• About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact
Uttarakhand Samachar
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
Uttarakhand Samachar

पहाड़ की प्रबल आवाज थे डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट:     डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

22/09/24
in उत्तराखंड
Reading Time: 1min read
0
SHARES
88
VIEWS
Share on FacebookShare on WhatsAppShare on Twitter

ब्यूरो रिपोर्ट। जब पहाड़ का पढ़ा-लिखा तबका वहां से पलायन कर अच्छी नौकरियों को तरजीह दे रहा था, उस समय शमशेर सिंह बिष्ट ने वहां के समाज को जागरुक कर उनके जल-जंगल-जमीन के सवालों समेत तमाम अन्य जनांदोलनों में अग्रणीय भूमिका निभायी और ताउम्र पहाड़ के तमाम सवालों के लिए लड़ते रहे.शमशेर सिंह बिष्ट उत्तराखण्ड के ख्यातिलब्ध आन्दोलनकारी, सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक, पत्रकार और बुद्धिजीवी थे. अभावग्रस्त बचपन को अपनी ताकत बना लेने वाले शमशेर सिंह बिष्ट ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 80 के दशक के आरम्भ में अल्मोड़ा कॉलेज के छात्र संघ अध्यक्ष के रूप में की. इसके बाद राजनीतिक, सामाजिक सरोकारों के लिए प्रतिबद्ध शमशेर उत्तराखण्ड के सभी महत्वपूर्ण आंदोलनों के ध्वजवाहक बने रहे . विभिन्न छात्र आंदोलनों के अलावा वे नशा नहीं रोजगार दो, चिपको आन्दोलन, राज्य आन्दोलन समेत कई आंदोलनों के प्रमुख योद्धा रहे. राज्य गठन के बाद भी वे सत्ता के गलियारों में जगह तलाशने के बजाय आजीवन जनसंघर्षों का हिस्सा बने रहे. डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट का जन्म 4 फरवरी 1947 को अल्मोड़ा में हुआ था। मूल रूप से स्याल्दे ब्लॉक के तिमली गांव निवासी डॉ. शमशेर सिंह के पिता स्व. गोविंद अल्मोड़ा कचहरी में कार्य करते थे। डॉ. बिष्ट का जन्म भी अल्मोड़ा में ही हुआ। इंटरमीडिएट पास करने के बाद उन्होंने तत्कालीन संघटक महाविद्यालय अल्मोड़ा में प्रवेश लिया और छात्र राजनीति में सक्रिय हो गए। 1972 में वह अल्मोड़ा संघटक महाविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष बने और उन्होंने पहली बार छात्रों की समस्याओं के साथ ही राज्य और उत्तराखंड के मुद्दों को लेकर संघर्ष की शुरुआत की। डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट ने चिपको, विश्वविद्यालय, वन बचाओ, नशा नहीं-रोजगार दो, नदी बचाओ और उत्तराखंड राज्य आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी। नशा नहीं, रोजगार दो आंदोलन में वह अपने साथियों के साथ 40 दिन तक जेल में रहे। राज्य के कई अन्य आंदोलनों के दौरान भी वह कई बार गिरफ्तार हुए। उन्होंने 1974 में अपने तीन अन्य साथियों के साथ अस्कोट से आराकोट तक 45 दिन की यात्रा की।