डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
अटल बिहारी वाजपेयी अपने माता-पिता की सातवीं संतान थे। उनसे बड़े तीन भाई और तीन बहनें थीं।उनकी प्रारंभिक शिक्षा सरस्वती शिक्षा मंदिरमें हुई। वहां से उन्होंने आठवीं कक्षा तक की शिक्षा प्राप्त की। उन्हें विक्टोरिया कॉलेज में दाखिल कराया गया, जहां से उन्होंने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की। उन्होंने विक्टोरिया कॉलेज (जिसे अब लक्ष्मीबाई कॉलेज के नाम से जाना जाता है) से स्नातक स्तर की शिक्षा ग्रहण की। कॉलेज जीवन में ही उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया था। शुरूआत में वे छात्र संगठन से जुड़े। बाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख कार्यकर्ता नारायण राव तरटे ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शाखा प्रभारी के रूप में भी कार्य किया था।पढ़ाई के साथ-साथ वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य भी करने लगे, परंतु वे पीएचडी करने में सफलता प्राप्त नहीं कर सके क्योंकि पत्रकारिता से जुड़ने के कारण उन्हें अध्ययन के लिए समय नहीं मिल रहा था। पत्रकारिता ही उनके राजनैतिक जीवन की आधारशिला बनी। उन्होंने संघ के मुखपत्र पांचजन्य, राष्ट्रधर्म और वीर अर्जुन जैसे अखबारों का संपादन किया।1957 में देश की संसद में जनसंघ के सिर्फ चार सदस्य थे जिसमें एक अटल बिहारी बाजपेयी भी थे। संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए हिंदी में भाषण देने वाले अटलजी पहले भारतीय राजनीतिज्ञ थे।आज यानी 16 अगस्त 2025 को भारत रत्न और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 7वीं पुण्यतिथि मनाई जा रही है। अटल जी का जीवन राजनीति और साहित्य का जीता-जागता उदाहरण रहा है। वाजपेयी जी का जीवन एक ऐसे व्यक्तित्व को दर्शाता है, जिन्होंने संसद में अपने शब्दों से विपक्ष का भी दिल जीत लिया था। उन्होंने कविताओं के माध्यम से आम जनता से गहरा जुड़ाव बनाया था। अटल बिहारी वाजपेयी न सिर्फ एक कुशल राजनेता थे बल्कि एक संवेदनशील कवि, दृढ़ विचारों वाले राष्ट्रभक्त और लोकतांत्रिक मूल्यों के सच्चे प्रहरी भी थे। वह छात्र रहते हुए राजनीति में प्रवेश कर चुके थे।पूर्व प्रधानमंत्री और भाजपा के दिग्गज नेता रह चुके अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिन 25 दिसंबर 1924 को हुआ था। वे ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे, लेकिन नॉनवेज उनका पसंदीदा भोजन हुआ करता था। साल 2018 में 16 अगस्त को उन्होंने दिल्ली के एम्स में अंतिम सांस ली। उन्हें किडनी में संक्रमण हुआ था, जिस वजह से वे काफी समय तक अस्पताल में भर्ती थे। उन्होंने साल 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया था। भारत को परमाणु शक्ति से ताकत देने में भी उनकी अहम भूमिका रही है।अटल बिहारी वाजपेयी पहले भारतीय राजनेता थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत की ओर से हिंदी भाषा में भाषण दिया था। ये पहली बार था जब किसी भारतीय नेता ने मातृभाषा का वैश्विक मंच पर चयन किया था। इस भाषण में उन्होंनेभारत की विदेश नीति, गुटनिरपेक्षता और वैश्विक शांति पर बात की थी।भारत का परमाणु परीक्षण और अटल बिहारी वाजपेयी का नाम सदा-सदा के लिए एक-दूसरे से अटूट रूप से जुड़ा चुका है। साल 1998 में वाजपेयी की अगुवाई वाली सरकार ने एक निर्णायक कदम उठाया और भारत को औपचारिक रूप से न्यूक्लियर पॉवर से संपन्न राष्ट्र बनाया था। इस ऑपरेशन का कोड नेम ‘ऑपरेशन शक्ति’ था।अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के कद्दावर नेता थे, उन्होंने न सिर्फ देश का नेतृत्व किया बल्कि लगातार 47 वर्षों तक भारतीय संसद के सदस्य के रूप में जनता की सेवा भी की थी। उनका कार्यकाल उनकी जनप्रियता, दूरदर्शिता और राजनीतिक प्रतिबद्धता का प्रमाण है। उन्होंने 11 बार लोकसभा चुनाव लड़े और जीते थे। वे साल 1957 से 2009 तक लोकसभा और राज्यसभा के सक्रिय सदस्य थे।अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के ध्रुव तारा तो थे ही साथ ही अजातशत्रु भी थे. संसद के दोनों सदन में इन दिनों जबरदस्त गतिरोध है. लोकतंत्र का यह मंदिर शोर-शराबे और आरोप-प्रत्यारोप का अखाड़ा बन गया है. ‘वोट चोरी’ जैसे आरोपों की गूंज संसद की गरिमा पर सवाल खड़े कर रही है. हालांकि, इतिहास गवाह है कि कभी इसी संसद में मतभेदों के बीच भी मर्यादा और परिपक्वता का स्तर अलग होता था, जब जवाहर लाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेता आमने-सामने होते थे, तब संसद की गरिमा बनी रहती थी.पंडित जवाहरलाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी में कई समानताएं थीं. नेहरू और वाजपेयी, दोनों ही अपनी-अपनी पार्टियों से भारत के प्रधानमंत्री बनने वाले पहले नेता थे. इसी से जुड़ा एक किस्सा यह है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री के रूप में जवाहर लाल नेहरू ने ष्यवाणी की थी कि वाजपेयी ‘एक दिन’ उनकी गद्दी संभालेंगे.पंडित नेहरू उनकी हिंदी वाकपटुता से इतने प्रभावित हुए कि 1957 में उन्होंने भविष्यवाणी की कि वाजपेयी भविष्य में भारत के प्रधानमंत्री बनेंगे. एक विदेशी गणमान्य व्यक्ति से वाजपेयी का परिचय कराते हुए, नेहरू ने कहा, “यह युवक एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा.” नेहरू की यह भविष्यवाणी लगभग 40 साल बाद 1990 के दशक में सच साबित हुई.पंडित नेहरू के साथ अटल बिहारी वाजपेयी के मतभेद थे, जो संसद में चर्चा के दौरान गंभीर रूप से उभरकर सामने आते थे. उस समय अटल बिहारी वाजपेयी की पंडित नेहरू के साथ सदन में नोकझोंक भी हुआ करती थी. खासकर, उस समय अटल बिहारी वाजपेयी सदन में नए थे और पीछे बैठने की जगह मिलती थी. अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में अटल बिहारी वाजपेयी बहुत अच्छे कवि और लेखक भी थे। उन्होंने 20 से अधिक किताब लिखी हैं, इनमें 6 से अधिक किताब उनकी कविताओं के संग्रह पर आधारित हैं। एक संग्रह का नाम है, ‘क्या खोया क्या पाया,’ इसे बाद में ‘संवेदना’ नाम के म्यूजिक एल्बम में बदला गया। वाजपेयी की लिखी कविताओं को जगजीत सिंह ने पोज करके गाया है।दिए अपने एक भाषण में इसका बखूबी जिक्र किया था. मौजूदा मानसून सत्र के हालातों को देख अटल बिहारी वाजपेयी की पुण्यतिथि पर उन्हीं से जुड़ा एक किस्सा याद आता है. अटल बिहारी वाजपेयी संसद में अपनी कविताओं और शायरियों के लिए भी चर्चा में रहे हैं। साहित्य उनके खून में बसता था। उन्हें बचपन से ही कविता लेखन का शौक था। हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, गीत नया गाता हूं और आज भी जलता हूं, कल भी जलूंगा, उनकी कुछ प्रमुख कविताएं हैं। साल 2015 में ही उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है। 2015 में उन्हें बांग्लादेश सरकार ने फ्रेंड्स ऑफ बांग्लादेश लिबरेशन वार अवॉर्ड से नवाजा था। यह अवार्ड उन्हें सन 1971 में पाकिस्तान से स्वतंत्रता प्राप्त करने में बांग्लादेश की मदद करने के लिए दिया गया था। उस वक्त वह लोकसभा के सदस्य थे। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को साल 2015 में मध्य प्रदेश के भोज मुक्त विद्यालय ने भी डी लिट की उपाधि दी थी। इसी साल इन्हें गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके अटल जी को साल 1994 में श्रेष्ठ सांसद के पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। साल 1994 में उन्हें लोकमान्य तिलक पुरस्कार प्राप्त हुआ था। साल 1992 में उन्हें पद्म विभूषण के नागरिक सम्मान से नवाजा गया था।सदैव अटल पर पुष्पांजलि अर्पित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत की प्रगति के प्रति वाजपेयी की प्रतिबद्धता एक विकसित और आत्मनिर्भर राष्ट्र के निर्माण के प्रयासों को प्रेरित करती रहेगी। इस दौरान अटल बिहारी वाजपेयी के समपर्ण को याद किया।” *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*