• About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact
Uttarakhand Samachar
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
Uttarakhand Samachar
No Result
View All Result

फिलहाल उम्मीद के साथ इंतजार का कोई विकल्प नहीं है

03/01/25
in उत्तराखंड, देहरादून
Reading Time: 1min read
35
SHARES
44
VIEWS
Share on FacebookShare on WhatsAppShare on Twitter

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
अब 2025 शुरू हो गया है। पिछले साल को याद किया जाये तो भारत के लोगों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा। सब से बड़ी समस्या भयानक नैतिक विचलन से जुड़ी हुई है। जीवन का शायद ही कोई क्षेत्र नैतिक विचलन की चपेट में पड़ने से बचा हो। नैतिकता व्यक्ति का गुण अवश्य है, लेकिन नैतिकता का वास्तविक प्रतिफलन सामाजिक व्यवहार में ही देखा जाना चाहिए। व्यक्तिगत नैतिकता व्यक्तित्व की शोभा जरूर बढ़ाती है लेकिन सार्थक वह तभी होती है जब समाज के व्यवहार के प्रारूप में नैतिकता की नियंत्रणकारी और निर्णायक भूमिका हो।पिछले साल की शुरुआत से ही भारत के सार्वजनिक जीवन को कई तरह के धर्म-संकट का सामना करना पड़ा। सब से बड़ा धर्म-संकट तो राम मंदिर को लेकर खड़ा हो गया। निर्माणाधीन राम मंदिर में भगवान राम को प्रतिष्ठित किये जाने को लेकर शंकराचार्यों की असहमति मुखर हो गई। हिंदुत्व की राजनीति के शिरमौर्यों से शंकराचार्यों से विवाद सामने आ गया।कहना न होगा कि नैसर्गिक हिंदू, जो कथित रूप से पांच सौ साल से इस शुभ घड़ी की प्रतीक्षा में बताये जाते रहे हैं, के मन में इस विवाद से अनिवार्य निराशा उत्पन्न हुई। समाज के अन्य शुभ-चिंतकों के सामने धर्म-संकट उत्पन्न हो गया। हिंदुत्व की राजनीति के शिरमौर्यों ने कुपित शंकराचार्यों की ही नहीं, सब की अनसुनी की और भगवान राम की प्रतिष्ठा निर्माणाधीन मंदिर में कर दी गई। औद्धत्य यह कि वे राम को लाने के दंभ से भरे हुए दिखने से जरा भी परहेज नहीं था।हिंदुत्व की राजनीति करनेवालों में प्रतिष्ठा की इतनी हड़बड़ी 2024 के आम चुनाव में राजनीतिक फसल काटने की थी। समय पर आम चुनाव संपन्न हुआ। निश्चित इरादा, ‘चार सौ के पार’ की घोषणा को फलीभूत करने और भारत के इस संविधान को बदलने का था। भारत के इस संविधान में शुरू से ही हिंदुत्व की राजनीति के वैचारिक पुरखों को ‘सब कुछ’ अ-भारतीय ही लग रहा था। कहना न होगा कि इन्हें भी भारत के इस संविधान में कुछ भी भारतीय नहीं लगातार रहा है। सारा भारतीय तत्व तो मनुस्मृति में दिखता है।जाहिर है कि भारत के इस संविधान को बदलने का इरादा पक्का था। हालांकि भारत की राजनीतिक सत्ता के शिखर पर इसी संविधान के बल पर पहुंचने में कामयाब हो पाये हैं। भला हो विपक्ष की राजनीति का कि जनता ने इन के इरादों को ठीक से भांप लिया। नतीजा चार सौ के पार’ की घोषणा धरी-की-धरी रह गई और उनकी संसदीय शक्ति दो सौ चालीस पर सिमटकर आरामदायक बहुमत से खिसक कर अल्पमत में पहुंच गई।हालांकि जनता दल यूनाइटेड के नीतीश कुमार और तेलगू देशम पार्टी (टीडीपी) के के समर्थन से प्रधानमंत्री किसी तरह से तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने में कामयाब हो गये। स्थिति का अनुमान इसी से लग जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी संसदीय दल का नेता चुने जाने की औपचारिकता पूरी किये बिना हिंदुत्व ने अपनी राजनीतिक चतुराई से अवसर का अमृत चुरा लिया।