1977 में उत्तराखंड जन संघर्ष वाहिनी के गठन के बाद डॉ. बिष्ट और कुछ अन्य नेताओं के नेतृत्व में वनों को बचाने के लिए जबरदस्त आंदोलन हुआ। उत्तराखंड के अलावा देश में मानवाधिकार, पर्यावरण, नदियों आदि के मुद्दों को लेकर भी वह देश के विभिन्न इलाकों में आयोजित सम्मेलनों और जागरूकता कार्यक्रमों में हिस्सा लेते रहे। सत्ता की राजनीति का भले ही शमशेर सिंह ने सदा तिरस्कार किया, लेकिन देश में वैकल्पिक राजनीति के लिए वे सदा क्रियाशील रहे. उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी के वे संस्थापक अध्यक्ष थे तो इंडियन पीपुल्स फ्रंट के संस्थापकों में भी वे शुमार थे. उत्तराखंड राज्य बनने के बाद राजनीति में हस्तक्षेप करने के लिए बनी उत्तराखंड लोक वाहिनी के संयोजक अध्यक्ष वे ही बनाए गए थे. स्वामी अग्निवेश जैसे लोग उनके साथी रहे थे तो शंकर गुहा नियोगी जैसे व्यवहारिक काॅमरेड भी उनके उतने ही करीब रहे थे. वे अपनी वैचारिक स्पष्टता से लोगों को जीतते थे और अनेक बार उनका ऐसा ही हस्तक्षेप परिस्थितियों की दिशा बदल देता था.25 मई 1974 को राजकीय इंटर कॉलेज अस्कोट से यह ऐतिहासिक यात्रा प्रारंभ हुई जो 45 दिनों में 750 किलोमीटर से अधिक की यात्रा के दौरान 12 बड़ी-बड़ी नदियां 9000 से 14000 फुट तक के तीन पर्वत शिखर के साथ ही 200 से अधिक गांवों और कस्बों से होकर गुजरी। इस यात्रा ने शमशेर सिंह बिष्ट के जीवन का उद्देश्य बदल दिया। वह गांव कुमाऊं के हों अथवा गढ़वाल के दोनों ही जगह ग्रामीण समाज के हाल बेहद दर्दनाक थे।अस्कोट में काली और गोरी नदियां बहती हैं, तो आराकोट में टोन्स और पब्बर। दोनों के बीच का जीवन अभाव, गरीबी और पीड़ा में पल रहा है। यह दर्शन उन्हीं के बीच जाकर हो सकता है। मोटर सड़कों तक तो सब ठीक दिखता है फिर लोग घर से बाहर बन ठन कर भी निकलते हैं इसलिए अभाव और गरीबी का दर्शन करने के लिए जो पद यात्रा संपन्न हुई उसने उत्तराखंड के गांव में गरीबी अभाव, असुरक्षा, शराब खोरी, क्षेत्रीय राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय घटनाओं से अनभिज्ञता और महिलाओं की बदहाली के साथ ही मजबूर युवाओं के पलायन की दारूण तस्वीर पेश की। उस पीडा़ ने ही शमशेर को उत्तराखंड में ही संघर्षरत रहने का मैदान दे दिया।उसके बाद मात्र 6 माह की जेएनयू की पढ़ाई को शमशेर सिंह बिष्ट ने अलविदा कह दिया और समाज के संघर्ष को अपना विश्वविद्यालय बना दिया। इस यात्रा की यह भी उपलब्धि थी कि इसने कुमाऊं और गढ़वाल के मध्य सामाजिक सहयोग के नए द्वार खोले। यह भी कि प्रताप शिखर और कुंवर प्रसून जहां तपे हुए गांधीवादी सर्वोदय कार्यकर्ता थे वहीं शमशेर सिंह बिष्ट और श्री शेखर पाठक वामपंथ के रुझान के युवा लेकिन दोनों ही धाराओं ने इस यात्रा में एक बेहतर समन्वय स्थापित कर समाज को नई दिशा दी।जेएनयू के छह माह ने हीं शमशेर सिंह बिष्ट को धर्म, जाति और क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर एक मानवीय दृष्टि से चीजों को देखने समझने की दृष्टि दी। इस दृष्टि से न केवल शमशेर सिंह बिष्ट के सामाजिक संघर्ष को आसान किया बल्कि उन्हें संघर्ष के राष्ट्रीय फलक में स्थापित होने में भी सहायता प्रदान की।