डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड के राज्य गीत उत्तराखंड देवभूमि मातृभूमि शत.शत वंदन अभिनंदन को जनता को समर्पित किया गया था। 9 मिनट की अवधि के इस राज्य गीत में उत्तराखंड की संस्कृति, इतिहास, धार्मिक स्थलों और शहीदों की यादों को शामिल किया गया है। उत्तराखंड के राज्य गीत उत्तराखंड देवभूमि, मातृभूमि, शत.शत वंदन अभिनंदन को राज्य गीत का दर्जा मिलने के साथ ही इसे धुन भी मिल गई है। नौ मिनट की अवधि के इस गीत में उत्तराखंड की संस्कृति, इतिहास, धार्मिक स्थलों व शहीदों की याद को शामिल किया गया है।
उत्तराखंड देवभूमि मातृ भूमि, शत-शत वंदन अभिनंदन
दर्शन संस्कृति धर्म साधना क्षम रंजित तेरा कण-कण, अभिनंदन-अभिनंदन
गंगा यमुना तेरा आंचल, दिव्य हिमालय तेरा शीश
सब धर्मों की छाया तुझ परए चारधाम देते आशीश
पूर्व सरकार के कार्यकाल में उत्तराखंड राज्य के लिए घोषित किए गए राज्यगीत एक बार स्वतंत्रता दिवस, 15 अगस्त पर बजने के बाद गुम हो गया है। इस मामले में संस्कृति विभाग और राज्यगीत चयन कमेटी नई सरकार का पक्ष न आने का हवाला दे रहे हैं। वहीं राज्यगीत के रचयिता हेमंत बिष्ट भी चयन के बाद गीत के गुम होने पर हतप्रभ हैं। उत्तराखंड राज्य के अपने गीत के लिए तत्कालीन सरकार ने फरवरी 2016 के प्रथम सप्ताह में एक सार्वजनिक सभा में राज्यगीत की घोषणा की थी। इसके बाद 4 मार्च को राज्यपाल की ओर से भी सहमति मिल गई। पिछली सरकार के कार्यकाल के दौरान 15 अगस्त के मौके पर गीत बजाया भी गया, लेकिन नई सरकार के आने के बाद से राज्य गीत नहीं बजा। बता दें तत्कालीन सरकार ने राज्य गीत को लेकर बेहद जोर दिया था। सरकार ने संस्कृति विभाग को राज्यगीत चयन का काम सौंपा था। इसके बाद संस्कृति विभाग ने गीत के चयन के लिए कमेटी बनाई और विज्ञापन के माध्यम से देशभर से प्रविष्टियां मांगीं। करीब 13 लोगों की कमेटी के अध्यक्ष लक्ष्मण सिंह बटरोही और उपाध्यक्ष नरेंद्र सिंह नेगी थे। कमेटी को 203 प्रविष्टियां प्राप्त हुईं। इनमें से कुमाऊं के हेमंत बिष्ट का गीत चुना गया। इस दौरान बिष्ट से गीत में कुछ संशोधन कराए गए। इसके बाद कमेटी ने गीत की धुन तैयार करने की जिम्मेदारी लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी को दी। नेगी ने दिल्ली के एक स्टूडियो में गीत कंपोज कर तैयार किया। इसके बाद गीत सरकार को सौंप दिया गया। कैबिनेट की सहमति के बाद हेमंत बिष्ट के गीत को राज्यगीत का दर्जा मिला, लेकिन 15 अगस्त के मौके पर गीत बजने के बाद गुम है। हमारी कमेटी ने राज्यगीत चुन लिया था। इसे बेहद कवायद के बाद पूरी तरह से तैयार भी कर लिया गया था। इसके बावजूद गीत किसी अवसर पर सुनाई नहीं दे रहा है। गीत किस लाइब्रेरी में है, नहीं पता। इस बारे में नई सरकार की क्या मंशा है, हम कुछ नहीं कह सकते हैं।
संस्कृति विभाग की ओर से कमेटी गठित कर गीत का चयन करा लिया गया था। गीत को कैबिनेट में भी रखा गया था। इस संबंध में नई सरकार से नए सिरे से कोई बातचीत नहीं हुई है। इसलिए कुछ नहीं कहा जा सकता है। एक सदस्य ने सुझाव दिया कि इसका पारिश्रमिक सभी सदस्यों में बराबर.बराबर बाँट दिया जाए, चूँकि यह बात तय ही नहीं हुई थी कि गीतकार को कितना पारिश्रमिक दिया जायेगा, यह बँटवारा भी नहीं हो सका। हालाँकि मुख्यमंत्री की ओर से आदेश भी जारी कर दिए गए थे कि राज्यगीत सभी शिक्षण संस्थाओं और सरकारी आयोजनों में गाया जायेगा, कुछ अवसरों पर गाया भी गया, मगर तब तक सरकार के स्तर पर भी अनिश्चय मंडराने लगा। यह तथ्य इतिहास में दर्ज तो हो ही गया है कि एक राज्य का राज्यगीत मुफ्त में लिखा गया था। वह मंत्रिमंडल की स्वीकृति और गजट नोटिफिकेशन के बाद भी राज्यगीत का दर्जा हासिल नहीं कर सका। हो सकता है कि यह बात गिनीज बुक में रिकॉर्ड होने वाली खबर भी हो।