कैसी विडंबना है कि जातिवाद और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ 25 दिसंबर 1927 मनुस्मृति को जलानेवाले डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का सम्मान करने की बात हिंदुत्व की सत्ता करती है और हिंदुत्व की राजनीति मनुस्मृति की तरफ लपकती रहती है। हिंदुत्व की राजनीति की सत्ता के साथी हिंदुत्व की सत्ता की बात पर यकीन करते दिखते हैं।पिछले साल काफी राजनीतिक गहमागहमी और घमासान का वातावरण बना रहा। किसान, युवा, महिला, रोजगार की तलाश में लगे लोग जान की बाजी लगाते रहे, जान गंवाते रहे। हिंदुत्व की राजनीति ने पूरे देश को तरह-तरह के धर्म-संकट में फंसा दिया है। समस्त राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों के भीतर भयावह नैतिक-संकट का दखल बढ़ता गया। धर्म-संकट असल में मूल रूप से नैतिक-संकट ही होता है। धर्म-संकट यदि अपनी अंतिम व्याख्या में नैतिक-संकट न ठहरे तो उसे धर्म-संकट के रूप में नहीं, किसी और रूप में ही समझा जाना चाहिए।बढ़ती हुई महंगाई, ₹ की लगातार गिरती हुई क्रय-क्षमता, सभ्य और बेहतर नागरिक जीवन के ध्वस्त होते चले गये सपनों के मलवा का मालिक नैतिक-संकट के अलावा और कौन हो सकता है! नैतिक-संकट के कारण भरोसा का आधार ही टूट गया, सभ्य और बेहतर जीवन के सपनों की बुनियाद ही हिल गई है। आराम-दायक जिंदगी की तो बात ही क्या!‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’ का नारा कहां गया! क्या पता! ‘अकेले खाऊंगा, एक को ही खाने दूंगा’ में बदल गया लग रहा है! दुनिया जानती है ‘खाने-खिलाने’ का रीति-रिवाज कैसे चलता है। खाने-खिलाने के संदर्भ में ज्ञानी लोग, कहते हैं मछली को पानी पीते कोई नहीं देख सकता है। तुलसीदास ने कहा है कि ‘मुखिआ को मुंह की तरह होना चाहिए जो विवेक के साथ खाये और सभी अंगों तक खाये गये के पोषक तत्व का लाभ सभी अंगों तक पहुंचने देना चाहिए। यहां तो हालत है कि अंधा बांटे रेवड़ी घुर-फिर अपने मुंह में लेअ! अपनों के मुंह में देअ! अर्थात ‘खाने-खिलाने’ का परंपरागत विवेक ही विकलांग हो गया है!समाज में ही नहीं, परिवार में भी अपने हिस्से-बखरे के लिए लोग लड़ते हैं, इस से कोई दुश्मनी नहीं हो जाती है। लेकिन कुछ लोग हिस्से-बखरे की राजनीतिक लड़ाई में दुश्मनी का खोंच लगाते रहते हैं। आज राजनीति में वोट बखरा का खोंच राजनीतिक दोस्ती-दुश्मनी, अलटरनेटिव करेंट की तरह अदल-बदल होती रहती है। विवेक हीनता की गिरफ्त में फंसे समाज में कैसी नैतिकता!विवेकहीनता के पर्यावरण में किसी प्रकार की नैतिकता के लिए कोई सम्मान नहीं बचता है, न सामाजिक नैतिकता का, न संवैधानिक नैतिकता का। नैतिकता के सवाल के सामने राज्य और लोकतंत्र के ‘चारों स्तंभ’ का सार्वजनिक चित्त, चारों खाने चित हो जाया करता है! सत्ता ने नैतिकता को राजनीति की रेत पर उलट कर रखा गया कछुआ बना दिया है। आकाश पर पैर चलाने की कोशिश करती रहती है! विपक्षी लोगों की तरफ नैतिकता के कछुआ को सीधा करके आगे बढ़ा देना सत्ता की रणनीति होती है। कछुआ-धर्मी नैतिकता ढके हुए कांख को विरोध में ‘मुट्ठी’ तानने की सुविधा देती है।