ब्यूरो रिपोर्ट
देहरादून। दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र ने 17 वर्ष की उम्र पार कर आज वयस्कता की दहलीज पर पदार्पण किया है। यह हम सबके लिए वाकई गौरव का पल है। 8 दिसम्बर 2006 को देहरादून में एक स्वायत्तशासी संस्था के रुप में इस संस्था ने कार्य करना प्रारंभ किया था। माध्यमिक शिक्षा विभाग, उत्तराखण्ड द्वारा परेड ग्राउंड स्थित परिसर में उपलब्ध कराये गये कुछ कक्षों से करीब 16 साल संचालित होने के बाद अब यह संस्थान अब लैंसडाउन चौक पर अपने नये भवन में स्थापित हो चुका है। इस बात पर कोई अतिशयोक्ति न होगी कि इस अवधि में ही दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र ने न केवल देहरादून अपितु देश-प्रदेश में भी अपनी एक विशेष पहचान कायम कर ली है।आम पाठकों,बुद्धिजावियों, लेखक,साहित्यकारों तथा सामाजिक विज्ञान के अध्येताओं के हित में स्थापित इस आदर्श ज्ञान संसाधन केन्द्र की परिकल्पना के मूल में मुख्य भूमिका प्रखर समाज विज्ञानी और पूर्व कुलपति कुमाऊं विश्वविद्यालय, प्रो. बी.के.जोशी की रही है। प्रो. जोशी इस संस्थान के संस्थापक निदेशक रहने के बाद अब इस समय सलाहकार के रूप में अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। इस महत्वपूर्ण कार्य को धरातल पर साकार करने में उत्तराखण्ड शासन के अनेक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों में स्व. सुरजीत किशोर दास व श्री एम. रामचंद्रन (दोनों पूर्व मुख्य सचिव उत्तराखण्ड शासन) का नाम प्रमुखता से आता है। उत्तराखण्ड शासन के अन्य पूर्व मुख्य सचिवों श्री इंदु कुमार पांडे, श्री एन.एस. नपलच्याल, श्री सुभाष कुमार, श्री उत्पल कुमार सिंह समेत अन्य कई शुभ चिन्तकों के सहयोग से यह संस्थान निरन्तर अग्रसर हो रहा है। श्री एन. रवि शंकर पूर्व मुख्य सचिव उत्तराखण्ड शासन वर्तमान में इस संस्थान के निदेशक का दायित्व संभाल रहे है।आज से डेढ़ दशक पूर्व उत्तराखंड के प्रमुख शहर देहरादून में एक ऐसे पुस्तकालय की स्थापना करने की आवश्यकता समझी गयी जो प्रबुद्ध पाठकों और पुस्तक प्रेमी तथा आम जन को पठन सामग्री की आपूर्ति करने के अलावा अध्येताओं को सामाजिक विज्ञान और मानव विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण संसाधन उपलब्ध करा सके। इसी सामूहिक प्रयासों की परिणति अब दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र के रुप में साकार होती दिख रही है। आज एक ही स्थल पर पाठकों लेखक,साहित्यकार,साहित्य प्रेमियों तथा अध्येताओं को हिमालयी क्षेत्रों, विशेष रूप से उत्तराखंड के समाज, आर्थिकी, इतिहास, राजनीति, संस्कृति, कला, नृवंशविज्ञान, पर्यावरण के साथ ही साहित्य जैसे अन्य विषयों की पुस्तकें मिल रहीं हैं वहीं दूसरी ओर समय-समय पर प्रबुद्ध जनों के सानिध्य में व्याख्यान, परिचर्चा, पुस्तक लोकार्पण, साहित्यिक गोष्ठियों और फिल्म प्रर्दशन जैसे आयोजनों में प्रतिभाग कर रहे हैं। संस्थान में हिमालयी संस्कृति, कला, साहित्य, बोली-भाषा तथा गीत-संगीत व फिल्म से सम्बद्ध विषयों का एक समृद्ध गतिविधि केन्द्र तथा पहाड़ के लोक सम्बन्धित सामग्री का संकलन कर एक समृद्ध संग्रहालय का आकार देने के प्रयास भी चल रहे हैं।