डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
नैनीताल में ब्रिटिश शासन की विरासत के रूप में मौजूद गौथिक वास्तुकला
पर आधारित बेहद खूबसूरत प्राकृतिक परिवेश, चारों ओर हरियाली, शांत
वादियों और ठंडी आबोहवा के बीच साक्षात प्रकृति की होड़ में बसा नैनीताल
का राजभवन देश के सर्वश्रेष्ठ राजभवनों में तो शामिल है। वहीं अपने उत्तर
भारत के श्रेष्ठतम और खूबसूरत गोल्फ कोर्स और जैव विविधता के चलते भी
देश के दर्शनीय स्थानों में प्रमुख है। नैनीताल में ब्रिटिश शासन की विरासत के
रूप में मौजूद गौथिक वास्तुकला पर आधारित बेहद खूबसूरत प्राकृतिक
परिवेश, चारों ओर हरियाली, शांत वादियों और ठंडी आबोहवा के बीच
साक्षात प्रकृति की होड़ में बसा नैनीताल का राजभवन देश के सर्वश्रेष्ठ
राजभवनों में तो शामिल है। वहीं अपने उत्तर भारत के श्रेष्ठतम और खूबसूरत
गोल्फ कोर्स और जैव विविधता के चलते भी देश के दर्शनीय स्थानों में प्रमुख
है।राजभवन का निर्माण 1897 में शुरू हुआ और 1900 में पूरा हुआ, जिससे
यह वास्तव में 100 साल से भी पहले (करीब 125 साल) बन चुका है। इसे सर
एंटनी मैकडॉनेल की देखरेख में बनाया गया था, जो तब संयुक्त प्रांत के
लेफ्टिनेंट गवर्नर थे। इसका डिज़ाइन गोथिक स्तुकला से प्रेरित है, खासकर
स्कॉटलैंड के बाल्मोरल कैसल से, जो ब्रिटिश राज परिवार का निवास रहा है।
यही वजह है कि इसे अक्सर “बाल्मोरल ऑफ इंडिया” भी कहा जाता है।यह
एक भव्य दो मंजिला इमारत है जिसमें 113 कमरे हैं। इसकी गोथिक शैली,
नुकीली मेहराबें, मीनारें और विशाल परिसर इसे बेहद आकर्षक बनाते हैं। इसे
ब्रिटिश काल में संयुक्त प्रांत के गवर्नर का ग्रीष्मकालीन निवास और प्रशासनिक
मुख्यालय के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। नैनीताल की ठंडी जलवायु
गर्मियों में ब्रिटिश अधिकारियों के लिए एक आदर्श स्थान थीराजभवन एक
विशाल एस्टेट में फैला हुआ है जिसमें एक गोल्फ कोर्स, एक स्विमिंग पूल, और
हरे-भरे लॉन और बगीचे शामिल हैं। राजभवन गोल्फ कोर्स भारत के सबसे
पुराने और खूबसूरत गोल्फ कोर्स में से एक है।भारत की स्वतंत्रता के बाद,
राजभवन ने अपनी गरिमा और महत्व को बनाए रखा। यह उत्तर प्रदेश के
राज्यपाल का ग्रीष्मकालीन निवास बना रहा। जब 9 नवंबर 2000 को
उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ, तो राजभवन नैनीताल उत्तराखंड के राज्यपाल
का आधिकारिक ग्रीष्मकालीन निवास बन गया।राजभवन सिर्फ एक सरकारी
इमारत नहीं है, बल्कि यह नैनीताल की पहचान का एक अभिन्न अंग है। यह
ब्रिटिश राज के एक महत्वपूर्ण प्रतीक के रूप में खड़ा है और भारत के
औपनिवेशिक इतिहास की कहानियाँ कहता है। इसकी भव्यता और प्राकृतिक
सुंदरता इसे पर्यटकों के लिए भी एक लोकप्रिय आकर्षण बनाती है (हालांकि
परिसर के कुछ हिस्से ही जनता के लिए खुले हैं)।यह इमारत उन अनगिनत
महत्वपूर्ण फैसलों, बैठकों और ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रही है जिन्होंने