नैतिकता के अभाव में न्याय पानी से परहेज करते हुए मछली पालने की कोशिश करने जैसा है। कहना न होगा कि नैतिकता और न्याय में मछली-पानी का रिश्ता होता है। जीवन में पानी बचाकर रखने के महत्व को रहीम ने समझ और समझाया था। किस ने समझा! पानी तो सूखता चला गया है! ऐसे में सत्ता की राजनीति करनेवाले, सामाजिक या आर्थिक न्याय की बात करनेवालों को ‘अरबन नक्सल’ के नाम पर नागरिक समाज और राजनीति के अन्य ‘महा-पुरुषों’ की ओर से दी जानेवाली उम्मीद भरी किसी भी चुनौती या चूंचपड़ के अभाव में बहुत आसानी से चित कर देते हैं। हालांकि सरकार की शब्दावली में ‘अरबन नक्सल’ शब्द शामिल नहीं है, लेकिन दिमाग में बसी राजनीतिक कार्यावली में यह शब्द बहुत खास और प्रमुख हैहर सभा, हर गली, हर अवसर पर ‘मोदी-मोदी’ करनेवालों को देख और सुनकर प्रसन्न होनेवाले देश के गृहमंत्री अमित शाह ने संसद के शीतकालीन सत्र में संविधान पर चर्चा के दौरान सरकार का पक्ष रख रहे थे। इस दौरान राज्यसभा में बाबासाहेब का जिक्र करनेवालों पर अमित शाह ने विद्रूप तंज किया। तंज यह कि जितनी बार आंबेडकर का नाम लेते हैं उतनी बार भगवान का नाम लेते तो सात जन्म तक स्वर्ग मिलता। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार एक बार स्वर्ग में जगह मिल जाने पर ‘पुनरपि ज्नमम, पुनरपि मरणम’ से मुक्ति मिल जाती है, मोक्ष मिल जाता है। सात जन्म तक स्वर्ग का क्या विधान है, पता नहीं! क्या पता, हो भी!बहरहाल मुद्दा की बात यह है कि बाबासाहेब ने परलोक के किसी काल्पनिक स्वर्ग में स्थान दिलाने के लिए नहीं, इसी लोक के लोकतंत्र में स्वर्ग के विधान के लिए कृत-संकल्प थे। जाहिर है कि इस तरह से बाबासाहेब के नाम का उल्लेख किये जाने को बाबासाहेब के प्रति अपमान माना गया। बाबासाहेब के प्रति इस तरह के अपमानजनक रवैया के व्यापक विरोध से सत्ताधारी गठबंधन के लिए असहज कर देनेवाला राजनीतिक-सामाजिक वातावरण बन गया।इसी बीच पूर्व प्रधानमंत्री का निधन हो गया। उनके अंतिम संस्कार और स्मारक स्थल को लेकर भी काफी विवाद सामने आ गया। जाहिर है कि डॉ मनमोहन सिंह और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के किये कार्यों की तुलनात्मक चर्चा ने भी सत्ताधारी दल को असहज कर दिया। हिंदुत्व की राजनीति ने जिस कांग्रेस को अपाहिज और पंगु बना देने में अपने जानते कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी वही विपक्ष अब फिर से उठ खड़ी हो गई है, यह सत्ताधारी दल और गठबंधन के लिए निश्चित ही चिंता की बात है।सत्ताधारी दल ने समझा कि डॉ मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार और स्मारक स्थल के कोलाहल और कलह के बीच बाबासाहेब के अपमान के विरोध का वातावरण हल्का हो जायेगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता है। बाबासाहेब के अपमान और उस के व्यापक विरोध का मामला भारत की राजनीति की आत्मा को झकझोर रहा है। भाजपा और उस से भी अधिक राष्ट्रीय स्वयं-सेवक संघ को राजनीतिक स्थिति की गंभीरता का एहसास हो गया है।कांग्रेस के फिर से तैयार होने में राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा और भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ की बड़ी जबरदस्त भूमिका रही है। समझ में आने लायक बात है कि बाबासाहेब के अपमान का मामला अब जातिवार जनगणना की जरूरत को अत्यधिक मजबूती से प्रत्यक्ष करता है। जैसा भी हो इंडिया गठबंधन के आकार लेने में भी राहुल गांधी की सावधान पहलकारी भूमिका रही है। इंडिया गठबंधन के होने के तात्कालिक कारणों की खोजबीन की जाये तो इस के पीछे की कहानियां कहीं-न-कहीं इडी, सीबीआई आदि की कार्रवाइयों के डर और दबाव से जरूर जुड़ जाती है। डर के माहौल ने न सिर्फ राजनीतिक दलों के नेताओं को बल्कि सत्ता की सक्रिय राजनीति से दूर रहनेवालों को भी अपने लपेटे में ले लिया था।