कमल बिष्ट कोटद्वार
कोटद्वार। उत्तराखंड में चाहिए मूल निवास 1950 और सशक्त भू-कानून। इस मांग के साथ आज प्रदेश के दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्रों से आए हजारों लोगों के साथ ही मातृ शक्ति की गूंज चारों ओर रही। इस महारैली ने एक बार फिर से उत्तराखंड आंदोलन की याद ताजा कर दी। आज भी उत्तराखंड के लोग अपना अस्तित्व बचाने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। वक्ताओं ने कहा कि अभी अपने अस्तित्व की लड़ाई अभी नहीं लड़े तो आने वाले समय में मूल निवासियों का अस्तित्व खत्म हो जायेगा, यह लड़ाई पहाड़ का बजूद, स्वाभिमान, संस्कृति एवं संसाधन बचाने की लड़ाई है। जो लगभग 30 साल पहले वर्ष 1994 में आरक्षण को लेकर आंदोलन से शुरू हुआ था, उत्तराखंड राज्य आंदोलन फिर से उत्तराखंड के मूल निवासियों के दिलों में आग बनकर धधकने लगी है। कहा जिले की वैकेंसी राज्य कर दी, जिससे पहाड़ के युवा बच्चों का रोजगार छिन गया है। वे फिर से बेरोजगार बन गये हैं। जमीन तो छिन रही है, हमरा मेंन मुद्दा मूल निवास को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। अब यह लड़ाई लंबी चलने वाली है। आज जिस तरह का जनसैलाब कोटद्वार की सड़कों पर दिखाई दिया, उसने अलग राज्य के लिए चली आंदोलन की याद को ताजा कर दिया है। मूल निवास और सशक्त भू-कानून को लेकर आरम्भ हुई यह महारैली आने वाले समय में क्या रूप लेती है यह तो नहीं कहा जा सकता परन्तु इतना जरूर है कि आज की महा रैली ने सरकार को यहां के मूल निवासियों की पीड़ा को समझने के लिए जरूर मजबूर कर देगी। इस अवसर पर प्रमोद काला, मोहित डिमरी, महेंद्र पाल सिंह रावत, परविंदर सिंह रावत, रमेश भंडारी, गुलाब सिंह, दिलवर सिंह, डॉ. शक्तशैल कपरवाण, महेन्द्र सिंह रावत, त्रिभुवन रावत, सहित विभिन्न संगठनों से जुड़े हजारों लोग महारैली में शामिल रहे।