संस्थान के पुस्तकालय में इस समय तकरीबन 38000 से अधिक पुस्तकें संकलित हैं व 5000 से अधिक पाठक इसके सदस्य हैं। 250 से ज्यादा युवा पाठकों को हर रोज यहां के वाचनालय और कम्प्यूटर लैब में अध्ययन रत देखा जा सकता है।संस्थान की ओर से उत्तराखंड हिमालय के सामाजिक विज्ञान से जुड़े विषयों पर सेमिनार, व्याख्यानों के आयोजन के तथा प्रकाशन श्रंखला के अंर्तगत हिमालयी समाज,अर्थव्यवस्था,पर्यावरण, भाषा, साहित्य तथा कला-संस्कृति जैसे विषयों पर कुछ उत्कृष्ट शोध आलेख, मोनोग्राॅफ व पुस्तक/पुस्तिकाओं का प्रकाशन भी होता है। दून पुस्तकालय के प्रति युवाओं की बढ़ती अभिरुचि ने इस संस्था को एक अलग पहचान दी है। अनेक युवा पाठकों को यहां के वाचनालय में बैठकर अध्ययन करते देखा जा सकता हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले और शोधार्थी युवा पाठकों के लिए यह संस्थान एक आदर्श जगह बनती जा रही है। विगत कुछ सालों से पुस्तकालय में अध्ययनरत कई युवा पाठक विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में निरन्तर सफलता भी प्राप्त कर रहे हैं।संस्थान के सलाहकार प्रो. बी. के. जोशी के मन-मष्तिस्क में एक समृद्ध पुस्तकालय की संकल्पना का उदय तभी हो चुका था जब वे राजनीति विषय में डॉक्टरेट की उपाधि अर्जित करने के लिए यूनिवर्सिटी आॅफ हवाई (संयुक्त राज्य अमेरिका) गये हुए थे। शोध अध्ययन की इस चार साल की यात्रा में लेखक के दिल में वहां के पुस्तकालयों की उपयोगिता तथा उनके द्वारा प्रदत्त सेवा सुविधाओं ने उनके जो अमिट छाप छोड़ी उसका ही साकार स्वरूप अब यह दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र लेने को उद्यत हो रहा है।पुस्तकालय की संकल्पना, पृष्ठभूमि और उसके प्रारम्भिक शुरुआत के अनेक दिलचस्प प्रसंग हैं। वर्ष 2005 की बात थी जब प्रो.जोशी ने देहरादून में अपने दो अभिन्न मित्रों लेखक एलन सीली तथा सुपरिचित कवि व बुद्धिजीवी अरविंद कृष्ण मेहरोत्रा के साथ एक समृद्ध पुस्तकालय शुरू करने की मंशा को उनके सामने जाहिर की थी। इसके साथ ही इस कार्य के लिए वित्तीय संसाधन जुटाने को लेकर भी उनके मन में कई चिन्ताएं थीं। इन दोनों मित्रों की ओर से जब उन्हें सकारात्मक सुझाव मिले तो कार्य को आगे बढ़ाने का सिलसिला बढ़ने लगा और उम्मीद की किरणें फूटने लगीं। इसी बीच उत्तराखण्ड शासन में कार्यरत तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव श्री एम.रामचन्द्रन, शिक्षा सचिव श्री डी.के.