यह सच है कि डर के माहौल से निकलने की शुरुआत में गांधी के ‘डरो मत की दहाड़’ की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है। एम के स्टालिन, अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव के साथ ने नेताओं में ही नहीं, आम लोगों में भी नये सिरे से आत्म-बल का संचार किया। फिल्म ‘थ्री इडीएट’ की तरह हर किसी ने एक दूसरे को ‘डरो मत, डरो मत’ कहना शुरू कर दिया और अंततः भारतीय जनता पार्टी के दो सौ चालीस पर उतरते ही डर के कुहासे का फटना शुरू हो गया। डर के कुहासे के फटने में लोगों ने नये सूरज की आमद की सफलतापूर्वक पढ़ना शुरू कर दिया, गवाही चार सौ के पार’ के उन्मादी उत्साह के दो सौ चालीस में सिकुड़ने की।इस साल 2025 में दिल्ली और बिहार विधानसभा के चुनाव संभावित हैं। जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभाओं के चुनाव परिणामों के बाद दिल्ली और बिहार विधानसभाओं के चुनाव और उस के परिणामों का महत्वपूर्ण हो गया है। इस बीच ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक रुख से इंडिया गठबंधन में राहुल गांधी और कांग्रेस की हैसियत को चुनौती मिली रही है। उधर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में भी नीतीश कुमार के राजनीतिक रुख से हलचल मची हुई है। भारतीय जनता पार्टी की अंदरूनी राजनीति में राष्ट्रीय स्वयं-सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के राजनीतिक सुर और साधु भेषधारी लोगों के बयानों से खलबली मची हुई है। सुननेवाले समझदार लोग तो राष्ट्रीय स्वयं-सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के कंठ से निकलती आवाज का मिलान राहुल गांधी की राजनीतिक आवाज से करने लगे हैं। कहना न होगा कि खलबली भी है, बवाल भी है और उबाल भी।इस से राजनीतिक पर्यावरण में बदलाव के आसार दिख रहे हैं। पर्यावरण में बदलाव के प्रभाव से राजनीतिक मौसम में भी बदलाव होना और सियासी तूफान का उठना अनिवार्य हो गया है। इस बदलाव में तीन संकेत दिख रहे हैं। पहला यह कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर संसद में पक्ष- के महत्वपूर्ण नेताओं को मिलाकर बीस सांसदों की स्पष्ट और सोद्देश्य निष्क्रियता ने बहुत गहरा संकेत दे दिया है।इससे निकलता हुआ दूसरा यह कि नीतीश कुमार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से बाहर निकलकर बिहार चुनाव में जायेंगे। आज जबकि भारतीय जनता पार्टी अपने सांसदों को नहीं संभाल पा रही है, तो स्वाभाविक है कि जनता दल यूनाइटेड के सांसदों को भारतीय जनता पार्टी के द्वारा फंसाकर सत्ता के साथ रख लेने का भय नीतीश कुमार को जरूर कम हो गया है।संभावना है कि नीतीश कुमार के जनता दल यूनाइटेड, लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल मिलकर और चिराग पासवान को मिलाकर चुनाव में उतरने की तैयारी करेंगे। ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव के रुख से भी साफ-साफ समझ में आ रहा है कि तीसरा मोर्चा की संभावनाओं को जिलाकर अपनी-अपनी राजनीति को आगे बढ़ाना उन्हें सहज और जरूरी लग रहा है। वे समझते हैं कि गैर-भाजपा और गैर-कांग्रेस की राजनीति करते हुए जरूरत के मुताबिक केंद्र में सरकार के गठन के अवसरों तीसरा मोर्चा सामूहिक रूप से अपना रुख तय करे यह स्थिति उन की राजनीति के अधिक अनुकूल होगा।अब आगे से क्षेत्रीय राजनीतिक दल सत्ताधारी जैसे वास्तविक राष्ट्रीय दल के साथ किसी भी तरह के चुनावी गठबंधन से परहेज की नीति पर चलेंगे। इस में राजनीतिक शुभ और अशुभ दोनों तत्व हैं।

