डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला:
उत्तराखंड में कई दुर्लभ वनस्पतियां मौजूद हैं, जिनका किसी न किसी रूप में औषधीय महत्व भी है. अमेस भी ऐसी ही एक वनस्पति है.दिलचस्प बात ये है कि इस वनस्पति को अब तक मामूली झाड़ी ही समझा जाता था. लेकिन जड़ी बूटी शोध संस्थान गोपेश्वर के वैज्ञानिकों ने इसकी पहचान एक ऐसी औषधी के रूप में की है जो पहाड़ी इलाकों में आजीविका के क्षेत्र में क्रांति ला सकती है.
इसे वनस्पति विज्ञान की भाषा में हिप्पोफी कहा जाता है और चीन में इस वनस्पति पर लगने वाले फलों से करीब पांच हजार उत्पाद बनाए जाते हैं.विटामिन से भरपूर होने के कारण इसका उच्च गुणवत्ता वाला स्पोर्ट्स ड्रिंक भी कई देशों में बनाया जा रहा है. भारत में उत्तराखंड में ही इसकी दो प्रजातियां पाई जाती हैं.
जिसे यहां अमेस कहा जाता है. समुद्र तल से करीब ढाई हजार मीटर की ऊंचाई पर चमोली, पिथौरागढ़ और उत्तरकाशी जिले में यह बहुतायत में उगती है. लेकिन उपयोग के नाम पर सिर्फ इसकी टहनियों को आलू या सेब के बगीचों में बाड़ लगाने के लिए ही किया जाता रहा है. अमेस का फल अपनी खूबियों के कारण ग्रामीणों के लिए आजीविका का बड़ा जरिया बन सकता है.
यह वनस्पति जमीन से तीन फीट से सात फीट तक ऊंची और पतली टहनियों और घनी पत्तियों वाली होती हैं. पत्तियों के बीच अमेस का फल जंगली बेर की तरह दिखता है और पकने पर नारंगी और लाल रंग का हो जाता है. इसमें भरपूर मात्रा में विटामिन और एंटी कैंसर तत्व शामिल हैं. उच्च हिमालयी क्षेत्र में होने के कारण इसका औषधीय महत्व भी बढ़ जाता है.
अमेस के पांच तरह के उत्पाद बनाए जा रहे हैं. जिसमें कैंसर रोधी दवा समेत, जेली और चटनी और जूस भी शामिल है. उत्पाद तैयार करने के साथ ही विभाग देश भर में इसकी मार्केटिंग भी व्यवस्था कर रहा है. दिलचस्प बात यह है कि पड़ोसी देश चीन में कई लोग इस फल की मदद से मालामाल हो चुके हैं. उत्तराखंड के जंगल में मिलने वाले फलों को बाजार से जोड़कर आर्थिकी संवारने का जरिया बनाया जा सकता है।
जो फल हम फ्री में खाते हैं या जंगलों में ऐसे ही बर्बाद हो जाते हैं, वास्तव में उनकी कीमत जानकर आप हैरान रह जाओगे। सरकार अभी तक इस दिशा में कोई पहल नहीं कर पायी है। जिनमें विटामिन्स और एंटी ऑक्सीडेंट की भरपूर मात्रा है। वास्तव में इस तरह के फल की कीमत हमारे लिए नहीं होगी, लेकिन बाजार में इसके भाव आम फलों के भाव से कई गुना अधिक हैं।विशेषज्ञों के अनुसार इन फलों की इकोलॉजिकल और इकॉनामिकल वेल्यू है।
इनके पेड़ स्थानीय पारिस्थितिकीय तंत्र को सुरक्षित रखने में अहम भूमिका निभाते हैं, जबकि फल आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं अमेस को ही लें और चीन में इसके दो चार नहीं पूरे 133 प्रोजेक्ट तैयार किए गए है और वहां पर उत्पादकों के लिए यह जंगली फल आय का बेहतर स्त्रोत है. उत्तराखंड में यह फल काफी मिलता है, पर दिशा में अभी तक कोई कदम नहीं उठाए गए है.
काफल को छोड़ सभी फलों का यही हाल है. काफल को भी जब सभी लोग स्वंय तोड़कर बाहर लाए तो इसे थोड़ी बहुत पहचान मिली, लेकिन अन्य फल तो अभी भी हाशिये पर है. उत्तराखंड में यह फल काफी मिलता है, पर इस दिशा में अभी तक कोई कदम नहीं उठाए गए हैं। काफल को छोड़ अन्य फलों का यही हाल है। काफल को भी जब लोग स्वयं तोड़कर बाहर लाए तो इसे थोड़ी बहुत पहचान मिली, लेकिन अन्य फल तो अभी भी हाशिये पर ही हैं लेकिन इसे विस्तार मिलना अभी बाकी है।