कोटिया, सहित अनेक प्रशासनिक अधिकारियों के भरपूर सहयोग से पुस्तकालय का एक संरचनात्क स्वरुप उभर कर सामने आ गया। शहर में स्थित पुरानी जेल तथा डालनवाला सहित कुछ अन्य जगहों पर पुस्तकालय को स्थापित करने के प्रस्ताव सामने आते रहे। अंततः परेड ग्राउण्ड के निकट शिक्षा विभाग के कार्यालय के कक्षों को पुस्तकालय के लिए अंतिम तौर पर उपयुक्त पाया गया। नवंबर 2006 के अंत तक जब इस भवन के मरम्मत व नवीकरण का कार्य पूरा हुआ तो तब श्री एम. रामचंद्रन सचिव के रूप में भारत सरकार में चले गए और सुरजीत किशोर दास को मुख्य सचिव के रूप में प्रतिस्थापित किया गया। मुख्य सचिव के रूप में उनकी नियुक्ति और पुस्तकालय के शासी निकाय के अध्यक्ष के तौर पर उनकी भूमिका पुस्तकालय के लिए वरदान साबित हुई। पुस्तकालय को महत्वपूर्ण संस्था बनाने की में उनकी सक्रियता व प्रतिबद्धता प्रेरणादायक थी। बाद में शिक्षा निदेशालय के सौजन्य से राजा राम मोहन राय फाउण्डेशन से प्राप्त 7000-8000 पुस्तकें मिलने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नारायण दत्त तिवारी द्वारा पुनर्निर्मित भवन में स्थापित पुस्तकालय का लोकार्पण किया गया और 8 दिसम्बर 2006 को दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र के नाम से अस्तित्व में आ गया। सुभाष कुमार और उत्पल कुमार सिंह द्वारा पाठकों के हित में पुस्तकालय को आवश्यक सुविधाएं प्रदान करने और आगे बढ़ाने में निरन्तर रूचि ली गई। प्रो. बी. के. जोशी के अनुसार संस्थान के अपने भवन के लिए उचित जगह की तलाश लगातार जारी रही। किसी एक दिन श्री सुरजीत किशोर के मन में विचार आया कि लैंसडाउन चौक पर खाली जमीन का भूखंड पुस्तकालय के भवन के लिए सर्वथा उपयुक्त हो सकता है जिसका उपयोग तब धरना स्थल के रूप में हो रहा था। इस मुद्दे को तब तत्कालीन मुख्य सचिव श्री उत्पल सिंह के समक्ष उठाया गया उन्हें उस जगह को प्रत्यक्ष तौर पर दिखाने के बाद काफी हद तक बात आगे बढ़ने की उम्मीद नजर आने लगी थी।प्रो. जोशी फरवरी 2018 की उस यादगार दिन को भी नहीं भूलते जब वे किसी एक मीटिंग के सिलसिले में दिल्ली थे और तत्कालीन मुख्य सचिव श्री उत्पल कुमार सिंह ने उन्हें अगली सुबह तक दिल्ली पहुंचने का अनुरोध किया था। एयरपोर्ट एथॉरिटी के सीएसआर कमेटी की अगले दिन की बैठक तय थी। इसमें मुख्य सचिव चाहते थे कि प्रो. जोशी प्रस्तुतिकरण की समीक्षा करते हुए आवश्यक सुझाव दें क्योंकि वे पुस्तकालय के समस्त पहलुओं से पूरी तरह परिचित थे और हर प्रश्न का उत्तर दे सकते। कुछ दिनों बाद राष्ट्रीय विमानपत्तन प्राधिकरण ने पुस्तकालय भवन के लिए 10.00 करोड़ रुपये के सापेक्ष 7.50 करोड़ रुपये की धनराशि स्वीकृति की सूचना मिली। पुस्तकालय के संदर्भ में यह एक अच्छी खबर थी। बाद में श्री दास द्वारा सुझाये गये लैंसडाउन चौक वाली भूमि पर पुस्तकालय के लिए जगह चिन्हित कर ली गई। यह भूमि नगर निगम की थी अतः महापौर के संज्ञान में लाकर इसे पुस्तकालय भवन के लिए आवंटित कर इसे दून स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट का हिस्सा बनाया गया। वाकई में यह एक बड़ा स्वागत योग्य कदम था। बहरहाल वर्ष 2019 में कोविड काल के शुरूआती दौर में निर्माण का कार्य प्रारम्भ होने के बाद वर्ष 2022 के अंतिम माह के आसपास यह भवन पूरी तरह निर्मित हो चुका था।