इस क्षेत्र और देश के इतिहास को आकार दिया है। अपनी 100 (या अधिक) से
अधिक वर्षों की यात्रा में, राजभवन नैनीताल ने समय के साथ कई बदलाव
देखे हैं, लेकिन इसकी वास्तुकला की महिमा और ऐतिहासिक महत्व आज भी
अक्षुण्ण है।राजभवन नैनीताल सचमुच उत्तराखंड के मुकुट का एक रत्न है, जो
अपने अतीत को समेटे हुए है और भविष्य की ओर देख रहा है।राष्ट्रपति द्रौपदी
मुर्मु इन दिनों उत्तराखंड दौरे पर हैं। आज राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने राष्ट्रपति
निकेतन, देहरादून में आयोजित एक कार्यक्रम में उत्तराखंड के ऐतिहासिक
राजभवन नैनीताल के 125 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में विशेष डाक टिकट
जारी किया। इस अवसर पर राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से
नि) भी उपस्थित रहे। उन्होंने राष्ट्रपति का इस ऐतिहासिक धरोहर को
राष्ट्रीय स्मृति में स्थान दिलाने के लिए आभार प्रकट किया।गौरतलब है कि
राजभवन नैनीताल का यह भवन ब्रिटिश काल की अद्भुत गोथिक स्थापत्य
शैली का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है। राजभवन की भव्य वास्तुकला,
भू-संरचना तथा इसके आसपास का प्राकृतिक सौंदर्य इस धरोहर स्थल को
विशिष्ट बनाते हैं।यहां एक संग्रहालय भी मौजूद है, जहां दुर्लभ और बेहद
आकर्षक एंटीक फर्नीचर के साथ ही सुल्ताना डाकू के हथियार भी रखे गए
हैं, जिसमें तलवार, भाले शामिल हैं. वहीं, यहां पुराने समय में इस्तेमाल
होने वाले बर्तन भी मौजूद हैं, जो कि लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र हैं.
इसके साथ ही यहां पर 100 वर्ष पुरानी भगवान गणेश की मूर्तियां भी
लोगों को आकर्षित करती हैं, जिन्हें नेपाल नरेश ने अंग्रेज शासकों को भेंट
में सौंपा था. उन्होंने बताया कि इसके अलावा यहां के मुख्य आकर्षणों में
गोल्फ ग्राउंड भी है. 18 होल्स वाला यह गोल्फ ग्राउंड 50 एकड़ में फैला
हुआ है, जहां कई गोल्फ टूर्नामेंट भी करवाए जाते हैं.। भारत में वन
महोत्सव की शुरुआत इसी राजभवन से हुई। इतिहासकार औरय
पर्यावरणविद के अनुसार स्वतंत्रता के बाद 1950 में तत्कालीन केंद्रीय
कृषि मंत्री केएम मुंशी ने बांज का एक वृक्ष रोपकर इस महोत्सव की
शुरुआत की थी। बांज का यह पेड़ आज भी यहां मौजूद है। पहाड़ बचेंगे तो
नदियाँ बचेंगी, पेड़ बचेंगे। पेड़ बचेंगे तो वर्षा होगी, पर्यावरण बचेगा।
इसलिए हे मनुष्य,पहाड़ को नष्ट मत करो, पहाड़ पर घूमने जाओ तो वहाँ
प्लास्टिक कचरा मत फैलाओ। ज़्यादा से ज़्यादा पेड़ लगाओ। बांज पर
आपका यह छोटा संकल्प पर्यावरण संरक्षण में बड़ी भूमिका निभा सकता
है। राज्य सरकार एवं शासन-प्रशासन तथा वन विभाग को उनके द्वारा
किये जा रहे ‘पर्यावरण बचाओ वृक्ष लगाओ अभियान’ का अवलोकन
करना ही होगा। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून*
*विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*