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भ्रष्ट मृत्युंजय मिश्रा को संरक्षण देने के लिए रचा गया पूरा खेल?

आयुर्वेद विश्वविद्यालय कुलपति का मामलाः जिनकी जांच होनी चाहिए, वे जांच करवा रहे हैं

23/07/22
in उत्तराखंड, क्राइम, देहरादून
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शंकर सिंह भाटिया
पिछले दिनों आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति का मामला मीडिया की सुर्खियों में था। कुलपति प्रो. सुनील कुमार जोशी के खिलाफ दो-दो जांच बिठा दी गई, उनके वित्तीय अधिकार सीज कर दिए गए। शासन के स्तर से बार-बार हर घटनाक्रम की मीडिया को खबरें फीड की जाती रही, हर खबर में कुलपति पर भ्रष्टाचार के बड़े-बड़े आरोप लगाए गए। ऐसी चिंता जताई गई कि यदि कुलपति को हटाया नहीं गया तो उत्तराखंड भ्रष्टाचार में डूब जाएगा, इसलिए पूरी ताकत उन्हें हटाने में लगा दी गई। भला हो हाई कोर्ट का जहां से जांच पर स्टे लगा दिया गया और वित्तीय अधिकारों की बहाली कर दी गई। अब इस मामले की अगली सुनवाई 7 नवंबर 2022 को होगी।

21 जुलाई को शासन ने कोर्ट के निर्देशानुसार कुलपति प्रो.सुनील कुमार जोशी के खिलाफ चार्ज शीट जमा की थी। कोर्ट में सुनवाई के बाद अगली तारीख 7 नवंबर 2022 तय की गई है। तब तक कुलपति के खिलाफ जांच पर स्टे रहेगा। साथ ही इस मामले में प्रो. सुनील कुमार जोशी के वकील भूपेश कांडपाल का कहना है कि कोर्ट ने कुलपति के वित्तीय अधिकारों को भी बहाल कर दिया है।

गौरतलब है कि पिछले दिनों शासन में बैठे कुछ अफसरों का एक मात्र तारगेट आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति को हटाना हो गया था। इसके लिए पहले अपर सचिव के स्तर से जांच कराई गई, जांच में थोड़ा विलंब होता दिखाई दिया तो हाई कोर्ट के पूर्व जज के नेतृत्व में जांच बिठा दी गई। यही नहीं उन्हें 15 दिन के अंदर जांच करने को पाबंद कर दिया गया। अभी यह जांच चल ही रही थी कि कुलपति के वित्तीय अधिकार सीज कर दिए गए। इस पूरे प्रकरण में एक बार नहीं बल्कि कई बार जब भी मौका मिला शासन स्तर से मीडिया को कुलपति के खिलाफ खबरें फीड की जाती रही। हर बार कुलपति पर भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितता के अरोप लगाए गए। लेकिन जब जांच अधिकारी ने नोटिस देकर पिछले दिनों कुलपति से तीन सवाल पूछे, सभी उनकी नियुक्ति से संबंधित थे। एक भी सवाल वित्तीय अनियमितता या भ्रष्टाचार से जुड़ा हुआ नहीं था। कोर्ट ने जांच पर स्टे देते हुए यह सवाल उठाया भी था।

