फोटो..वीरान दिख रहा औली का चियर लिफ्ट टर्मिनल
प्रकाश कपरुवांण।
जोशीमठ। वर्ष 1994 में जोशीमठ.औली रोप.वे का संचालन शुरू हुआ, तब से लेकर अब तक यह पहली बार हुआ है कि औली बर्फ से लबालब है, मौसम सुहावना है और पर्यटक भी बेसुमार हैं, लेकिन वे देश के सबसे लंबे रोप वे से आवागमन कर औली व हिमालय की वादियों का दीदार करने से वंचित हैं।
हालांकि कई बार पर्यटकों को रोप.वे से टिकट नहीं मिल पाता था, तो पर्यटक अपने अथवा टैक्सी वाहनों से औली पहुंचकर औली में स्थापित चियर लिफ्ट का लुफ्त उठा कर अपनी मुराद पूरी कर लेते थे, लेकिन चियर लिफ्ट को बंद करा दिया गया है।
दरसअल शीतकाल के इस पीक सीजन में रोप.वे के दो कर्मचारी कोरोना पोजेटिव मिले, जिस पर रोप वे व चियर लिफ्ट के सभी कर्मचारियों की टैस्टिंग कराते हुए ऐतिहातन दस दिनों के लिए सभी कर्मचारियों को होम आइसोलेशन की सलाह दी गई। जिसके बाद रोप वे व चियर लिफ्ट का संचालन बंद करना पड़ा।
रोप वे बंद होने के बाद टैक्सी व जिप्सी संचालकों का रोजगार तो बढ़ा लेकिन पर्यटकों से कितना किराया वसूला जा रहा है इसकी नियमित मोनेटरिंग किये जाने की बेहद आवश्यकता है।
पर्यटक मनमाना किराया देकर औली तो घूम रहे हैं और होटल.रेस्टोरेंट व अन्य सार्वजनिक स्थानों पर जोशीमठ.औली या टीवी टावर सुनील से औली का महंगा किराया भुगतने की बात भी कर रहे हैं, लेकिन स्थानीय जिम्मेदार एजेंसियों तक कोई भी पर्यटक शिकायत नहीं कर पाता, हालांकि वे उत्तराखंड सरकार व पीएमओ तक अपनी बात पहुंचाने का भी जिक्र करते हैं।
औली में पर्यटकों की संदिग्ध व दर्दनाक मौत, वाहनों का मंहगा किराया, रोप वे व चियर लिफ्ट का पीक सीजन में बन्द होना, कहीं यह सब विश्व पर्यटन मानचित्र पर तेजी से उभर रहे औली के भविष्य पर ही प्रश्न चिह्न ना लगा दे? इसके लिए सूबे के पर्यटन महकमे को जागरूक पहल करने की आवश्यकता है, ताकि पर्यटक मौत व लूट के साये से मुक्त रहकर न केवल औली की खूबसूरत वादियों का लुफ्त उठायें, बल्कि देश विदेश में औली की खूबसूरती व पर्यटन प्रदेश के जनमानस की अथिति देवो भवः की भावना का भी व्यापक प्रचार प्रसार कर सकें।