आज शमशेर सिंह बिष्ट की पुण्यतिथि है। संघर्ष का इतिहास बहुत लंबा-चौडा है। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि का यह ज्यादा बेहतर तरीका होगा कि 1974 से 2014 के कालखंड में प्रत्येक 10 वर्ष में सम्पन्न इन पांच “अस्कोट – आराकोट यात्रा ” अभियान के जमीनी अध्ययन का संकलन हो और समाज निर्माण में उनका उपयोग हो।समाज निर्माण में यात्राओं का हमेशा महत्वपूर्ण स्थान रहा है यात्राएं न केवल भौगोलिक उद्घाटन करते हैं, बल्कि यात्राओं से व्यक्तित्व का निर्माण और दृष्टि का विस्तार भी होता रहा है।जब पहाड़ का पढ़ा-लिखा तबका वहां से पलायन कर अच्छी नौकरियों को तरजीह दे रहा था, उस समय शमशेर सिंह बिष्ट ने वहां के समाज को जागरुक कर उनके जल-जंगल-जमीन के सवालों समेत तमाम अन्य जनांदोलनों में अग्रणीय भूमिका निभायी और ताउम्र पहाड़ के तमाम सवालों के लिए लड़ते रहे. पहाड़ से बाहर देश के विभिन्न शहरों में भी इसकी गूंज हुई. परन्तु इस घटना के क्षणोंशुरुवाती दिनों में शराब माफिया के खिलाफ उसके खौफपूर्ण वर्चस्व के कारण कोई भी खुलकर बोलने को तैयार नहीं था. ऐसे समय में डॉ. शमशेर बिष्ट पहले व्यक्ति थे जिन्होने शराब माफिया मनमोहन नेगी और उसके साथियों को पौड़ी बाजार में दिन-दहाड़े अकेले ही खुले-आम दहाड़ कर चेतावनी दी थी. शमशेरदा की निडरता ने अन्य मित्रों को साहस दिलाया और इस आन्दोलन में पत्रकारों के साथ ही आम जनता भी शराब कारोबारियों के खिलाफ लामबंद हुई थी. मुझे याद है कि उमेश डोभाल आंदोलन के सिलसिले में तब शमशेर बिष्टजी अन्य कई साथियों के साथ अलीगंज, लखनऊ आये थे. हमने उनको बताया कि पौड़ी जिले का एसपी बंसीलाल जो कि ‘उमेश डोभाल आंदोलन’ में शराब माफिया को मदद कर रहा था का मकान यहीं पास ही है. बिष्टजी के कहने पर उमेश डोभाल आन्दोलन के पर्चे मैं और मंगल सिंह रात के अंधेरे में बंसीलाल के घर चुपके से गिरा आये थे. लोगों से नजर बचाते हुए रात को पर्चे डालते समय डर से हिर्र तो हुआ था. घर पहुंचने पर बिष्ट जी का यह कहना कि ‘कुछ नहीं होगा शराब के खिलाफ आंदोलन के खबर से वह डरेगा तो सही’ हममें हिम्मत आयी थी. और यही हुआ, पर्चे डालने की रात के बाद कई दिनों तक बंसीलाल ने अपने घर में पुलिस लगा ली थी..वास्तव में, शमशेर बिष्टजी हमारी पीढ़ी के लिए हमेशा एक अभिभावक रहे हैं.उनके सहज, सरल और आत्मीय व्यक्तित्व में उनकी शोहरत, ज्ञान, अनुभव और सम्मानों के बोझ की शिकन कभी कहीं नजर नहीं आई. ‘कैसा उत्तराखंड बन गया’ इस पर वे चिंतित जरूर रहते थे. वरिष्ठ वैज्ञानिक रवि चोपड़ा ने बताया कि डॉ शमशेर सिंह बिष्ट को वह करीब 30 साल से जानते थे. उनके जैसा सरल व्यक्तित्व उन्होंने नहीं देखा था. अगर उनसे कोई कुछ कह भी देता था, तो वह बहुत सरल स्वभाव में उससे बात करते थे. उन्होंने कई आंदोलनों में अपनी अहम भूमिका निभाई थी. इसके अलावा उन्हें लिखने का काफी शौक था. वह बैठे-बैठे कुछ न कुछ लिखा करते थे. उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश को आज डॉ शमशेर सिंह बिष्ट जैसे लोगों की जरूरत है.

