

रिपोर्ट . कुलदीप चौहान
जनपद देहरादून के कालसी ब्लॉक खत कोरू जौनसार बावर का गांव औकेला का सुख सुविधा के अभाव में गुमनाम हो चुका है। गांव पलायन पूरी तरह खाली हो चुका है। सरकारी अभिलेखों में इसका नाम अकेल है और स्थानीय भाषा में औकेला नाम से जाना जाता है। गांव औकेला की दास्ता खंडर पड़े मकान के अवशेष साफ बयां कर रहे हैं कि यह गांव पलायन की मार झेल चुका है, आज भी सरकार से पलायन कर दुसरे गांव में शरण लिए ग्रामवासी इस कदर उम्मीद लगाए बैठे हैं कि कोई तो हमारी सुनेगा और एक दिन पुनः हमारा अकेला गांव जगमगाएगा। युवा वर्ग भी अपने गांव समाज को दुबारा बसाने की आस में है।
जौनसार बावर का यह सबसे पहला गांव नहीं है, जो पलायन की मार झेल चुका है, राज्य सरकार जहां पलायन को रोकने के लिए तमाम दावे करती है, वही जौनसार बावर के कुछ ऐसे गांव भी हैं जो सुविधाओं के अभाव के चलते पलायन कर गए हैं और खाली हो चुके हैं। यहां अब पानी की टंकी और कुछ गांव के पुराने अवशेष है जो गांववासियों को याद दिलाते हैं कि यह हमारा गांव था। ग्रामीण आज भी अपने पलायन की व्यवस्था को सरकार के सामने रखते हुए वापसी अपने गांव क्षेत्र की मांग करते हैं। यहां की जनसंख्या लगभग 300 के आसपास रही होगी, जो कि नजदीक अलग.अलग गांव में शरण लिए हुए हैं।
यह गांव खत कोरू वह खत शैली का बॉर्डर गांव माना जाता है यहां पर आज भी मकान खंडहर के रूप में अपनी दास्तां बयां करते हैं। खुशहाली वह पलायन कर चुकी गांव की मिट्टी आज भी अपने ग्रामीणों से कहती है की आओ लौट चलो अपने गांव और खंडर पड़े मकानों को पुनः एक गांव का रूप दो। यहां पर आज भी मकान और पानी की टंकियों के अवशेष और खेत खलियान मौजूद हैं, जो कि बंजर पड़े हुए हैं, समस्त ग्रामवासी सरकार से मदद की गुहार लगाते हैं लेकिन सरकार है कि रवैया अनदेखा और परायापन को बयां करता है। समस्त ग्रामवासी सुनील खन्ना, रणवीर खन्ना, राजेश खन्ना, गुड्डू खन्ना, नरेंद्र, निकेश, विरेंदर, बुधाराम आदि मिडिया के माध्यम से सरकार से गुहार लगा रहे हैं।