की दस महिलाओ ने घाटी मे पौलीगोनम घास को उखाडने का काम अपने हाथ मे लिया। और महिलाएं प्रतिदिन घाटी में पंहुचकर पौलीगोनम घास को उखाडने के काम मे जुटी रहती है। अब तक करीब 80हैक्टेयर क्षेत्र से पौलीगोनम घास को उखाडा जा चुका है।\
विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी मे जब से भेड-बकरियों के चुगान पर प्रतिबन्ध लगा, तब से घाटी मे लगातार पौलीगोनम घास का फैलाव भी बढता ही जा रहा है, आलम यह है कि वन विभाग को वर्ष मे दो बार पौलीगोनम घास को उखाडने के लिए मजदूरों की ब्यवस्था करनी होती है।, वन विभाग का मानना है कि पौलीगोनम घास के बीच असख्य किस्म के फूल ढक जाते है, और पर्यटक भी कई बार निराश होते हैं, इसलिए वन विभाग प्रतिवर्ष पर्यटक सीजन मे ही दो बार पौलीगोनम घास की कटाई करता है।
इससे पूर्व वन विभाग द्वारा ठेका प्रथा पर पौलीगोनम घास उखाडने का काम दिया जाता था, लेकिन इस वर्ष पहली बार इस काम के लिए स्थानीय भ्यूूॅडार गाॅव की महिलाएं आगे आई है। गाॅव की दस महिलाएं इस कार्य मे जुटी है। महिलाएं प्रतिदिन अपने घरो से घाटी मंे पंहुचती है और पूरे दिन पौलीगोनम घास उखाडकर सायं को अपने घरो को लौटती है। वन विभाग की इस पहल से घर के नजदीक ही रोजगार का जरिया मिलने से भ्यॅूडार गाॅव की महिलाएं भी काफी खुश है, और प्रतिवर्ष घाटी से पौलीगोनम घास को उखाडने का काम स्वंय करने का मन बना रही है।
फूलों की घाटी रैज के वन क्षेत्राधिकारी बृजमोहन भारती कहते है कि पौलीगोनम घास खूबसूरत फूलों की घाटी के लिए अभिशाॅप वनकर रह गया है, प्रतिवर्ष पर्यटक सीजन पर विभाग को इस खरपतवार की कटाई के लिए मजदूरों को लगाना होता है। कहा कि विभाग द्वारा एक पर्यटन सीजन मे दो बार पौलीगोनम घास की कटाई की जाती है, जिस पर विभाग पतिवर्ष करीब चार लाख रूपया ब्यय करता है। रैज अधिकारी श्री भारती ने कहा कि इस बार भ्यूॅडार गाॅव की स्थानीय महिलाओं ने घास को उखाडने की पहल की, और विभाग ने भी विना देर किए इसे स्वीकार करते हुए महिला समूह को यह कार्य दे दिया।
वास्तव मे महिलाओ ने आत्मनिर्भर बनने की दिशा मे जो सराहनीय पहल की है वह निश्चित रूप से काबिले तारीफ है। इससे पूर्व भी जब वन विभाग द्वारा बाहर से लाकर नेपाली व अन्य मजदूरो द्वारा यह कार्य कराया जाता था, तो वन्य जीवों व बेसकीमती जडी-बूटियों के दोहन का भी खतरा बना रहता था, लेकिन अब स्थानीय महिलाओं से विभाग को इस प्रकार की कोई आंशका नही रहेगी ।