चाह नहीं मैं सुरबाला के

माला में गूंथा जाऊं

चाह नहीं सम्राटों के

मुकुटों पर चढ़ जाऊं

पर हे वन माली तुम मुझे

उस पथ पर देना फेंक

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने

जिस पथ जाएं वीर अनेक

कवि मैथिलीशरण गुप्त की इन सुंदर पंक्तियां में एक फूल की कामना व्यक्त की है कि उसकी इच्छा है कि वह किसी अन्य की शोभा ना बढ़ाकर उसे मार्ग पर पड़ा रहे जिस मार्ग से निछावर जिस मार्ग से मातृभूमि के लिए निछावर होने वाले वीरों के पद पड़ते हो, उन्हीं के कदमों से मैं कुचला जाऊं यह मुझे कामना है कि तुम उसी राह पर मुझे गिरा देना उन वीरों के पैरों तले पढ़ कर मेरा जीवन धन्य हो जाएगा. इन्हीं पलों से प्रेरित होकर एक फूल भी अपने वर्तमान को सजीव करना चाहता है निर्विकार भाव से फूल अपने को देश पर निछावर होने वालों को ही सौंपना चाहता है इस तरह एक साधारण निर्विकार व्यक्तित्व शमशेर सिंह बिष्ट कि भी कामनाएं यही रही कि अपने को संघर्षों की राह पर सौंपते हुए सादा जीवन उच्च विचार की परंपरा बनाए रखें. वह भी अनेक राजनीतिक प्रलोभनों के बावजूद अपने व्यक्तित्व को कायम रखते हुए हमेशा अडिग बने हुए संघर्षरत रहे. उत्तराखंड राज्य हेतु जनता के साथ भागीदारी में संगठित रहते हुए संघर्ष करते रहे. राज्य तो मिला पर सपनों के उत्तराखंड की कामना ही रह गई, जिसमें भ्रष्टाचार व बेईमान न हो. ऐसा राज्य उनकी कल्पना ही रह गया. भ्रष्टाचार पूरी तरह समाप्त न हो सका. शहीदों की कुर्बानी और उनकी तमन्नाओं का उत्तराखंड उन्हें नहीं मिल सका. संघर्षरथ जीवन अपने समाज के लिए समर्पित करते हुए अभावग्रस्त लोगों की भलाई करते हुए और उनके उपचार हेतु अपना पूरा जीवन संघर्षरत रखते हुए अपने को सभी के लिए समर्पण करते हुए ऐसे विचारों व भावनाओं को हम नमन करते हैं. उनके कठिन संघर्षों को समाज के उत्थान हेतु अनुसरण करते हुए उनके सपनों के उत्तराखंड के प्रति अपनी संवेदनाओं के साथ अपनी भावनाएं समर्पित करते हैं. विकास और आपदाओं में से हम सबको एक चुनना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश में सब के बागानों तक सड़कों के विस्तार के लिए जो सड़के खोली गई, उसके फल स्वरुप वहां बड़े आपदाएं हैं। उन्होंने कहा कि हिमाचल में  बांध  के बनने के बाद रोखड़ में तब्दील हो गई  नदियों पर बड़े-बड़े होटल व रिसोर्ट में बनाए गए, किंतु जब हिमांचल में अत्यधिक वर्षा के कारण नदी  अपने स्वाभाविक प्रवाह की तरफ बहने लगी  जिसके परिणाम स्वरूप हिमाचल में जल प्रलय.आ गया।   उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में जो सड़कों का विस्तार हो रहा है सड़कों के चौड़ाई बढ़ रही है उसे हमें यह समझ लेना चाहिए कि भविष्य में प्राकृतिक आपदायें स्वाभाविक है।  लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।

ShareSendTweet
http://uttarakhandsamachar.com/wp-content/uploads/2025/02/Video-National-Games-2025-1.mp4
Previous Post

आपातकालीन घटना से निपटने एंव राहत पहुचाने हेतु रेस्क्यू टीमों ने किया सयुक्त मॉक ड्रिल अभ्यास- नन्दन सिह रजवार