शासन में बैठे उच्च स्तर के अधिकारी किस तरह निजी खुन्नस निकालने के लिए अपने अधिकारों का दुरूपयोग करते हैं, यह मामला उसमें सही बैठता है। कुलपति के साथ निजी खुन्नस निकालने के पीछे आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलसचिव रहे मृत्युंजय कुमार मिश्रा एक कड़ी है, जिन्हें जेल से छूटने के बाद अगले ही दिन आयुर्वेद विश्वविद्यालय का कुलसचिव बनाकर भेजा गया था और कुलपति सुनील कुमार जोशी ने मृत्युंजय मिश्रा को कार्यभार ग्रहण नहीं करने दिया। खास बात यह है कि मृत्युंजय कुमार मिश्रा आयुर्वेद विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार करते हुए जेल भेजे गए थे, जहां वह करीब तीन साल रहे। कुलपति से खुन्नस की बात यही थी कि उन्होंने शासन के निर्देशों की अवहेलना की और मृत्युंजय मिश्रा को कार्यभार ग्रहण नहीं करने दिया। कुलसचिव का कार्यभार ग्रहण करने के दौरान हुए विवाद के बाद मृत्युंजय कुमार मिश्रा को मूल विभाग में भेज दिया गया था। लेकिन शासन में बैठे अफसरों के संरक्षण की वजह से मिश्रा को सचिवालय में आयुष विभाग से संबद्ध कर दिया गया। इस अनियमितता में किसकी भूमिका रही जांच इसकी होनी चाहिए।

विवादों से घिरे और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे मृत्युंजय मिश्रा शासन स्तर पर ऐसे ही अफसरों की आड़ में खेलता रहा है। इससे पहले मुख्य सचिव रहे और त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार में सर्वेसर्वा रहे ओम प्रकाश ने मृत्युंजय मिश्रा को न केवल अभयदान दिया था, बल्कि सभी अवैध गतिविधियों को संचालित करने का अवसर भी दिया। उनके जाने के बाद सचिवालय में इस भ्रष्ट अधिकारी को संरक्षण देने वालों की कमी नहीं है।

मृत्युंजय कुमार मिश्रा जैसे भ्रष्ट, विवादित और हर तरह के दांव पैंच खेलने में माहिर अधिकारी को बड़े अफसर संरक्षण क्यों देते हैं? यह सवाल बहुत अहम है। यदि कोई अफसर गलत काम करते हुए पकड़ में आ जाए तो उसके खिलाफ दस्तावेजी प्रमाण उपलब्ध रहेंगे, जो जांच के दौरान सामने आ सकते हैं, इससे उस अधिकारी पर गाज गिर सकती है। इसलिए इन कुकर्मों से बचने के लिए बड़े अफसर मृत्युंजय कुमार मिश्रा जैसे खुले तौर पर भ्रष्ट अफसरों को संरक्षण देते हैं। ऐसे अफसरों से वह सब कार्य करवाते हैं, जो भ्रष्टाचार की श्रेणी में आते हैं। यहां तक कि ऐसे अफसरों की उनके पास फौज रहती है। जिस फौज में कुछ ही ऐसे होते हैं, जो मृत्युंजय मिश्रा की तरह चिन्हित होते हैं, अधिकांश छिपे तौर पर यह कार्य करते हैं।

इसलिए यहां पर जांच उन अफसरों की होनी चाहिए जो ऐसे भ्रष्टों को संरक्षण देकर अभयदान दे रहे हैं और खुलकर राज्य के खजाने को लूटने में जुटे हुए हैं। सबसे पहले जांच पूर्व मुख्य सचिव ओमप्रकाश की होनी चाहिए, जो हाल ही में रिटायर हुए हैं। अन्यथा उनके रिटायरमेंट के चार साल पूरे हों जाएंगे और वे सभी जांचों से बच निकलेंगे। उत्तराखंड में कई भ्रष्टों को बचाने के लिए इस नियम का बड़ी ही धूर्तता के साथ दुरूपयोग किया गया है। उसके बाद मृत्युंजय मिश्रा के वर्तमान संरक्षणदाताओं पर कार्यवाही होनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया गया तो इन लोगों को राज्य को लूटने का खुला मौका मिलता रहेगा और आयुष जैसे विभागों की प्राथमिकता ऐसे भ्रष्टों को संरक्षण देना और काम करने वालों को बाहर का रास्ता दिखाने की हो जाएगी।

यह मामला अभी कोर्ट में है, इसलिए कोर्ट से अंतिम निर्णय आने तक संबंधित सवालों पर बात करना उचित नहीं होगा।

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