Share14SendTweet9
https://uttarakhandsamachar.com/wp-content/uploads/2025/10/yuva_UK-1.mp4
Previous Post

डोईवाला में शीघ्र शुरू हो आधार केंद्र : अश्वनी

Next Post

प्रत्येक व्यक्ति के विकास का रखेंगे ध्यान : मोंटी

Related Posts

उत्तराखंड

उत्तराखण्ड राज्य की रजत जयंती वर्ष के अवसर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रवासी उत्तराखण्डी अधिवक्ताओं के साथ संवाद किया

November 16, 2025
13
उत्तराखंड

बढ़ती भ्रामक सूचनाओं के बीच प्रेस की विश्वसनीयता का संरक्षण, थीम पर विचार गोष्ठी आयोजित

November 16, 2025
6
उत्तराखंड

कांग्रेस के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल का डोईवाला में जोरदार स्वागत

November 16, 2025
27
उत्तराखंड

25 साल का उत्तराखंड पलायन के कारण खाली हुआ बागेश्वर का चौनी गांव

November 16, 2025
9
उत्तराखंड

उत्तराखंड हिमालय की गोद में छिपे सबसे सेंसेटिव इलाके

November 16, 2025
9
उत्तराखंड

दिव्य प्रेम सेवा मिशन ने सदैव समाज के कमजोर वर्गों के लिए नि:स्वार्थ भाव से कार्य किया : ऋतु खंडूड़ी भूषण

November 16, 2025
7

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Popular Stories

  • चार जिलों के जिलाधिकारी बदले गए

    67505 shares
    Share 27002 Tweet 16876
  • डोईवाला : पुलिस,पीएसी व आईआरबी के जवानों का आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण सम्पन्न

    45757 shares
    Share 18303 Tweet 11439
  • ऑपरेशन कामधेनु को सफल बनाये हेतु जनपद के अन्य विभागों से मांगा गया सहयोग

    38034 shares
    Share 15214 Tweet 9509
  •  ढहते घर, गिरती दीवारें, दिलों में खौफ… जोशीमठ ही नहीं

    37426 shares
    Share 14970 Tweet 9357
  • विकासखंड देवाल क्षेत्र की होनहार छात्रा ज्योति बिष्ट ने किया उत्तराखंड का नाम रोशन

    37305 shares
    Share 14922 Tweet 9326

Stay Connected

संपादक- शंकर सिंह भाटिया

पता- ग्राम एवं पोस्ट आफिस- नागल ज्वालापुर, डोईवाला, जनपद-देहरादून, पिन-248140

फ़ोन- 9837887384

ईमेल- shankar.bhatia25@gmail.com

 

Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड समाचार डाॅट काम वेबसाइड 2015 से खासकर हिमालय क्षेत्र के समाचारों, सरोकारों को समर्पित एक समाचार पोर्टल है। इस पोर्टल के माध्यम से हम मध्य हिमालय क्षेत्र के गांवों, गाड़, गधेरों, शहरों, कस्बों और पर्यावरण की खबरों पर फोकस करते हैं। हमारी कोशिश है कि आपको इस वंचित क्षेत्र की छिपी हुई सूचनाएं पहुंचा सकें।
संपादक

Browse by Category

  • Bitcoin News
  • Education
  • अल्मोड़ा
  • अवर्गीकृत
  • उत्तरकाशी
  • उत्तराखंड
  • उधमसिंह नगर
  • ऋषिकेश
  • कालसी
  • केदारनाथ
  • कोटद्वार
  • क्राइम
  • खेल
  • चकराता
  • चमोली
  • चम्पावत
  • जॉब
  • जोशीमठ
  • जौनसार
  • टिहरी
  • डोईवाला
  • दुनिया
  • देहरादून
  • नैनीताल
  • पर्यटन
  • पिथौरागढ़
  • पौड़ी गढ़वाल
  • बद्रीनाथ
  • बागेश्वर
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • रुद्रप्रयाग
  • रुद्रप्रयाग
  • विकासनगर
  • वीडियो
  • संपादकीय
  • संस्कृति
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • साहिया
  • हरिद्वार
  • हेल्थ

Recent News

उत्तराखण्ड राज्य की रजत जयंती वर्ष के अवसर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रवासी उत्तराखण्डी अधिवक्ताओं के साथ संवाद किया

November 16, 2025

बढ़ती भ्रामक सूचनाओं के बीच प्रेस की विश्वसनीयता का संरक्षण, थीम पर विचार गोष्ठी आयोजित

November 16, 2025
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.