Next Post

डोईवाला : शोधकर्ताओं और साहित्यकारों के लिए महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में विकसित हो रहा लेखक गांव

Related Posts

उत्तराखंड

प्रकृति प्रेमियों की पहली पसंद विश्व धरोहर फूलों की घाटी रविवार को पर्यटकों के लिए खोल दी गई

June 1, 2025
7
उत्तराखंड

जरूरतमंदों को समय पर रक्त पहुँचाना ही स्वयंसेवकों का लक्ष्य : साकिर हुसैन

June 1, 2025
33
उत्तराखंड

डोईवाला : निजी स्कूल ने जमा कराई 5 लाख 72 हजार रूपये की पेनल्टी

June 1, 2025
68
उत्तराखंड

विश्व तंबाकू निषेध दिवस के मौके पर विकासनगर में आयोजित तंबाकू छोड़ो, जीवन जोड़ो जागरूक रैली

June 1, 2025
2
उत्तराखंड

डोईवाला: सरस्वती शिशु विद्या मंदिर भोगपुर को मिला नई स्कूल बस का तोहफा

June 1, 2025
4
उत्तराखंड

डोईवाला: ‘साईं सृजन पटल’ के दसवें अंक का भव्य विमोचन

June 1, 2025
4

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Popular Stories

  • चार जिलों के जिलाधिकारी बदले गए

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • डोईवाला : पुलिस,पीएसी व आईआरबी के जवानों का आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण सम्पन्न

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • ऑपरेशन कामधेनु को सफल बनाये हेतु जनपद के अन्य विभागों से मांगा गया सहयोग

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  •  ढहते घर, गिरती दीवारें, दिलों में खौफ… जोशीमठ ही नहीं

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • विकासखंड देवाल क्षेत्र की होनहार छात्रा ज्योति बिष्ट ने किया उत्तराखंड का नाम रोशन

    0 shares
    Share 0 Tweet 0

Stay Connected

संपादक- शंकर सिंह भाटिया

पता- ग्राम एवं पोस्ट आफिस- नागल ज्वालापुर, डोईवाला, जनपद-देहरादून, पिन-248140

फ़ोन- 9837887384

ईमेल- shankar.bhatia25@gmail.com

 

Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड समाचार डाॅट काम वेबसाइड 2015 से खासकर हिमालय क्षेत्र के समाचारों, सरोकारों को समर्पित एक समाचार पोर्टल है। इस पोर्टल के माध्यम से हम मध्य हिमालय क्षेत्र के गांवों, गाड़, गधेरों, शहरों, कस्बों और पर्यावरण की खबरों पर फोकस करते हैं। हमारी कोशिश है कि आपको इस वंचित क्षेत्र की छिपी हुई सूचनाएं पहुंचा सकें।
संपादक

Browse by Category

  • Bitcoin News
  • Education
  • अल्मोड़ा
  • अवर्गीकृत
  • उत्तरकाशी
  • उत्तराखंड
  • उधमसिंह नगर
  • ऋषिकेश
  • कालसी
  • केदारनाथ
  • कोटद्वार
  • क्राइम
  • खेल
  • चकराता
  • चमोली
  • चम्पावत
  • जॉब
  • जोशीमठ
  • जौनसार
  • टिहरी
  • डोईवाला
  • दुनिया
  • देहरादून
  • नैनीताल
  • पर्यटन
  • पिथौरागढ़
  • पौड़ी गढ़वाल
  • बद्रीनाथ
  • बागेश्वर
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • रुद्रप्रयाग
  • रुद्रप्रयाग
  • विकासनगर
  • वीडियो
  • संपादकीय
  • संस्कृति
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • साहिया
  • हरिद्वार
  • हेल्थ

Recent News

प्रकृति प्रेमियों की पहली पसंद विश्व धरोहर फूलों की घाटी रविवार को पर्यटकों के लिए खोल दी गई

June 1, 2025

जरूरतमंदों को समय पर रक्त पहुँचाना ही स्वयंसेवकों का लक्ष्य : साकिर हुसैन

June 1, 2025
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.