डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
देश के प्रसिद्ध भू.वैज्ञानिक प्रो. खड्ग सिंह वल्दिया के निधन के साथ ही सीमांत जिले पिथौरागढ़ में एक युग का अवसान हो गया। हिमालय के भूगर्भ की गहरी समझ ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय ख्याति तो दिलाई। मूल रूप से ड्योडार गांव के रहने वाले प्रोण् वल्दिया का जन्म 1937 में वर्मा म्यांमार में हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बदली परिस्थितियों में वे अपने पिता देव सिंह वल्दिया और मां नंदा वल्दिया के साथ पिथौरागढ़ आ गए। नगर के अपने पैतृक घर घंटाकरण में रहते हुए उन्होंने 1953 तक पिथौरागढ़ में ही स्कूलिंग की। लखनऊ विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे विश्वविद्यालय में ही भू विज्ञान के प्रवक्ता नियुक्त हो गए। 1963 में उन्होंने डाक्टरेट की उपाधि हासिल की। हिमालय के तमाम क्षेत्रों में गहन शोध ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें पहचान दिलाई। वर्ष 1966 में वे अमेरिका के जॉन हापकिन्स विश्विद्यालय में फैलोशिपि के लिए चुने गए। अमेरिका से लौटने के बाद 1969 में वे राजस्थान युनिवर्सिटी में भू.विज्ञान के रीडर बने।
वर्ष 1970 से 76 तक उन्होंने वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालया जियोलॉजी में वरिष्ठ वैज्ञानिक के पद पर रहे। 1981, 84 और 1992 में कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति का जिम्मा संभाला। प्रोफेसर वल्दिया ने बतौर अध्यापक राजस्थान विश्वविद्यालय, जवाहर लाल नेहरू सेंटर फॉर अडवांस साइंटिफिक रिसर्च, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमायलय जियोलॉली और कुमाऊं विश्वविद्यालय में अध्यापन किया था। वर्तमान भू विज्ञान विभाग परिसर की स्थापना 1988 में हुई। इसमें उप्र के तत्कालीन सीएम एनडी तिवारी ने भी खासी मदद की थी। तिवारी प्रोण्वल्दिया की विद्वता के कायल रहे हैं। प्रोण् वल्दिया का भी प्रभाव था कि विभाग को 1984 में कॉशिस्ट प्रोजेक्ट तथा विशेष सहायता कार्यक्रम जैसे प्रोजेक्ट मिलते रहे। 2012 में विभाग को सेंटर फार एक्सलेंस का दर्जा भी मिल गया है। प्रोण्वल्दिया कुछ समय के लिए विवि के कुलपति रहे।
विवि से अवकाश ग्रहण करने के बाद प्रोण् वल्दिया बैंगलुरू में जवाहर लाल नेहरू सेंटर फार एडवांस साइंटिफिक रिसर्च से जुड़ गए। हिमालय के भूगर्भ पर उन्होंने 10 शोध पत्र लिखे। 14 महत्वपूर्ण किताबों के साथ ही 40 बेहद महत्वपूर्ण लेख तमाम राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुए। भू. विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए वर्ष 1976 में उन्हेें विज्ञान के प्रतिष्ठित शांतिस्वरू प भटनागर पुरस्कार सम्मान से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें राष्ट्रीय खनिज अवार्ड, एलण्रामाराव गोल्ड मैडल पुरस्कार से नवाजा गया। वर्ष 1983 में प्रधानमंत्री की वैज्ञानिक सलाहकार समिति के सदस्य बने। भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 2007 में पद्मश्री से सम्मानित किया। देश के प्रतिष्ठित भू.वैज्ञानिक होने के बावजूद वे बेहद सादगीपूर्ण व्यक्ति थे। जीवन पर्यन्त वे अपने काम खुद ही करने पर जोर देते रहे।
पिथौरागढ़ से लगाव रखने वाले प्रोण्वल्दिया हर वर्ष गंगोलीहाट में हिमालय ग्राम विकास समिति ने साइंस आउटरीच कार्यक्रम में भाग लेने के लिए पहुंचते थे। इस दौरान वे मेधावी विद्यार्थियों के साथ दो दिन बिताते, उन्हें विज्ञान की बारीकियां समझाते और नए शोधों पर उनके बातचीत करते। इस दौरान वे बच्चों को अपने कार्य खुद करने के लिए प्रेरित करते और उनके साथ जमीन पर बैठकर भोजन ग्रहण करते। मीडिया से वे अक्सर दूरी बनाए रखते। बहुत जोर देने पर ही बातचीत के लिए तैयार होते थे।
वे समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए हमेशा प्रयास करते रहे। पहाड़, नैनीताल द्वारा वर्ष. 2015 में प्रकाशित प्रोण् खड्ग सिंह वल्दिया की आत्मकथा पथरीली पगडंडियों पर पढ़ते एक साथ कई भाव आते हैं। मानवीय जीवन के कई विश्वविद्यालय इस किताब में निहित हैं। यह एक ऐसे जीवट व्यक्ति की जीवन.यात्रा है जिसे विकट परिस्थितियां भी बदल नहीं पायी हैंण् वह जीने की राह बदलता रहा पर जीने का उद्धेश्य उसका अटल रहा है। वह इस बात पर दृडमत है कि आने वाली पीढ़ी को पता रहना चाहिए कि वर्तमान में हमारी भूमिका कैसी थी घ्इस संदर्भ में यह पुस्तक संपूर्ण व्यवस्था को भी चुनौती देती हुई लगती है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली, वैज्ञानिक जगत, राजनैतिक.सामाजिक व्यवस्था से टकराती यह आत्मकथा यह संदेश देती है कि बिना गलत समझौते किए भी अपने जीवनीय लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है। यह आत्मकथा ऐसे व्यक्तित्व की है जो भूगर्भीय हलचलों के साथ ही मानव मन की धड़कनों को समझने का भी विशेषज्ञ है। तभी तो पत्थरों का उपासक.प्रकृति का पुजारी बना वह साधारण व्यक्ति असाधारण व्यक्तित्व का धनी है, लेकिन लोगों को हैरानी इस बात की भी है कि जिस व्यक्ति का पूरा कार्य हिमालय के भूगर्भीय अध्ययन पर रहा उसे कर्नाटका सरकार की संस्तुति पर पद्म भूषण से नवाजा था। उत्तराखंड और देश का नाम रोशन किया है। लेकिन अगर उनको ये सम्मान उत्तराखंड से मिलता तो ज्यादा अच्छा लगता।
डॉ वल्दिया की पहचान पूरे विश्व में हिमालय भूगर्भ वैज्ञानिक की रही है और उनकी कर्म भूमि भी उत्तराखंड ही रही है। हिमालय पुत्र प्रोण् खड्ग सिंह वल्दिया अध्यायन के क्षेत्र में दशकों तक कीर्तिमान स्थाेपित करने वाला नक्षत्र हमेशा के लिए अनंत में समा गया है। हमेशा समाज का आत्मीय मार्गदर्शन करते रहें यही कामना है।