उल्लेखनीय है कि दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र अपनी स्थापना काल से ही आपसी चर्चा और विमर्श को भी महत्वपूर्ण मंच प्रदान कर रहा है। इसके तहत विषय विषेषज्ञों के व्याख्यान, गोष्ठी, समूह चर्चा, पुस्तक समीक्षा और प्रदर्शनी जैसे माध्यमों से हम सामाजिक व ऐतिहासिक विषयों पर कार्यक्रमों का आयोजन होते रहते हैं। वर्ष 2007 से 2022 तक दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र द्वारा विविध माध्यमों के अन्तर्गत 175 से अधिक कार्यक्रम आयोजित किये जा चुके हैं। उल्लेखनीय बात यह है कि अब खुद का सभागार हो जाने से वर्ष 2023 में अप्रैल से नवम्बर तक 80 कार्यक्रम हो चुके हैं।पूर्व के वर्षों में पेंगुइन बुक्स और यात्रा बुक्स के सहयोग से वर्ष 2008 और 2009 में दो बार तीन दिवसीय साहित्यिक उत्सव माउण्टेन इकोज और दून रीडिंग्स के आयोजन प्रमुख रहे। इसी तरह प्रायोजक के तौर पर देहरादून और अन्य स्थानों पर इस तरह के आयोजन समय साक्ष्य प्रकाशन, वैली आॅफ वर्ड्स, व कुमाऊं लिटरेचर फेस्टिवल भी आयोजित किये गये। विगत पांच-सात वर्षों की अवधि में उन तीन अंतरराष्ट्रीय स्तर के सेमिनारों का सफल आयोजन भी हुए हैं जिनमें देश-विदेश के अनेक प्रतिष्ठित अध्येताओं व शोधार्थियों ने प्रतिभाग किया । दिसम्बर 2015 में अनफोल्डिंग सैंट्रल हिमालया : क्रैडिल आॅफ कल्चर पर, मार्च 2018 में वाटर हिमालया : पास्ट, प्रजेंट एण्ड फ्यूचर विषय पर तथा अक्टूबर 2018 में मध्य एवं पश्चिमी हिमालय की संकटग्रस्त भाषाएं पर सेमिनार आयोजित किये गये।समाजिक सन्दर्भ में देखें तो यह संस्थान एक आदर्श ज्ञान संसाधन केन्द्र के लिए देखे गये सपने को साकार होते देखना जैसा ही है। यह वाकई सुखद बात है कि दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र एक सु-संम्पन्न प्रबन्ध समिति के मार्गदर्शन में सहयोगी कार्यकर्ताओं की सामूहिक कार्य भावना तथा पुस्तकालय से जुड़े सदस्यों, पाठकों, शोधार्थियों व साहित्य प्रेमियों के आत्मीय प्रेम व सहयोग से एक आदर्श बौद्धिक केन्द्र बनने के पथ पर अग्रसर हो रहा है। आज जिस मुकाम पर यह संस्थान पहुंचा है वह दरअसल उसकी आत्म प्रचार की मुग्धता से सर्वथा दूर रहने और संयत व शालीन कार्य शैली और आम समाज को जोड़ने की सरल व सहज प्रवृति का सुखद परिणाम ही है। समाज के लिए गई इस सामूहिक सार्थक पहल को निश्चित तौर पर प्रेरणादायी माना जा सकता है। दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र परिवार के प्रबुद्ध संस्थापक गणों, शुभचिन्तकों, सहयोगी और समस्त पारिवारिक सदस्यों और सम्मानित पाठक वर्ग को इस अवसर पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।