रिपोर्ट-कमल बिष्ट।
कोटद्वार महेश्वरी फिल्म प्रजेंटेशन तथा डीएस पंवार कृत गढ़वाली फीचर फिल्म खैरी का दिन में पहाड़ की दर्द को बड़े पर्दे पर दर्शाया गया है। जिसे आगामी 27 मई को फिल्म प्रीमियम शो के तौर पर के प्राइड मॉल में प्रातः 9.30 किया जाएगा। उक्त जानकारी फिल्म के निर्देशक अशोक चौहान ने प्रेस वार्ता के दौरान बताया। उन्होंने कहा उत्तराखंड में बनी फिल्म खैरी का दिन गढ़वाल के लोग जीवन को रंगमंच के माध्यम से फिल्म में संयुक्त परिवार का फिल्मांकन किया गया है। जो विघटन पर आधारित कहानी तथा वही फिर एकजुट होने के लिए संघर्ष करता है।
गढ़वाली फीचर फिल्म के प्रोड्यूसर और डायरेक्टर अशोक चौहान ने पत्रकारों को बताया कि फिल्म खैरी का दिन पहाड़ के जनजीवन को प्रस्तुत करती हुई एक पारिवारिक फिल्म है और फिल्म के माध्यम से पहाड़ की समस्याओं को और पहाड़ जैसे कठिन जीवन को दिखाया गया है और कैसे पहाड़ के जीवन को आसान बनाया जाए, यह भी काफी कुछ दिखाने का प्रयास फिल्म में है।
आज के दौर में फिल्मों का प्रभाव समाज पर अधिक पड़ता है इन बिंदुओं पर ध्यान रखते हुए खैरी का दिन फिल्म बनाई गई है, जिससे कि पहाड़ का भविष्य बेहतर बने। पत्रकार वार्ता में फिल्म के कलाकार भी इस अवसर पर उपस्थित थे। राजेश मालगुड़ी, पुरुषोत्तम जेठुड़ी, रणवीर चौहान, रोशन उपाध्याय और फिल्म की प्रमुख महिला किरदार गीता उनियाल, पूजा काला, शिवानी देवली, बसंत घिल्डियाल, नवल सेमवाल मनोज लाइन सतीश, ईंदू भट्ट, गोकुल पंवार, गरिमा बलोदी, आयुष मंहगाई, प्रज्वल मंगाई, सेमवाल युद्धवीर, अरविंद नेगी, अरुण नेगी, अमित बी कपूर, मीनाक्षी राणा, राजेंद्र राणा, जितेंद्र पंवार, धूम सिंह, राकेश राज, प्रियंका, मंजू सुंद्रियाल आदि फिल्म से जुड़े कलाकारों का सहयोग रहा।
इस अवसर पर फिल्म के प्रोड्यूसर और डायरेक्टर अशोक चौहान ने बताया कि उनका उद्देश्य आधुनिक पीढ़ी को रंगमंच से जोड़कर फिल्मों के माध्यम से बेहतर रोजगार दिलाना है, लोक संस्कृति के माध्यम से कलाकार अपनी कला से देश व विदेश में काफी नाम रोशन कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि मौजूदा परिस्थितियों में आंचलिक भाषाओं में जो फिल्में बनती हैं उनके द्वारा कलाकारों और फिल्मकारों को ज्यादा आर्थिकी नहीं मिल पातीए जिससे कि वह और बड़ी तायदाद में फिल्मों का निर्माण कर सकें। इसलिए जरूरी है कि आज आंचलिक भाषाओं की तरफ क्षेत्र के लोगों का ध्यान आकर्षित हो सके। आंचलिक फिल्मों को देखने के लिए अधिक से अधिक लोग जहां भी फिल्में लगती हैं वहां पहुंचे जिससे कलाकारों का उत्साह वर्धन कर अपनी भाषा और संस्कृति को बढ़ाने में अपना अहम् किरदार निभाए।