थराली से हरेंद्र बिष्ट।
इस वर्ष लगातार हों रही बे मौसमी बरसात के कारण अधिक ऊंचाई पर बसें गांवों की नकदी फसलों के साथ ही घाटी क्षेत्रों में दालों को भारी नुक्सान हो रहा हैं। जिससे किसानों में भारी मायूसी व्यापत होने लगी हैं।
इस वर्ष लगातार हों रही बे मौसमी बारिश के कारण पिंडर घाटी के मध्य एवं ऊंचाई पर स्थित बसें गांवों की फसलों को भारी नुक्सान पहुंचाने लगा हैं। बताया जा रहा है कि मध्य ऊंचाई पर बसें गांवों में अभी तक तैयार नही हों पाई सोयाबीन, भट्ट, गेहत, तोर, मास सहित तमाम अन्य दालों को नुक्सान पहुंचाने लगा हैं। इसके अलावा ऊंचाई पर बसें गांवों में इस बेमौसम बारिश का अधिक विपरीत प्रभाव पड़ रहा हैं हिमालय के पास बसें घेस गांव के पूर्व उप प्रधान अर्जुन बिष्ट, पूर्व सैनिक गुलाब सिंह बिष्ट, कंचन सिंह, हिमानी के पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य कलम सिंह पटाकी आदि ने बताया कि बे मौसमी बारिश के कारण आलू, झुंगोरा, ओगल, पल्टी, राजमा, चौलाई, मडुवा सहित तमाम महत्वपूर्ण फसलों को भारी नुक्सान होने लगा हैं। बताया कि अधिक बारिश के कारण दाल एवं अन्य फसलों भारी नुक्सान होने के कारण किसानो में भारी मायूसी छाने लगी हैं।
’तों जाड़ों के मौसम में पशुपालकों को चारें के लिए भटकना पड़ेगा। चिंता बढ़ी।’
बे मौसमी बारिश का सबसे अधिक प्रभाव आनेवाले जाड़ों एवं बर्फबारी के महिनों में पशुपालकों पर पढ़ सकता हैं। दरअसल बे मौसमी बारिश के कारण जहां काटी गई घास सड़ गया हैं। वही खेतों एवं जंगलों में उंगी घास भी अधिक बारिश के कारण सड़ने के कगार पर पहुंचने लगा हैं। जिससे पशुपालक खाशें परेशान हैं। मालूम हो कि पहाड़ी क्षेत्रों में सितंबर.अक्टूबर माह में खेतों, जंगलों में उंगी घास को काट कर सूखाया जाता है। और उसे खूमे लूटे; जाड़ों में पशुओं के लिए सूखी संग्रहित घास के ढेर बनाएं जातें हैं ताकि जाड़ों में जब खेतों, जंगलों में घास की कमी होने लगती हैं अथवा बारिश, बर्फबारी के के दौर मवेशियों का यही चारा होता हैं। आधिक बारिश के कारण उस घास को भी संकलित नही कर पा रहे हैं।